मुख्यपृष्ठस्तंभकॉलम ३ : देर आए, दुरुस्त आए!

कॉलम ३ : देर आए, दुरुस्त आए!

अनिल तिवारी

भारतीय रेलवे ने मुंबई में अपने एमयूटीपी-३ए प्रोजेक्ट की फंडिंग को जुटाने के लिए ५ एफएसआई की मांग की है। ३३,६९० करोड़ की इस परियोजना को मुंबई रेल विकास कॉर्पोरेशन के माध्यम से पूरा किया जाना है, जिसमें राज्य और केंद्र सरकार का बराबरी का हिस्सा है। अतिरिक्त एफएसआई को टीडीआर के रूप में बेचकर रेलवे अब धन जुटाना चाहती है, ताकि इस प्रोजेक्ट को पूरा किया जा सके। दरअसल, रेलवे को यह काम बहुत पहले ही कर लेना चाहिए था। मुंबई में संसाधन विकास की रिपोर्टिंग करते वक्त प्रोजेक्ट फंडिंग के लिए मैं खुद कई बार इस पर्याय को अपनाने का सुझाव देता रहा था। कई रेल अधिकारियों से समय-समय पर इस दिशा में सोचने की चर्चाएं होती रहती थीं। ठीक उसी तरह जिस तरह मैंने प्रीमियम ट्रेनों से जनरेटर वैन हटाकर ‘हेड ऑन जनरेशन’ का कभी सुझाव दिया था। कालांतर में रेलवे ने उसे अपनाया तो पर अब तक उसे तकनीकी तौर पर लागू कर पाने में वो सफल नहीं हो पाई है। यदि रेलवे ऐसा कर लेती है तो न केवल डीजल की भारी बचत से उसका बहुत सा व्यय बचेगा, बल्कि पर्यावरण में होनेवाला कार्बन प्रदूषण भी काफी हद तक कम हो जाएगा। उस पर प्रति प्रीमियम और वातानुकूलित ट्रेन में दो जनरेटर वैन हटने से कुछ अतिरिक्त स्पेस भी रेलवे को उपलब्ध हो पाएगा। खैर, रेलवे ने एक दशक बाद ही सही, एफएसआई और टीडीआर की दिशा में कदम आगे बढ़ाया है। रेलवे को अब चाहिए होगा कि वो इस पर गंभीरता से काम करती रहे, क्योंकि मुंबई की बेशकीमती एफएसआई और टीडीआर की राशि से रेलवे चाहे तो यहां के सारे प्रलंबित प्रोजेक्ट्स पूरे कर सकती है। न केवल मुंबई, बल्कि देश के अन्य शहरों में भी रेलवे को यह फॉर्मूला अपनाना चाहिए। रेलवे के विकास के लिए केवल मुंबई नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा होना चाहिए।

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