मुख्यपृष्ठस्तंभकॉलम ३ : मध्य प्रदेश भाजपा में वर्चस्व की लड़ाई!

कॉलम ३ : मध्य प्रदेश भाजपा में वर्चस्व की लड़ाई!

प्रमोद भार्गव

मध्य प्रदेश में मोहन यादव जैसे-तैसे मुख्यमंत्री जरूर बन गए हैं, लेकिन सत्ता की बागडोर उनके हाथ में कितनी है, यह मुख्यमंत्री बनने के ९ माह बाद भी तय नहीं हो पाया है। इसीलिए अब तक धीमी चाल से चलते हुए वे लाभदायी योजनाओं की घोषणाएं तो निरंतर कर रहे हैं, लेकिन जिलों के प्रभारी मंत्रियों से लेकर नगरीय निकाय और मंडलों के अध्यक्ष नियुक्त करने में उन्हें खुली छूट नहीं मिली है। ऐसा माना जा रहा था कि बहुप्रतीक्षित प्रभारी मंत्री उनकी इच्छा के मुताबिक, जिलों में तैनात कर दिए जाएंगे, लेकिन हाल ही में जो सूची आई है, उससे साफ है कि उनके सभी प्रतिद्वंद्वी अपने-अपने नुमाइंदों को प्रभारी मंत्री बनाने में सफल रहे। ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि मूल भाजपाइयों की नाराजी के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुना संसदीय क्षेत्र और ग्वालियर अंचल में उनकी नाममात्र चलेगी, लेकिन जो सूची आई है, उससे पुष्टि होती है कि सिंधिया का वर्चस्व बना रहेगा।
सिंधिया के खास माने जानेवाले और गंदी नालियों में उतरने के विशेषज्ञ तथा प्रदेश सरकार में ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर को शिवपुरी और पांढुर्णा का प्रभारी मंत्री बनाया गया है। इसी तरह सिंधिया के खास गोविंद सिंह राजपूत को गुना और नरसिंहपुर तथा तुलसी सिलावट को ग्वालियर और बुरहानपुर का मंत्री बना दिया गया है। लेकिन ग्वालियर-चंबल अंचल में अन्य जिलों में सिंधिया की नहीं चली। गुना संसदीय क्षेत्र के ही अशोकनगर जिले का प्रभारी मंत्री उपमुख्यमंत्री राकेश शुक्ल को बनाया गया है। शुुक्ल का सिंधिया से कोई सीधा वास्ता नहीं है। विंध्य क्षेत्र में उनका अपना वर्चस्व है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार में भी लगातार मंत्री रहे थे। अतएव सिंधिया शुक्ल को निर्देश देने की स्थिति में नहीं हैं। शुक्ल निरंतर चुनाव भी जीतते रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान श्योपुर जिले के विजयपुर से कांग्रेस विधायक रहे सिंधिया विरोधी रामनिवास रावत का कद भाजपा में आने के बाद लगातार बढ़ रहा है। उनके द्वारा इस्तीफा देने के साथ ही उन्हें वैâबिनेट मंत्री का दर्जा देकर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का प्रभार दे दिया गया और अब उन्हें मंडला और दमोह जिलों का प्रभारी मंत्री बना दिया गया। इसी तरह भिंड का प्रभारी मंत्री पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रल्हाद पटेल को बनाया गया है। बुंदेलखंड में अपना वर्चस्व रखने वाले पटेल अपनी राह खुद बनाकर आगे बढ़ते हैं। अतएव सिंधिया को भिंड में झटका लगा है। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने मुरैना और सिवनी का प्रभारी मंत्री करण सिंह वर्मा को बनवाया है। वर्मा सिंधिया से तालमेल बनाकर चलेंगे यह कहना मुश्किल है।
दरअसल ग्वालियर-चंबल अंचल में नरेंद्र सिंह तोमर सिंधिया के समानांतर अपना कद लगातार बनाए हुए हैं। तोमर ही रामनिवास रावत को कांग्रेस से भाजपा में लाए थे। उन्हें लोकसभा चुनाव के दौरान मुरैना से भाजपा उम्मीदवार मंगल सिंह तोमर को जिताने के लिए लाया गया था। तभी उन्हें आश्वस्त कर दिया गया था कि चुनाव के बाद आपको वैâबिनेट मंत्री बनाया जाएगा। दरअसल मुरैना में भाजपा उम्मीदवार की हालत अत्यंत दयनीय थी। इस स्थिति को जब नरेंद्र सिंह तोमर ने भांप लिया तो वे रावत को बरगलाने में सफल रहे। नरेंद्र सिंह का आकलन सही था, क्योंकि मंगल सिंह केवल ४७ हजार वोट से जीते हैं। अतएव इस जीत में रावत की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। एक समय रावत पहले माधवराव सिंधिया के और फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास सिपहसालार थे। किंतु सिंधिया के साथ नैतिक दुहाई देते हुए रावत तब भाजपा में नहीं गए, लेकिन २०२३ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय के बाद रावत की नैतिकता डोल गई और वे सत्ता के लालच में भाजपा की गोद में जा बैठे। अब उनकी बल्ले-बल्ले है। सिंधिया से उन्होंने भाजपा में आने के बाद अभी तक किसी प्रकार का तालमेल बिठाने की कोशिश नहीं की। बावजूद ग्वालियर-अंचल में रावत अपना वर्चस्व बनाए रखने में कामयाब रहे हैं।
ऐसी भी अटकलें अब तेज हो रही है कि प्रदेश में निगम और मंडलों में जो राजनैतिक नियुक्तियां मनोनयन के आधार पर होनी है, उनमें भी सिंधिया की कम चल पाएगी। सिंधिया समर्थक ही नहीं कांग्रेस से जो अन्य नेता भाजपा में आए हैं, उन्हें सत्ता में भागीदारी से दूर रखेगी। भाजपा अब मूल भाजपाइयों की भागीदारी सुनिश्चित करने की तैयार में जुट गई है। वरिष्ठ नेताओं की भोपाल में हुई एक बैठक में तय किया गया है कि पिछली सरकार में जिस तरह से निगम और मंडल के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष मनोनीत होने वाले नेताओं में सिंधिया समर्थकों की बड़ी संख्या थी। इन्हें मंत्रीपद का दर्जा भी दे दिया गया था। किंतु अब भाजपा अपने मूल कार्यकताओं को निराश नहीं करेगी। संघ से भाजपा में आए लोगों को भी महत्व दिया जाएगा। दरअसल, भाजपा को उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोकसभा चुनाव में जो झटका लगा है, उससे अब भाजपा सबक ले रही है। २०२३ के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को मूल भाजपाइयों और संघ के कार्यकर्ताओं की नाराजी झेलनी पड़ी थी। वह तो भला हो लाडली बहनों का कि उन्हें जो नगद मुद्रा की जो रेवड़ियां मिलीं, उससे शिवराज सिंह वैतरणी पार करने में सफल हो गए। इसी का असर लोकसभा चुनाव में दिखाई दिया। अतएव भाजपा कांग्रेसियों से दूरी बना रही है तो यह उसी के हित में है।

 

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