-स्वास्थ्य विभाग कह रहा कैसे दिलाएं कुपोषण से मुक्ति
सामना संवाददाता / मुंबई
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बार अपना सातवां बजट पेश करते हुए भले ही रिकॉर्ड कायम किया है, लेकिन इस बजट में स्वास्थ्य को ज्यादा तवज्जो न देकर एक तरह से देश के नागरिकों के हेल्थ से खिलवाड़ करने का काम किया है। सबसे चिंता का विषय यह है कि कुपोषण को ठेंगा दिखाते हुए बजट में इसके लिए निवाले जितना फंड मुहैया कराया गया है। ऐसे में राज्य स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कह रहे हैं कि इतने कम बजट में महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि देश को कुपोषण से मुक्ति कैसे दिला पाएंगे।
इस बजट में स्वास्थ्य के लिए ९,०९५९ करोड़ रुपए का फंड मुहैया कराया गया है, जो पिछले साल की अपेक्षा महज १३ फीसदी ही बढ़ा है। राज्य स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि साल २०१७ की राष्ट्रीय नीति में कहा गया है कि स्वास्थ्य सेवाओं पर केंद्र और राज्य सरकार का सकल खर्च राष्ट्रीय उत्पाद की २.५ फीसदी होगा। इसमें महाराष्ट्र के लिए केंद्र का हिस्सा ४० फीसदी यानी सकल राष्ट्रीय उत्पाद एक फीसदी भी होगा। लेकिन घोषित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस वर्ष स्वास्थ्य बजट में कम से कम १०० फीसदी वृद्धि की आवश्यकता थी। इस साल भी इस बजट में केवल १३ फीसदी की मामूली बढ़ोतरी हुई है। महाराष्ट्र के जन आरोग्य अभियान के डॉ. अभय शुक्ल का कहना है कि देश में सरकारी स्वास्थ्य देखभाल का बमुश्किल ३० फीसदी आबादी ही लाभ ले पाती है। लेकिन मोदी कार्यकाल में इस सेवा में भी गिरावट आ रही है। हाल के एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में पाया गया कि केवल २० फीसदी सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं सरकार द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करती हैं, जबकि ८० फीसदी घटिया दर्जे की हैं।