- विशेषज्ञ ने दी चेतावनी
गत वर्ष बड़ी धूमधाम से नामीबिया से चीते लाए गए थे। पीएम मोदी ने स्वयं इस प्रोजेक्ट को मॉनीटर किया था और चीतों को कूनो नेशनल पार्क के बाड़े में छोड़ा था, पर न जाने क्या हुआ कूनो में चीते मरने लगे। नामीबिया से लाए गए कुल चीतों में से तीन वयस्क चीतों की मौत हो चुकी है। कूनो में एक मादा चीते ने चार शावकों को जन्म दिया था। गत महीने के आखिरी सप्ताह में इनमें से पहले एक और फिर बाद में दो शावकों की मौत हो गई। कुल मिलाकर, अभी तक छह चीतों की मौत हो चुकी है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि कहां गड़बड़ हुई है?
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के वैज्ञानिक सलाहकार एजेटी जॉनसिंह चीतों की मौतों पर अफसोस जताते हुए कहते हैं कि हिंदुस्थान की जलवायु चीतों के रहने के लिहाज से उपयुक्त नहीं है। कूनो नेशनल पार्क में दम तोड़ रहे चीतों और उनके शावकों पर एक चर्चा के दौरान एजेटी जॉनसिंह ने कहा कि हमारे देश की जलवायु इन चीतों के लिए सही नहीं है। कूनो नेशनल पार्क आंशिक तौर पर पहाड़ी इलाका है और यहां तापमान बहुत ज्यादा है, जबकि नामीबिया में इस समय ठंड हो रही होगी। दूसरा बड़ा कारण है कि चीतों के सर्वाइवल के लिए यहां शिकार की भी सही व्यवस्था नहीं है। कूनो में तेंदुओं की भी अच्छी-खासी आबादी है। एक ही इलाके में चीते और तेंदुए नहीं रह सकते। चीतों के जीवित रहने के लिए वहां शिकार होना चाहिए, ताकि वे भूखे ना रह सकें। विशेषज्ञ के अनुसार, चीता वास्तव में शांत किस्म का जानवर होता है। वे कहते हैं, हमने अभी तक ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं देखी, जिसमें कहा गया हो कि चीते ने किसी शख्स पर हमला किया है। हिंदुस्थान में शेरों के संरक्षण के बारे में जॉन सिंह कहते हैं कि गुजरात का गिर ३०,००० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पैâला हुआ है। गुजरात में यह सफल रहा क्योंकि यह शाकाहारी राज्य है। गुजरात के लोग शेरों से जुड़ाव महसूस करते हैं। अगर राज्य में हमारी कोई भी टीम शेरों को किसी दूसरे राज्य में रिलोकेट करने जाती है तो वन्यकर्मियों की पिटाई कर दी जाती है।
गर्मी ने किया हलाकान
वास्तव में चुनौती एक नहीं है। चीता स्वभाव से अपने समकक्षी तेंदुआ, बाघ और शेर के मुकाबले नाजुक प्राणी होता है। वह बहुत ज्यादा गर्मी सह नहीं पाता। कूनो के कई हिस्सों में इस समय तापमान ४५ डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच चुका है। चीते इतनी गर्मी में रहने के आदी नहीं होते। ऐसे में उनके बीमार पड़ने की संभावना बहुत ज्यादा रहती है। आज से ७० साल पहले जब देश से चीतों की संख्या शून्य हुई थी तो हो सकता है कि इन सभी कारणों का प्रभाव पड़ा हो। इसलिए सावधान रहने की जरूरत है। सरकार को चाहिए कि इस मामले में विशेषज्ञों की एक टीम बनाकर परिस्थिति का अध्ययन करवाए, ताकि बाकी के बचे हुए चीतों की उचित व्यवस्था की जा सके। वरना इसी तरह चीतों की चिता सजती रहेगी।