सामना संवाददाता / मुंबई
हाल ही में मुंबई मराठी पत्रकार संघ में आयोजित एक कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिवक्ता जॉयदीप मुखर्जी की पुस्तक ‘चेका, द रोड ऑफ बोन्स’ का विमोचन किया गया। इस पुस्तक में उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन के उन रहस्यों को उजागर किया है, जिन्हें अब तक सुलझा पाना मुश्किल था।
लेखक ने अपनी पुस्तक में यह दावा किया है कि नेताजी की मृत्यु १८ अगस्त १९४५ को विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी, जैसा कि कई दशकों से कहा जाता रहा है। इसके बजाय, नेताजी उस समय सोवियत संघ (रूस) में जीवित थे। लेखक का मानना है कि नेताजी ने वहां वुलार्क में शरण ली थी और फिर ओम्स्क शहर के याकुत्सक जेल में कक्ष संख्या ५६ में वैâद थे। यहीं पर उन्हें ३० डिग्री सेल्सियस की कड़ी सर्दी और अत्याचारों का सामना करना पड़ा।
लेखक ने यह भी उल्लेख किया कि सोवियत सेना ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद लाखों बंदियों को साइबेरिया की कड़क सर्दी में वैâद किया था। उनमें से अधिकांश या तो मारे गए या अत्यधिक ठंड से उनकी मौत हो गई। इन मृतकों के शवों को ओब नदी के किनारे दफनाया गया और बाद में उसी स्थल पर ‘द रोड ऑफ बोन्स’ (हड्डियों की सड़क) का निर्माण किया गया, जो आज भी एक भयावह याद है उस काल की।
पुस्तक में रिटायर्ड जज मनोज के. मुखर्जी आयोग और न्यायमूर्ति सहाय आयोग के निष्कर्षों का हवाला देते हुए यह सिद्ध किया गया है कि रैनकोजी मंदिर में मिली राख नेताजी की नहीं थी, मॉन्क गुमनामी भी नेताजी नहीं थे। इस आधार पर लेखक ने यह निष्कर्ष निकाला कि नेताजी का अंतिम रहस्य रूस में छुपा है और अब रूस सरकार को इस बारे में जवाब देना चाहिए। इस विमोचन कार्यक्रम में उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने आह्वान किया कि केंद्र सरकार रूस सरकार से मिलकर नेताजी के अंतिम दिनों का सत्य सामने लाए। साथ ही, लेखक ने केंद्र सरकार से अपील की है कि वह दिल्ली के राजपथ पर आजाद हिंद फौज के शहीद सैनिकों की याद में एक युद्ध स्मारक स्थापित करे। लेखक का विश्वास है कि वर्तमान सरकार इस जरूरी मुद्दे पर आवश्यक कदम जरूर उठाएगी।