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सिटीजन रिपोर्टर : उल्हासनगर के मजदूर मजबूर! कामगारों को नहीं मिल रही सुविधा

उल्हासनगर एक लघु औद्योगिक शहर है। यहां घर-घर कारखाने हैं। उसमें काम करनेवाले लाखों मजदूर हैं। उल्हासनगर की स्थिति ऐसी है कि यहां पर निर्माणकार्य में लगे मजदूर काफी हैं। आए दिन काम करते समय ऊंचाई से गिरकर उनकी मौत हो जाती है। कई अपंग हो जाते हैं। यह जानकारी हमारे सिटीजन रिपोर्टर अनिल मिश्रा ने दी। बता दें कि सरकार ऐसे निर्माण करनेवाले मजदूरों के लिए महाराष्ट्र कामगार कल्याण मंडल में उनके लिए योजना लाई है। लेकिन शहर के अवैध ठेकेदार कामगारों को योजना का लाभ नहीं दे रहे हैं। ऐसे में मजदूरों को अपने अधिकारों से वंचित रहना पड़ रहा है। लूम, होटल, लोहा मार्वेâट, कपड़ा मार्केट , सोना मार्केट , रेडीमेड जूता मार्केट , जींस मार्केट , इलेक्ट्रॉनिक, मार्केट , प्रेस बाजार, फर्नीचर बाजार जैसे तमाम बाजार हैं, जहां बड़ी संख्या में लोग १२ से १६ घंटे काम करते हैं। लेकिन उन कामगारों को सरकारी सुविधा नहीं मिलती है। इनके काम का समय निर्धारित नहीं है। दुर्घटना होने पर स्थानीय नेता दो-चार लाख दिलवाकर मानो मौत का सौदा करवा देते हैं। जबकि यदि सरकारी योजना कामगारों को मिलती तो उनके  परिवारवालों को थोड़ा सहारा मिल जाता, उन्हें किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती। कामगारों को पीएफ नहीं है, ईएसआईएस नहीं है। यह भी देखा गया है कि उल्हासनगर में कुछ कामगार नेता इन कामगारों की सुख-सुविधा की तरफ ध्यान न देते हुए सिर्फ अपने व अपने परिवार की सेवा में लगे हैं। यह केवल कामगार नेता बनकर बैनर की शोभा बढ़ा रहे हैं। राज्य व केंद्र सरकार ने कामगारों के लिए तमाम योजनाएं और उनकी सुरक्षा के लिए कानून बनाए हैं, जिनका लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है। काफी लोगों के नाम ई-श्रम योजना में पंजीकृत नहीं हैं। कुछ कामगारों ने बताया कि जब कामगार आयुक्तालय से कई बार जांच की जाती है तो उस समय कामगार को दूसरे रास्ते से बाहर निकाल दिया जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि केवल कामगार नेता बनकर घूमनेवाले लोगों ने कामगारों के हित में सरकार से पत्र-व्यवहार तक नहीं किया है। कामगार नेता ने अपना लेटर हेड पैड तक शायद ही छपवाया होगा? सरकार कामगारों को क्या सुविधा देती है? इन कामगारों नेताओं को इसकी कोई जानकारी नहीं है। यदि जानकारी है भी तो उसे दिलाने में असमर्थ हैं। कामगार नेताओं की जिम्मेदारी यह है कि उन्हें कामगारों की सुख-सुविधा के लिए आगे आना चाहिए, जबकि वह आगे नहीं आ रहे हैं। कामगारों को जो सुविधा मिलनी चाहिए वह उन्हें दिलाने में सरकार भी फेल हो रही है।

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