मुख्यपृष्ठधर्म विशेषकरिश्माई कैलाश मंदिर! ... औरंगजेब के आघातों का नहीं हुआ था असर

करिश्माई कैलाश मंदिर! … औरंगजेब के आघातों का नहीं हुआ था असर

योगेश कुमार सोनी

दुनिया की कई जगहों में ऐसे मंदिर हैं, जो अपने इतिहास और अपनी प्राचीन परंपराओं के साथ अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों की वास्तुकला कुछ ऐसी है कि आज भी नवीन तकनीकी और विज्ञान की सुविधाओं के बाद भी इस प्रकार की वास्तुकला को हकीकत में उतार पाना बहुत ही मुश्किल है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के विषय में बता रहे हैं, जो महाराष्ट्र के संभाजीनगर की एलोरा की गुफाओं में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण चट्टान को काटकर और तराश कर किया गया है। ऐतिहासिक प्रमाण के आधार पर इस मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम द्वारा सन् ७५६ से सन् ७७३ के दौरान कराया गया है। मंदिर के निर्माण को लेकर यह मान्यता है कि एक बार राजा की तबीयत बहुत बिगड़ गई थी उसी दौरान रानी ने उनके स्वस्थ होने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की थी और यह प्रण लिया कि राजा के स्वस्थ होने पर वे मंदिर को बनवाएंगी और मंदिर के शिखर को देखने तक व्रत रखेंगी। राजा जब स्वस्थ हुए तो मंदिर के निर्माण के प्रारंभ होने की बारी आई लेकिन कारीगरों द्वारा बताया गया कि मंदिर के निर्माण में बहुत समय लगेगा। इतने लंबे समय व्रत रख पाना बेहद कठिन था। तब रानी ने भगवान शिव से सहायता मांगी। कहा जाता है कि इसके बाद उन्हें भूमि अस्त्र प्राप्त हुआ, जो पत्थर को भी भाप बना सकता है और इसी अस्त्र से मंदिर का निर्माण इतने कम समय में संभव हो पाया। बाद में इस अस्त्र को भूमि के नीचे छुपा दिया गया। २७६ फुट लंबे और १५४ फुट चौड़े इस मंदिर को एक ही चट्टान को तराश कर बनाया गया है। इस चट्टान का वजन लगभग चालीस टन है। मंदिर जिस चट्टान से बनाया गया है, उसके चारों ओर सबसे पहले चट्टानों को काटा गया है। अगल-बगल के लगभग दो लाख टन पत्थरों को हटाया गया है। आमतौर पर पत्थर से बनने वाले मंदिरों को सामने की ओर से तराशा जाता है, लेकिन ९० फुट ऊंचे कैलाश मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसे ऊपर से नीचे की तरफ तराशा गया है। कैलाश मंदिर एक ही पत्थर से निर्मित विश्व की सबसे बड़ी संरचना है। इतिहास बताता है कि औरंगजेब ने कई मंदिरों को नष्ट किया था और वहां मस्जिदें बनवार्इं। इस मंदिर को भी कई बार क्षतिग्रस्त करने का प्रयास किया गया था लेकिन उसकी लाख कोशिशों के बावजूद वह मंदिर को बाल के बराबर भी क्षति नही पहुंचा पाया था।

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