डॉ. इमरान खान / छिंदवाड़ा
यूं तो मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में देखने जानने और प्रकृति का साथ पाने के लिए बहुत कुछ है लेकिन छिंदवाड़ा से चौरागढ़ महादेव यानी भोले बाबा की नगरी तक पहुंचने की यात्रा की बात ही कुुछ और है। महाशिवरात्रि पर होनेवाली इस यात्रा को बड़ा महादेव यात्रा कहा जाता है। लेकिन सच तो यह है कि पूरी यात्रा के दौरान यहां कण-कण में बसे शंकर को अगर महसूस करना है तो एक बार जरूर यहां आए चौरागढ़ महादेव।
बड़ा महादेव मंदिर वैसे तो होशंगााबाद यानि नर्मदापुरम जिले के पचमढ़ी के चौरागढ़ पर भगवान शिव का निवास है। पचमढ़ी नर्मदा पुरम जिले का हिस्सा है लेकिन छिंदवाड़ा से शुरू होनेवाली इस यात्रा की बात ही अलग है।
दरअसल छिंदवाड़ा के जुन्नारदेव से लेकर चौरागढ़ महादेव पर्वत पचमढ़ी तक का ये पूरा इलाका महादेव क्षेत्र कहलाता है। सदियों से यह यात्रा छिंदवाड़ा के जुन्नारदेव जिसे पहली पायरी भी कहा जाता है, यहां से पैदल शुरू होती थी और आज भी लोग इस परंपरा को निभाते हैं। अब तो क्योंकि हर तरफ से सड़कें बन गई हैं इसलिए लोग अलग-अलग मार्गों होते हुए चौरागढ़ महादेव मंदिर पहुंच जाते हैं लेकिन सबसे सटीक और पारंपरिक मार्ग पहली पायरी से शुरू होता है। कहते हैं पहले ये रास्ता इतना दुर्गम था कि जब लोग महादेव यात्रा पर निकलते थे तो उन्हें तिलक करके ऐसे विदा किया जाता था जैसे किसी ऐसी जगह पहुंच रहे हो जहां से लौट कर आना शायद मुमकिन न हो। इसका कारण है रास्ते में ऐसे दुर्गम पहाड़ और खाई होती थी कि अक्सर लोग उनमें जान गवां बैठते थे। पहले के लोग पेड़ों की शाखाओं और जड़ों को पकड़ते हुए पहाड़ पर चढ़ते थे।
अब तो आसानी है पहली पायरी से यात्रा शुरू करनेवाले छिन्दवाड़ा की रामलीला मंडल के अध्यक्ष अरविंद राजपूत बताते हैं कि यहां से शिवभक्त पदम पठार की कठिन चढ़ाई पार करते हुए लगभग 12 किलोमीटर की यात्रा कर सतघघरी पहुंचते हैं। यहां पानी के सात कुंड हैं। पहले कुंड में फूल प्रवाहित करने पर वह सातों कुंड से बहता हुआ दिखाई देता है। यह महादेव यात्रा का पहला पड़ाव है। थोड़ा विश्राम कर सतघघरी के बाद गोरखनाथ, मछिंदर नाथ पर्वत की चढ़ाई को पार करते हुए नागथाना होकर भक्त भूरा भगत पहुंचते हैं यह करीब 13 किलोमीटर की यात्रा होती है।
भूरा भगत छिंदवाड़ा के तामिया की पहाड़ियों में स्थित एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। भूरा भगत के दर्शन के बाद ही महादेव यात्रा पूरी मानी जाती है। यहां पर सबसे बड़ा मेला लगता है। असल में महादेव मेला यहीं लगाया जाता है। क्योंकि भूरा भगत से पचमढ़ी चौड़ागढ़ के लिए वह कठिन चढ़ाई शुरू होती है, जिसे पूरा करना भक्तों के लिए महादेव से मिलन का श्रध्दा से भरा संघर्ष है। भूरा भगत मंदिर को स्पर्श कर उसकी परिक्रमा करने की प्रथा है। कहते हैं ऐसा करके भक्त आगे आनेवाली यात्रा के कष्टों से बचने के लिए बाबा को मनाते हैं।
मेला भरपूर भरा होता है। मध्य प्रदेश महाराष्ट्र हर जगह से भक्त भूरा भगत में कहीं भंडारे चल रहे होते हैं तो कहीं भक्तों के लिए विभिन्न संस्थाएं अन्य सुविधाओं का इंतजाम कर रही होती हैं।
लोहे के छोटे बड़े त्रिशूल कंधों पर लिए भक्त ‘एक नमन गौरा पार्वती, हर बोला हर हर महादेव’ के जयकारों के साथ आगे बढ़ रहे होते हैं। भूरा भगत से छोटी भुवन फिर देनवा नदी के दर्शन कर शिवभक्त बड़ी भुवन होते हुए नंदीखेड़ा पहुंचते हैं यहीं पहली पायरी समाप्त होती है।
अब कठिन यात्रा शुरू होती है ४२०० फीट की बेहद ऊंची चढ़ाई। ३२५ सीढ़ियां चढ़ते हुए लगभग साढ़े तीन घंटे में शिवभक्त पचमढ़ी के चौरागढ़ पर्वत पर स्थित महादेव मंदिर पहुंचते हैं। अब सीढ़ियां हैं तो चढ़ना आसान है। पहले बिना सीढ़ियों के तीन दिन लग जाते थे। अरविंद राजपूत बताते हैं कि यहां स्थित मंदिर में बाबा भोलेनाथ की प्रतिमा के दर्शन मात्र से ही सारी थकान दूर हो जाती है। मंदिर परिसर मे हजारों त्रिशूल नजर आते हैं। अरविंद बड़े खुश होकर कहते हैं मैं और मेरा परिवार वर्षों से महादेव की यात्रा कर रहे हैं। अब तो हमारी बड़ी माता मंदिर समिति का जत्था विशाल त्रिशूल लेकर महादेव मंदिर में समर्पित करता है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के शिव भक्तों के लिए तो यह प्राचीन तीर्थ स्थल है ही लेकिन दिल्ली और अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोग शिव से साक्षात्कार करने प्रकृति से एकाकार होने यहां पहुंचते हैं। भक्तों को अक्सर कहते सुना जाता है कि यहां उन्होंने शिव तत्व को महसूस किया है।