मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनासिटीजन रिपोर्टर : बदहाली में जी रहीं कमाठीपुरा की सेक्स वर्कर्स

सिटीजन रिपोर्टर : बदहाली में जी रहीं कमाठीपुरा की सेक्स वर्कर्स

मुंबई

दक्षिण मुंबई का कमाठीपुरा इलाका, जिसे लोग रेड लाइट एरिया के नाम से भी जानते हैं। यहां अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करनेवाली सैकड़ों सेक्स वर्कर बदहाली की अवस्था में जी रही हैं। इनके सामने भुखमरी की नौबत आ गई है। इस महंगाई के दौर में उन्हें घर चलाना मुश्किल हो रहा है। यहां तक कि इनके पास घर का रेंट देने के लिए भी पैसे नहीं हैं। ‘दोपहर का सामना’ के सिटीजन रिपोर्टर शंकर अन्ना ने इन सेक्स वर्करों की व्यथा को सामने लाने का काम किया है।
कोविड ने तोड़ी कमर
शंकर अन्ना ने बताया कि दो बाई छह फुट के एक केबिननुमा कमरे के लिए उन्हें हर महीने ९ से १२ हजार रुपए किराया चुकाना पड़ता है। जिस महीने में वे भाड़ा नहीं दे पाती हैं तो मकान मालिक कमरा खाली कराने की धमकी देने लगता है। पेट की खातिर अपना तन, अपनी इज्जत बेचने वाली इन सेक्स वर्करों का कहना है कि जब से कोरोना आ गया तब से हम लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच ग्ए हैं।
सरकार नहीं कर रही कोई व्यवस्था
सेक्स वर्करों का कहना है कि ‘ग्रेस फाउंडेशन’ जैसी कई सामाजिक संस्थाओं ने हमारे लिए राशन की व्यवस्था कराई। उनका कहना है कि इस दलदल से निकल कर खुली हवा में सांस लेना चाहती हैं। वे भी मेहनत, मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालना चाहती हैं। उन्हें इस काम से खुशी नहीं मिलती, बल्कि मजबूरी में उन्हें यह सब करना पड़ता है। जब इनसे सवाल किया गया कि क्या सामाजिक संस्थाओं द्वारा या सरकार से कुछ मदद मिलती है तो इसके जवाब में वे कहती हैं कि सामाजिक संगठन से जुड़े कई लोग आते हैं, कुछ दवा आदि दे जाते हैं। कुछ राशन भी बंटवा देते हैं, लेकिन हमारे पुनर्वसन के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता है। हम सभी का सरकार से कहना है कि जिस तरह से झोपड़पट्टी में रहनेवालों के लिए सरकार पुनर्वसन का काम करती है, उसी तरह हम लोगों पर भी ध्यान दे, जिससे हमें इस नारकीय जीवन से छुटकारा मिल सके।
पुनर्वसन के इंतजार में सेक्स वर्कर
कमाठीपुरा की पहली गली से लेकर १४वीं गली तक देह व्यापार का धंधा चलता है। इनकी संख्या साल १९९२ तक तकरीबन ५ हजार थी, जो अब घटकर दो हजार या इससे अधिक हो सकती है। वैसे इस काम को रोकने के लिए कुछ सामाजिक संस्थाएं या एनजीओ द्वारा करीब २०० महिलाओं को यहां से निकालकर उन्हें कुटीर धंधों में लगा दिया गया है, जहां आज वे अच्छी तरह से अपना उदर निर्वाह कर रही हैं। बाकी इसी आस में बैठी हैं कि उनका पुनर्वसन कब होगा?
क्या है यहां का इतिहास?
गौरतलब है कि १६वीं सदी में जब अंग्रेज सूरत होते हुए मुंबई आए थे, तो उन्होंने गेटवे ऑफ इंडिया के पास जहाज का लंगर डाला। उस समय यहां आदिवासी रहा करते थे और समुद्र से मछलियां पकड़ कर आजीविका चलाया करते थे। लोग अनपढ़ थे। बोंब नाम के जहाजकर्मी जो पहली बार इस आइलैंड पर आया था, उसके नाम से इस जगह का नाम बांबे रखा गया था, जो बाद में बदलकर मुंबई हो गया है। अंग्रेजों ने मुंबई के विस्तार के लिए आंध्र प्रदेश के श्रमिकों (कमाठी) को यहां काम करने के लिए लाया था और ये लोग जहां रहते थे, वह जगह कमाठीपुरा के नाम से प्रसिद्ध है।

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