उल्हासनगर
उल्हासनगर छोटा सा शहर है परंतु निजी आर्थिक उत्पन्न के मामले में काफी आगे है। पैसे के मामले में उल्हासनगर ने बड़े-बड़े शहरों को पीछे छोड़ दिया है। उल्हासनगर में सरकारी योजना के फंड से विकास के नाम पर लूट मची है। ‘दोपहर का सामना’ के सिटीजन रिपोर्टर महेश मिरानी ने उल्हासनगर को विकास की बजाय विनाश के मार्ग पर जाता हुआ बताया है।
महेश मिरानी ने बताया कि आज से विगत दस वर्ष पूर्व किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, उल्हासनगर की सड़कों का ८० फीसदी विकास हो गया है। अर्थात ८० फीसदी सड़क सीमेंट की बनाई जा चुकी है। इन सड़कों को पच्चीस साल तक देखने की जरूरत नहीं है। मनपा द्वारा की गई घोषणा गलत साबित हो रही है। उल्हासनगर की काफी सड़कें गड्ढा युक्त हैं। सीमेंट की सड़क पर चलते समय कमर पर झटके लगते हैं। सरकार की तरफ से दिए गए फंड से सड़क बनाने का ठेका तो दिया जाता है लेकिन कमीशन के चक्कर में क्वालिटी की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं जाता है।
बिना पूर्व नियोजन के कभी पानी, कभी गैस, कभी नेट तो कभी भूमिगत गटर के नाम से सड़क को खोद दिया जाता है। सड़क तोड़ते समय नागरिकों की सुख-सुविधा को नजरअंदाज कर घटिया दर्जे का काम किया जा रहा है। आज गटर के नाम पर पूरे शहर की सड़कों का बारह बजा कर रखा गया है। सामने मानसून है, इसके बावजूद शहर के गड्ढे को बनाने के नाम पर केवल थूक पट्टी का काम शुरू है। सीमेंट की सड़क पर डामर लगाया जा रहा है। ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ जैसी स्थिति उल्हासनगर में शुरू है।
उल्हासनगर में जब अज्ञान लोगों को शहर का अभियंता, विभागीय अभियंता बनाया गया है तो शहर के सुधार की कामना वैâसे की जा सकती है। उल्हासनगर में घटिया काम के बारे में एक ही चर्चा है, पैसा बोलता है। घटिया से घटिया काम करने के बावजूद रिश्वतखोरी में भले ही पकड़े गए होंगे, परंतु घटिया सड़क बनाने के चलते किसी भी अधिकारी को सजा नहीं हुई है।
पूर्व नगरसेवकों में से कुछ लोगों ने घटिया सड़क को लेकर आवाज जरूर उठाई है, परंतु उनकी आवाज कुछ दिन में बंद हो गई।