६९ गाड़ियां खरीदने को सरकार ने दी मंजूरी
अभिषेक कुमार पाठक / मुंबई
महाराष्ट्र सरकार ने एक बार फिर से अपने अव्यवस्थित खर्चों से जनता को चौंका दिया है। गृह (परिवहन) विभाग के ६९ इंटरसेप्टर वाहनों की खरीद और उन पर रडार डिवाइस की स्थापना के लिए कुल ३२ करोड़ रुपए से अधिक की मंजूरी दी गई है। हैरानी की बात यह है कि इन वाहनों की कीमत से अधिक लागत इन पर लगाए जाने वाले रडार सिस्टम की है, जो वाहनों के मूल्य से लगभग दोगुनी है। ऐसे में गृह मंत्रालय के इस ‘झिंगालाला’ पर राजनीतिक गलियारों में इस तरह की चर्चा है कि चार आने की मुर्गी पर बारह आने का मसाला।
मिली जानकारी के अनुसार, ‘घाती’ सरकार ने ६९ इंटरसेप्टर वाहनों की खरीद के लिए ९ करोड़ रुपए खर्च करने का निर्णय लिया है, जबकि इन वाहनों पर रडार डिवाइस लगाने के लिए करीब १६ करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च किया जाएगा। कुल मिलाकर यह २६ करोड़ रुपए से अधिक का खर्च बनता है, जो राज्य के वित्तीय संकट के समय में अत्यधिक और अव्यवहारिक प्रतीत होता है।
‘घाती’ सरकार ने ६९ इंटरसेप्टर वाहनों की खरीद के लिए ९ करोड़ रुपए खर्च करने का निर्णय लिया है, जबकि इन वाहनों पर रडार डिवाइस लगाने के लिए १६ करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च किया जाएगा।
सरकारी धन का दुरुपयोग … कर्ज के बोझ में डूबी सरकार कर रही है फिजूलखर्ची!
महाराष्ट्र इस समय ७ लाख करोड़ के कर्ज के बोझ तले दबा है, पर ‘घाती’ सरकार फिजूलखर्ची से बाज नहीं आ रही है। ताजा मामला वाहन खरीद का है। खास बात यह है कि इस वाहन खरीद की जो लागत आ रही है, उससे ज्यादा पैसा इस वाहन पर लगनेवाले इंटरसेप्टर पर खर्च किया जा रहा है। इस खर्च को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या राज्य के पास इतनी बड़ी राशि खर्च करने का औचित्य है, जबकि रडार सिस्टम की लागत वाहनों से दोगुनी है। क्या इस अत्यधिक महंगे उपकरण की वास्तव में आवश्यकता है, या फिर यह केवल सरकारी धन का दुरुपयोग है?
विपक्ष और राज्य के कई सामाजिक संगठनों ने इस पैâसले की आलोचना की है। उनके अनुसार, राज्य में स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश की जरूरत है, लेकिन सरकार ने इन आवश्यकताओं को अनदेखा कर वाहनों और उपकरणों पर इतनी बड़ी राशि खर्च करने का पैâसला किया है। आम लोगों के साथ ही कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह खर्च न केवल अनावश्यक है, बल्कि यह राज्य के सीमित संसाधनों का भी गलत उपयोग है।