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चाइना का चपत : महंगी होती दवाओं से मरीजों का निकल रहा दम! … केमिस्टों का भी मुनाफा हुआ कम

आनंद श्रीवास्तव / मुंबई
सरकार ने थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में बदलाव के बाद सामान्य दवाओं के दाम में बढ़ोतरी करने का फैसला किया और १ अप्रैल से दवाइयों की कीमत में १२ फीसदी का इजाफा किया था, जिसके चलते लगभग ८०० प्रकार की दवाइयों के दाम बढ़ गए। नतीजा यह हुआ कि मेडिकल स्टोर से ग्राहकों ने मुंह फेर लिया है। दाम ज्यादा और मुनाफा कम, यह दोहरी मार छोटे दवा व्यवसायियों पर पड़ रही है तो वहीं दिल और दिमाग के मरीजों का इलाज महंगा हो गया।

जिन ८०० से अधिक आवश्यक दवाओं के दाम में इजाफा किया गया है इनमें पेनकिलर, एंटीबायोटिक्‍स और दिल की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाएं शामिल हैं। पहले से ही महंगाई से परेशान जनता के लिए यह एक और बड़ा झटका साबित हो रहा है। दवाओं के दाम तय करने वाले नियामक नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी ने इस बारे में बताया है कि देश में थोक मूल्य सूचकांक में बड़ा बदलाव आया है।
मेडिकल व्यापारी निराश
मुंबई के मेडिकल स्टोर वालों का कहना है कि कोरोना के बाद से एक तो वैसे ही धंधा मंदा था, ऊपर से अब जो दाम में बढ़ोतरी का पैâसला हुआ है इससे मुनाफा कम हो गया है और लोग जेनेरिक की दुकान में जाने लगे हैं। यहां जो ग्राहक आ भी रहे हैं। वह लोग एक स्ट्रिप दवा की जगह आधा स्ट्रिप ही खरीद रहे हैं, ताकि उनके बजट में दवाई आ सके। दवा के थोक व्यापारियों की संस्था भी है नाराज दवाइयों के बढ़े दाम से बल्क ड्रग एंड एलाइड डीलर्स एसोसिएशन में भी नाराजगी का माहौल है लेकिन उनका यह भी मानना है कि बढ़ोतरी के सिवा कोई चारा भी नहीं था। एसोसिएशन के एक पदाधिकारी का कहना है कि इन्फ्लेशन तो इसका एक कारण है लेकिन सबसे मुख्य कारण भारत में दवा बनाने के लिए लगने वाले रॉ मटेरियल की कीमत में भारी बढ़ोतरी है। ज्यादातर रॉ मटेरियल की यह कंपनियां चीन में हैं। कोविड के समय से दवाइयों की मांग बढ़ गई और उसकी तुलना में रॉ मटेरियल सप्लाई घट गई। कोविड महामारी से पहले डॉलर की कीमत ७५ रुपए के आस-पास थी, जो कोविड के बाद बढ़कर ८२ रुपए तक पहुंच चुका है। इसी तरह यूरो भी ८२ से बढ़कर ९१ हो गया है। लेकिन इस पदाधिकारी ने इस बढ़ोतरीr के लिए कहीं न कहीं केंद्र सरकार को भी जिम्मेदार ठहराया है।
कैसी है भारतीय फार्मास्युटिकल बाजार की स्थिति
यदि भारतीय फार्मास्युटिकल बाजार में २०१९ से २०२३ तक लगभग ९ प्रतिशत की बढ़ोतरीr हुई है। बढ़ोतरी आंकड़ों में हो रही है लेकिन मुनाफे का अनुपात नहीं बढ़ा है। अप्रैल २०१९ में भारतीय फार्मास्युटिकल बाजार १,३२,८१० करोड़ रुपए का था, जो अप्रैल २०२३ में बढ़कर १,८४,८५९ करोड़ रुपए हो गया। अप्रैल २०२२ के मुकाबले इसमें ९.७ फीसदी इजाफा हुआ। अन्य सभी प्रमुख उपचार श्रेणियों में भी मूल्य के लिहाज से बिक्री बढ़ी है।
अप्रैल २०२३ में हृदय रोग की २३,९९९ करोड़ रुपए की दवाएं बिकीं, जबकि अप्रैल २०१९ में १६,५२७ करोड़ रुपए की दवा ही बिकी थीं। मूल्य के लिहाज से बिक्री इसलिए बढ़ रही है, क्योंकि दवा कंपनियों ने इस बीच दवाओं की कीमतें बढ़ाई हैं। अप्रैल २०२३ में बिक्री महज १.९ फीसदी बढ़ी पर मूल्य के लिहाज से बिक्री ५.९ फीसदी बढ़ी और नई दवाओं की बिक्री १.८ फीसदी ज्यादा रही। केवल अप्रैल का महीना देखें तो २०२२ के मुकाबले २०२३ में ८.२ फीसदी कम दवा बिकीं। जबकि बिकने वाली दवाओं की कीमत ४.८ फीसदी ज्यादा रही।

 

 

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