मुख्यपृष्ठखेलक्लीन बोल्ड : चोट ने दिलाई चोट

क्लीन बोल्ड : चोट ने दिलाई चोट

अमिताभ श्रीवास्तव

मेंटर की लताड़
हालांकि मेंटर की इस लताड़ से भी कोई फायदा मिलेगा। यह कह पाना कठिन है, क्योंकि जो ओलिंपिक को महज एक टूर्नामेंट बनाकर खेलने जाते हैं और मौज मस्ती कर लौट आते हैं ऐसे खिलाडियों को किसी लताड़ या ताने से कोई लेना देना नहीं होता, वो पराजय की जिम्मेदारी न लेते हुए बहाने बनाकर लौट आते हैं और दूसरे टूर्नामेंट जिसमें पुरस्कार राशि मिलती है उसके प्रति गंभीर होते हैं। यह लक्ष्य सेन की हार के बाद प्रकाश पादुकोण का कहना केवल बैडमिंटन के लिए ही नहीं है बल्कि प्रत्येक खेल के लिए है और खिलाड़ियों की आंखें खोलने के लिए है। १० दिन गुजरने के बावजूद देश के खाते में सिर्फ तीन ब्रॉन्ज मेडल हैं, जो निशानेबाजी में आए हैं। देश के पूर्व दिग्गज बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण पेरिस में एथलीट्स के फ्लॉप शो पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा कि अमेरिकी खिलाड़ियों को इतनी सुविधाएं मिलती हैं, जितनी भारत में दी जा रही हैं। बावजूद वे नहीं जीतते। पादुकोण ने कहा कि अब समय आ गया है कि खिलाड़ी जिम्मेदारी लें। मौजूदा ओलिंपिक और पिछला ओलिंपिक देखें तो आप सरकार और महासंघ को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। वो जो कर सकते थे, उन्होंने किया। वे सुविधाएं ही उपलब्ध करा सकते हैं, लेकिन अंत में खिलाड़ियों को ही प्रदर्शन करके दिखाना होगा। वे सेम खिलाड़ियों को दूसरे टूर्नामेंट में हरा देते हैं मगर ओलिंपिक में ऐसा नहीं कर पाते। खिलाड़ियों को आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है। खिलाड़ियों को सोचना होगा कि क्या वे पर्याप्त मेहनत कर रहे हैं। आपको उस दिशा में काम करने की जरूरत है।
चोट ने दिलाई चोट
दो ऐसे मौके जिसने दहलीज पर रखे मैडल को अपने से दूर खिसका दिया। वजह है चोट। इसे दुर्भाग्य कह सकते हैं। जो भी हो मगर कुश्ती में निशा दहिया की चोट बैडमिंटन के लक्ष्य सेन की चोट से अधिक दुखी कर गई। दोनों लगभग जीते हुए मैडल अपने विरोधी को सौंप आए। निशा सेमीफाइनल में बस पहुंचनेवाली हीr थीं। वो अपनी कोरियाई प्रतिद्वंद्वी से आठ अंक आगे थीं और बस खेल खत्म होने वाला था मगर निशा के हाथ में चोट इस कदर लगी कि वो मेडिकल मदद लेने के बाद भी दर्द से कराह रही थीं। फिर भी मुकाबला लड़ा क्योंकि यह खेल के प्रति भावना और समर्पण था। हारना तय था और वो हार गर्इं। कोरियाई पहलवान को जीता हुआ कहना गलत होगा क्योंकि यह मैच तो निशा ने ही उसे दिया। दूसरी तरफ मलेशिया से ब्रांज मैडल के लिए लड़ रहे लक्ष्य सेन पहला मैच जीत चुके थे। बैडमिंटन का इतिहास बनने ही वाला था कि पिछले मैच में लगी हाथ की चोट उभर आई। खून बहने लगा। मेडिकल मदद के बावजूद लक्ष्य की चोट ने राहत नहीं दी और लक्ष्य अपने खेल से भटक गए। यह मैच भी जैसे मलेशिया को दे दिया गया। मलेशियाई खिलाड़ी ने लक्ष्य को आराम से हरा दिया।
शाबास अविनाश
एक तरफ महंगे खेल के खिलाडियों द्वारा देश के लिए खेलने के जज्बे की कमी के बीच महाराष्ट्र के धावक अविनाश साबले ने अपने देश के नाम को ऊंचा रखते हुए पेरिस ओलिंपिक में पुरुषों की ३००० मीटर स्टीपलचेज फाइनल में जगह बनाई। उन्होंने हिंदुस्थानी एथलेटिक्स में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। उन्होंने ८:१५.४३ मिनट का समय लेकर अपने हीट में पांचवां स्थान प्राप्त किया, जिससे वह इस इवेंट के शीर्ष १५ प्रतिस्पर्धियों में शामिल हो गए। अब देखना होगा कि आज फाइनल में उनका प्रदर्शन वैâसा रहता है क्योंकि मैडल से अधिक उनका फाइनल में जाना ही गौरवान्वित करता है। स्टीपलचेज प्रतियोगिता में तीन हीट होते हैं, जिनमें से प्रत्येक हीट के शीर्ष पांच एथलीट फाइनल राउंड के लिए क्वालिफाई करते हैं। साबले ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया, लेकिन उनका समय उनके व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ ८:०९.९१ मिनट से अधिक रहा, जो उन्होंने पिछले महीने पेरिस डायमंड लीग में हासिल किया था। आज अविनाश कमाल दिखाएंगे, यह तय है।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)

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