गमों की अब ये निशानी लगती है।
मुझे तो हिज्र की कहानी लगती है।।
नफासत से..दिल को तोड़ देने की।
रस्म तो मुझको पुरानी लगती है।।
यूं तो हर मौसम है इश्क का लेकिन।
साथ उनके हर रुत सुहानी लगती है।।
नफरत उनकी भी प्यार से कुबूल है।
उनसे जिंदगी में आसानी लगती है।।
डॉ वासिफ काजी, इंदौर