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बट्टे खाते की वसूली में केंद्र सरकार के दांत खट्टे! पांच वर्ष में सिर्फ १४ फीसदी हुई वसूली

  • डिफॉल्टरों के पास ६.३१ लाख करोड़ रुपए बकाया
  • केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दी जानकारी

सामना संवाददाता / मुंबई
सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों को करोड़ों रुपए का चूना लगाने वाले डिफॉल्टरों के सामने केंद्र सरकार की स्थिति नतमस्तक होने जैसी हो गई है। बैंकों के बट्टे खाते में डाले गए ऋण की रकम वसूलने में केंद्र सरकार के दांत खट्टे हो रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा मार्च २०१७-२०२२ यानी पांच वर्ष में बट्टे खाते में डाले गए ७.३४ लाख करोड़ रुपए की ऋण राशि में से मात्र १४ फीसदी की ही वसूली हो पाई है। इस १.०३ लाख करोड़ की वसूली के बाद भी डिफॉल्टरों पर बट्टे खाते की ६.३१ लाख करोड़ रुपए बकाया है। इस संबंध में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि बट्टे खाते की बकाया राशि वसूलने का प्रयास जारी है।‌
गौरतलब है कि देश के १२ सरकारी बैंकों पर ४,५८,५१२ करोड़ के एनपीए का भार है। रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों और बैंक बोर्ड की तरफ से अनुमोदित नीति के मुताबिक, चार वर्ष से जो एनपीए बना हुआ है, उन्हें बैंकों की बैलेंस शीट से हटाकर बट्टे खाते में डाल दिया गया है। वित्त मंत्री के अनुसार, प्रतिस्पर्धा आयोग अमेजॉन, फ्लिपकार्ट, जोमैटो, स्विगी, बुक माई शो, एपल, व्हॉट्सऐप, फेसबुक (मेटा) और गूगल के खिलाफ प्रतिस्पर्धारोधी गतिविधियों को लेकर तीन अलग-अलग मामलों में पूछताछ कर रहा है। इन मामलों को लेकर आदेश ३१ जनवरी, २०१८ से २० अक्टूूबर, २०२२ के बीच जारी किए गए थे। आरबीआई के पूर्व निदेशक चंदन सिन्हा साफतौर पर कह चुके हैं कि डिफॉल्ट के मामले में हिंदुस्थान में वसूली की प्रक्रिया धीमी है। आईबीसी के माध्यम से एक त्वरित निवारण की आवश्यकता है, जिससे ऋण दाता विलफुल डिफॉल्टर्स के खिलाफ शीघ्र कानूनी उपाय का इस्तेमाल कर सकें।

बट्टे खाते में एसबीआई का सबसे ज्यादा पैसा
मेक माई ट्रिप-गो और ओयो से जुड़े मामले में १९ अक्टूबर, २०२२ को पूछताछ का आदेश जारी किया गया था। सबसे ज्यादा ९८,३४७ करोड़ रुपए एनपीए एसबीआई पर है। इसके बाद पीएनबी पर ८३,५८४ करोड़, यूनियन बैंक पर ६३,७७० करोड़, केनरा बैंक पर ५०,१४३ करोड़, बैंक ऑफ बड़ौदा पर ४१,८५८ करोड़ एनपीए है। वहीं, ३८,८८५ करोड़ के एनपीए के साथ बैंक ऑफ इंडिया छठे और २९,४८४ करोड़ के साथ इंडियन बैंक सातवें स्थान पर है।

चोकसी और नीरव मोदी सबसे बड़े डिफॉल्टर
बैंकों और ट्रांस यूनियन सिविल के अनुसार, देश के बैंकों का ८८,४३५ करोड़ रुपए डिफॉल्टरों पर बकाया है। डिफॉल्टर की सूची में मेहुल चौकसी की गीतांजलि जेम्स का नाम सबसे ऊपर है, जिसने ७८४८ करोड़ रुपए से ज्यादा की धोखाधड़ी इंडियन बैंक से की है। जिन बैंकों से उधार लिया गया, उनमें पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और एचडीएफसी बैंक शामिल हैं। इसके बाद इरा इंफ्रा ५,८७९ करोड़ रुपए, आरईआई एग्रो ४,८०३ करोड़ रुपए, एबीजी शिपयार्ड ३,७०८ करोड़ रुपए, विनसम डायमंड्स २,९३१ करोड़ रुपए, रोटोमैक ग्लोबल २,८९३ करोड़ रुपए, फायरस्टार पर ८०३ करोड़ रुपए बकाया है। केंद्र सरकार स्वीकार कर चुकी है कि इस तरह के ७२ डिफॉल्टर हैं और देश छोड़कर फरार हैं। आर्थिक अपराधियों में से सरकार सिर्फ भगोड़े सनी कालरा और विनय मित्तल को ही हिंदुस्थान ला पाई है।

कई परियोजनाओं को पूरा करने में मिल सकती है मदद
डिफॉल्टरों के पास करीब ७.३५ लाख करोड़ रुपए की राशि बकाया है। बैंकों के माध्यम से जनता का पैसा लेकर भागे इन भगोड़ों पर कार्रवाई न के बराबर है। इतनी बड़ी धनराशि से देश की कई बड़ी परियोजनाओं को आयाम दिया जा सकता है। ‌बुनियादी ढांचा क्षेत्र की १५० करोड़ रुपए या इससे अधिक के खर्च वाली ३३५ परियोजनाओं की लागत तय अनुमान से ४.४६ लाख करोड़ रुपए से ज्यादा बढ़ गई है। सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की १,४५४ परियोजनाओं में से ३३५ की लागत बढ़ गई है, जबकि ८७१ परियोजनाएं देरी से चल रही हैं।

 

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