योगेश कुमार सोनी
कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या के मामले में कई राज्यों में डॉक्टरों की हड़ताल जारी है। हालात ज्यादा बिगड़ते देख इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने आपात बैठक बुलाई है। लेकिन वहीं अब प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर भी इसमें शामिल हो रहे हैं। घटना को हुए एक हफ्ता बीत गया लेकिन इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से कुछ ऐसा नहीं हो पा रहा कि डॉक्टरों को आश्वस्त करते हुए उन्हें काम पर लौटाएं। अब तक तो सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने ही हंगामा मचा रखा था लेकिन अब प्राइवेट अस्पतालों की उपस्थिति ने और बड़ा काम कर दिया। वैसे तो सभी नेताओं के हर छोटी-बड़ी घटनाओं को तुरंत रिएक्शन आ जाते हैं लेकिन इस पर गंभीरता नहीं दिखाई जा रही। दरअसल हर क्षेत्र में राजनीति की जा सकती है, लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक मिनट भी अव्यवस्थित होने से कई जाने जा सकती हैं और वो जा भी रही हैं, जिस ओर सिर्फ मरने वाले के अलावा किसी का ध्यान नहीं जा रहा। एक रिपोर्ट के हिसाब से भारत में जून 2022 तक स्टेट मेडिकल काउंसिल और नेशनल मेडिकल कमीशन में 13,08,009 एलोपैथिक डॉक्टर रजिस्टर्ड हैं। इस आंकड़े से यह तय हो जाता है कि लाखों की संख्या में मात्र कुछ ही डॉक्टर हैं। देशभर के कई अस्पतालों में देखा जा रहा है कि लोग बिना इलाज के मर रहे हैं और इस पर किसी भी प्रकार का संज्ञान व प्रतिक्रिया नहीं आ रही। जैसा कि निश्चित तौर पर सरकारी अस्पताल में गरीब इंसान ही आता है और वो पहले से बहुत चुनौतियों के साथ अपना इलाज करवाता है और उसमें भी इलाज समय पर व सही न मिले तो मरना तय हो जाता है। दिल्ली के एम्स अस्पताल में अपने बीमार बच्चे को कंधों पर लटकाए बिना इलाज लौटते मां-बाप, थैले में एक बोतल पानी और चार सूखी रोटी बांधकर दर्द से कराहती बूढ़ी मां को इलाज के लिए अस्पताल के सड़क किनारे लेकर पड़ी बेटी, लंबी सांस लेते ढ़ाई महीने के बेसुध बच्चे को छाती से चिपकाए बिना इलाज मिले लौटती उस मां बहुत दुखी है। हर रोज मरीज व तीमारदार निराश व पीड़ा में लौट जाते हैं। डॉक्टरों की हड़ताल के बाद देशभर में हालात खराब है, लेकिन दिल्ली के सबसे बड़े अस्पतालों में शुमार एम्स और सफदरजंग का हाल बेहद पीड़ाजनक है। यहां के दृश्य बेहद हैरान व परेशान करने वाले थे। मरीज पिछले एक हफ्ते से अस्पताल में पड़े हैं और उनका हाल देखकर बेहद तकलीफ हो रही है। ओपीडी के कमरों में ताले पड़े हैं। एम्स जैसे अस्पतालों में ऑपरेशन का नंबर आता है और तारीख लेकर आए मरीज भटक रहे हैं। ऑपरेशन का तो छोड़िए,कोई चेकअप तक के लिए नहीं आ रहा। न इलाज का पता है और न ही डॉक्टरों का। यदि कुछ समय में स्थिति को नियंत्रित नहीं किया गया तो मरीजों का बेमौत मरने की संख्या और बढ़ जाएगी। गंभीर बीमारी वाले मरीजों की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है जिससे परेशानी ज्यादा बढ़ रही है। सरकार को यहां बड़े एक्शन ऑफ प्लॉन की जरूरत है।
वरिष्ठ पत्रकार