चरित्र और वैभव जीवन की दो विभिन्न दिशाएं हैं।
वैभव बाहरी शान ओ शौकत है
इसमें ऐश्वर्य और भव्यता झलकती है
जबकि चरित्र अंदरूनी अनुशासित स्वभाव है
भव्यता एकत्रित की जा सकती है
चरित्र निर्माण करना होता है।
भव्यता की ओर अमीरी के
सपने संजोने वाले लोग आकर्षित अवश्य होते हैं
भले ही चरित्र का आर्थिक मूल्य
हमारी तिजोरियां नहीं भरता हो,
बैंक बैलेंस नहीं बढ़ाता हो,
परंतु आपका सरल स्वभाव चरित्र
सैंकड़ों दिल खरीदने/जीतने की ताकत रखता है।
भव्यता श्रीमंत का भव्य प्रदर्शन है
जो सिक्कों से खरीदा जा सकता है
कभी भी इसकी चमक मंद पड़ सकती है
जबकि चरित्र बिकाऊ नहीं है
न ही रुपयों से खरीदा जा सकता है
चरित्र के चेहरे पर फर्जी चमक
नहीं पोती जा सकती है…
चरित्र को किसी मेकअप की जरूरत नहीं पड़ती है
वो जो भीतर है सो ही
उसका वास्तविक स्वरूप दिखाई देता है
बशर्ते हमारे चरित्र में दिखावे की शराफत न हो।
-त्रिलोचन सिंह अरोरा