कल्याण
देश में काफी सरकारी कर्मचारी और अधिकारी चाहे फिर वो राज्य के हों या फिर केंद्र के सभी लोग सरकारी अनाज लेने की लाइन में हैं, जबकि सरकार की घोषणा है कि सरकारी अनाज का असली हकदार देश का गरीब वर्ग है, परंतु देखा जा सकता है कि कई गरीब वर्ग के लोग जहां इस सुविधा से वंचित हैं तो वहीं धनवान लोग अनाज ले रहे हैं। इस योजना के पात्र लोगों को इसका लाभ मिले इसके लिए सरकार सही कदम नहीं उठा रही है। ‘दोपहर का सामना’ के सिटीजन रिपोर्टर विश्वास कालुंखे ने सरकार की मंशा पर संदेह व्यक्त किया है।
विश्वास कालुंखे का कहना है कि मुफ्त वोट पाने के चक्कर में केंद्र व राज्य सरकार ने जहां गरीबों को मुफ्त में सरकारी अनाज देने की योजना शुरू की है, वहीं उक्त योजना जरूरत मंद लोगों को न मिलकर उसका उपभोग बड़े लोग कर रहे हैं। सरकार की यह योजना एक प्रकार से भ्रष्टाचार योजना बनती जा रही है। गरीबों को जब अनाज देने की बारी आती है तो ऑनलाइन मशीन ही जवाब दे देती है। उन्हें कभी नेट तो कभी अंगूठे का प्रिंट न आने का कारण बताकर अनाज देने से वंचित कर दिया जाता है। इतना ही नहीं, कभी-कभी गरीबों को निर्धारित अनाज से कम दिया जाता है। कालुंखे ने बताया कि शायद सरकार की मंशा पात्र लोगों को अनाज देने की नहीं है, नहीं तो वह आदेश जारी कर देती कि सभी सरकारी लोगों के अलावा अर्ध सरकारी कंपनी और एक लाख रुपए तक की आय वालों को सफेद कार्ड बनाकर विभाग में दें। ऐसा करने से सरकारी अनाज का उपयोग सिर्फ पात्र लोग अर्थात गरीब ही कर सकेगा और अपात्र लोग योजना से बाहर हो जाएंगे। योजना का सही लोगों को लाभ मिल सकेगा, इसी तरह से तमाम योजनाओं का दुरुपयोग रुकेगा। आज जो देश में अच्छे-खासे लोग गरीब बनकर मुफ्त का अनाज ले रहे हैं। वे कामचोरी की बजाय श्रम करेंगे। देश मुफ्तखोर की बजाय स्वावलंबी बनेगा।
वैसे नागपुर हाई कोर्ट ने वर्षों पहले सरकारी लोगों के राशन कार्ड को सफेद कार्ड बनाने का आदेश दिया था। न्यायालय के उस आदेश को आज तक सरकार अमल में नहीं ला सकी है। अब सवाल उठता है कि जब सरकार जनहित में न्यायालय का आदेश मनवाने में विफल है तो फिर सामान्य सरकारी आदेश की क्या दशा होती होगी? आज की सरकार केवल स्वयं के स्वावलंंबी होने के विषय में सोचती दिखाई दे रही है।