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केंद्र सरकार के गले की हड्डी बन सकता है विशेष राज्य का दर्जा!

मनमोहन सिंह

सरकार के भीतर आंतरिक चर्चाओं से जो कुछ छनकर बाहर निकल रहा है, उससे इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि भाजपा के दो प्रमुख सहयोगियों क्रमश: टीडीपी और जेडी (यू) द्वारा आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए विशेष श्रेणी की मांग को पूरा करना मुश्किल होगा। क्योंकि ऐसे कई राज्य हैं, जिन्हें उनकी सामाजिक-आर्थिक और वित्तीय हालात को देखते हुए उच्च प्रतिशत अनुदान की आवश्यकता हो सकती है।
पहले विशेष श्रेणी के रूप में वर्गीकृत राज्यों के लिए सबसे बड़ा लाभ यह था कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत ९० प्रतिशत धनराशि केंद्र द्वारा दी जाती थी, जिसमें केवल १० प्रतिशत राज्य का योगदान होता था। अन्य सभी राज्यों के लिए विभाजन ६०:४० था और केंद्र का योगदान केवल ६० प्रतिशत था। इसके अलावा विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए केंद्र सरकार की ओर से सामान्य केंद्रीय सहायता में ९० प्रतिशत अनुदान और १० प्रतिशत ऋण शामिल था। अन्य राज्यों के लिए यह ३० प्रतिशत अनुदान और ७० प्रतिशत ऋण था।
केंद्र सरकार को डर है कि आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए ऐसी खिड़की खोलने से अन्य राज्यों द्वारा भी इसी तरह की मांग को बढ़ावा मलेगा। खासकर, वे राज्य जो संसाधनों के लिए जरूरतमंद और पिछड़े हैं। केंद्र का यह डर वाजिब भी है। फिलहाल, सहयोगी दलों के कब्जे वाले दोनों राज्यों के लिए समर्थन विशेष पैकेज के रूप में हो सकता है। राज्यों को विशेष श्रेणी के दर्जे के लिए अपना अनुरोध अरविंद पनगढ़िया के अधीन १६वें वित्त आयोग के समक्ष रखने के लिए कहा जा सकता है। वित्त आयोग के सदस्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों और अन्य प्रमुख अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श करने के लिए जून के अंत से राज्यों का दौरा शुरू करेंगे।
राज्यों को विशेष श्रेणी के दर्जे के लिए अपना अनुरोध अरविंद पनगढ़िया के अधीन १६वें वित्त आयोग के समक्ष रखने के लिए कहा जा सकता है। वित्त आयोग के सदस्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों और अन्य प्रमुख अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श करने के लिए जून के अंत से राज्यों का दौरा शुरू करेंगे। भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि राज्यों ने वित्त आयोग के साथ अपनी बैठकों में धन और कर हस्तांतरण की अपनी मांगें रखीं। हालांकि, विशेष श्रेणी के दर्जे की पुरानी व्यवस्था को वापस लाने में कोई कानूनी बाधा नहीं है और राज्यों को विशेष पैकेज के रूप में धन मुहैया कराया जा सकता है, जो एक राजनीतिक पैâसला होगा। आंध्र प्रदेश के लिए एक विशेष पैकेज विशेष रूप से राजधानी अमरावती शहर के निर्माण के लिए आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत होगा। आंध्र प्रदेश पुनर्गठन कानून में राज्य की राजधानी के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान है। कुछ धनराशि पहले प्रदान की गई थी, लेकिन पूरी तरह से वितरित नहीं की गई थी। इसके लिए सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि राज्य सरकार की ढुलमुल रवैया जिम्मेदार है। रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई २०१६ और फरवरी २०१९ के बीच ३३,४७६.२३ करोड़ रुपए की लागत वाले ५७ बुनियादी ढांचा पैकेज दिए गए और अप्रैल २०१७ से नवंबर २०२१ तक पूरा करने की योजना थी, ४,९०१.६७ करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद अधूरे रहे। आवश्यक स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के लिए राज्य सरकार का ढुलमुल रवैया डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) पर भारत सरकार द्वारा आंध्र प्रदेश के उत्तराधिकारी राज्य की नई राजधानी में आवश्यक सुविधाओं के निर्माण के लिए आगे वित्तीय सहायता जारी नहीं की गई।
सीएजी ने सितंबर २०२३ में एक अनुपालन रिपोर्ट में लैंड पूलिंग तंत्र के कारण भारी वित्तीय बोझ पैदा होने के साथ-साथ किए गए व्यय और बुनियादी ढांचे के काम अधूरे रहने पर सवाल उठाए थे। राज्य सरकार सीएजी कि इस रिपोर्ट को एक तरफ डाल कर अपनी मांगों पर जोर बनाए रखेगी। यह मामला आंध्र प्रदेश का है, लेकिन बिहार पीछे क्यों रहेगा! उसकी अपनी मांगें होंगी बेशक विशेष दर्जा का प्रावधान प्रमुख होगा।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि केंद्र सरकार इस प्रकार की दबावों से बचने के लिए खुद भी कई कानूनी पचड़े तैयार करेगी, ताकि वह अपनी मजबूरी जाहिर कर सके। इसके बावजूद वह टीडीपी और जेडी (यू) को बिल्कुल भी नाराज करने की स्थिति में नहीं होगी। यदि उनके मांगानुसार विशेष श्रेणी का दर्जा नहीं मिलता है तो भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार विशिष्ट परियोजनाओं के लिए राज्यों को अतिरिक्त धन आवंटित करने को तैयार हो सकती है। उदाहरण के लिए यह आंध्र की राजधानी बनाने के लिए अधिक ऋण दे सकता है या अमरावती में केंद्रीय परियोजनाओं की योजना भी बना सकता है।

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