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संकट में चहचहाहट! ४५ पक्षियों की प्रजातियों पर बढ़ा खतरा

  • अति संकट में टिटिहरी, गिद्ध, गुलाबी बतख

सामना संवाददाता / मुंबई
हर इंसान की चाहत होती है कि उसकी दिन की शुरुआत अच्छी हो। दिन की अच्छी शुरुआत करने में सुंदर खिली धूप, पेड़-पौधों की हरियाली के साथ चिड़ियों की चहचहाहट अहम भूमिका निभाती है। लेकिन इन चिड़यों की चहचहाहट संकट में है। दरअसल, मुंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) ने पक्षियों की ४५ प्रजातियों की एक सूची जारी की है, जो अति संकटग्रस्त, संकटग्रस्त और संकट के समीप हैं। इसमें टीटीहरी, बाज, गिद्ध, गुलाबी बतख सहित सात प्रजातियों की पक्षियां अति संकट में हैं। ऐसा उक्त संस्था की रिपोर्ट में दर्ज किया गया है।
गौरतलब है कि अधिकांश पक्षी जैव विविधता में एक महत्वपूर्ण कारक हैं। प्रकृति के संतुलन में पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों और उनकी उचित संख्या काफी महत्वपूर्ण होती है। पर्यावरण संतुलन में इनका अहम योगदान होता है। मानवी अतिक्रमण और चारों तरफ बनती बहुमंजिली इमारतों के कारण कई प्रजातियां लुप्त होती जा रही हैं। जैव विविधता दिवस के अवसर पर `बीएनएचएस’ द्वारा ४५ ऐसे पक्षियों के प्रजातियों की एक सूची प्रकाशित की गई है, जिसके अनुसार सात अत्यधिक संकट में, नौ संकट में और २९ प्रजातियां संकट के समीप हैं। कुछ वर्ष पहले महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में शार्क (मालढोक), सफेद गिद्ध पाए जाते थे लेकिन अतिक्रमण के कारण अब इनकी संख्या नगण्य रह गई है। इसी प्रकार राज्य में अन्य पक्षियों की ४५ प्रजातियां खतरे में हैं।
पक्षियों को कैसा खतरा?
कई पक्षी उच्च वोल्टेज तारों के साथ-साथ पवन चक्कियों के तेज ब्लेडों में फंसकर मर जाते हैं। कई बार आवारा कुत्ते भी पक्षियों को अपना शिकार बना लेते हैं। मृत मवेशियों के मांस का सेवन, बढ़ती महामारी, मवेशियों में एंटीबायोटिक्स पक्षियों के प्रजनन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। आर्द्रभूमि के विनाश के कारण जलपक्षियों की संख्या में कमी आई है। बड़े पैमाने पर विकास गतिविधियों, वनों की कटाई, वार्मिंग, कीटनाशकों के उपयोग के कारण पक्षियों की मौत हो रही है। पक्षी वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि अगर समय पर उपाय नहीं किए गए तो कई प्रजातियां हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी।

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