मुख्यपृष्ठस्तंभकॉलम ३ : नफरत सी हो गई...

कॉलम ३ : नफरत सी हो गई…

दीपक शर्मा

विपक्षी गठबंधन द्वारा अपना नाम ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस) रखे जाने के बाद से केंद्र की भाजपाई सरकार हिल गई है। भाजपा ‘इंडिया’ को लेकर कुछ अंदाज में हमलावर हुई है, जैसा कि कहावत कही जाती है, ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि’। ऐसे में बॉलीवुड का एक गाना भी जेहन में ताजा हो जाता है, जिसे सत्ताधारियों के राजनीतिक इयरफोन पर सुनें तो इसकी धुन कुछ इस प्रकार सुनाई देने लगी हैं ‘बैठे हैं सत्ता आज के कुछ उस मुकाम पे, नफरत सी हो गई है मोहब्बत के बाद ‘इंडिया’ नाम से।’ एक ओर जहां प्रधानमंत्री से लेकर उनके समर्थक, अंधभक्त व गोदी मीडिया राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान और बाद में उनकी मोहब्बत की दुकान खोलने की बात पर मीनमेख निकाल रहे थे। वहीं अब विपक्षी गठबंधन द्वारा अपने मंच का नाम ‘इंडिया’ रखे जाने के बाद तो भाजपाइयों ने हास्यास्पद स्तर पर जाकर सारी हदें पार करते हुए देश का नाम बदलने की मुहिम ही शुरू कर दी है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसको लेकर भाजपा के एक सांसद ने संसद में अजीबोगरीब मांग रख दी है। उत्तराखंड से भाजपा के राज्यसभा सांसद नरेश बंसल ने मांग की है कि देश के संविधान से ‘इंडिया’ शब्द को हटा दिया जाए। उनका दावा है कि यह एक औपनिवेशिक थोपा गया शब्द था जिसने वास्तविक नाम ‘भारत’ की जगह ले ली। भाजपा सांसद ने कहा कि इंडिया नाम गुलामी का प्रतीक है, जो हमारे देश में अभी भी है और इसे तुरंत हटा देना चाहिए। बंसल ने कहा कि विगत ९ वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी ने कई मौकों पर औपनिवेशिक विरासत और औपनिवेशिक प्रतीक चिह्नों को हटाने और उनकी जगह परंपरागत भारतीय प्रतीकों, मूल्यों और सोच को लागू करने की वकालत की है। भाजपा सदस्य ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत का नाम बदल कर इंडिया कर दिया था। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों और बलिदानियों की मेहनत के कारण १९४७ में देश आजाद हुआ और १९५० में संविधान में लिखा गया, ‘इंडिया दैट इज भारत (इंडिया जो कि भारत है)’। उन्होंने कहा कि देश का नाम सदियों से भारत ही रहा है और इसी नाम से उसे पुकारा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत का अंग्रेजी नाम इंडिया शब्द अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक है। बंसल ने कहा कि आजादी के अमृतकाल में गुलामी के प्रतीक को हटाया जाए।
इससे पूर्व भी भाजपा के कई नेता इसे इंडिया और भारत के बीच टकराव बता चुके हैं। बंसल से पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी २०२४ के लोकसभा चुनाव को भारत और इंडिया के बीच मुकाबला बताया था। प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों ‘इंडिया’ की तुलना इंडियन मुजाहिद्दीन और पॉपुलर प्रâंट ऑफ इंडिया जैसे आतंकी संगठनों से करते हुए कहा कि नाम बदल लेने मात्र से किसी के चरित्र में परिवर्तन नहीं हो जाता है। वहीं विपक्षी दलों के संयुक्त मंच इंडिया को लेकर देश में आशा का एक नया संचार हुआ है। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि अगर आपके संचारतंत्र में कोई बड़ा विचार निहित नहीं है तो वह उसी तरह से लोगों के सिर के ऊपर से गुजर जाएगा, जैसे अंधेरी रात में कोई हवाई जहाज आपकी छत के ऊपर से चुपचाप ही निकल जाता है!’ दूसरे शब्दों में विपक्ष को एक ऐसा विचार प्रस्तुत करना, जो बौद्धिक होने के साथ ही राष्ट्रीय, विकासशील, समावेशी, लोकतांत्रिक, देशभक्त, प्रगतिशील देश का आकांक्षी हो और दिलों को भी छूता हो। ‘इंडिया’ नाम ठीक यही करता है। यही कारण है कि भाजपाइयों को मोहब्बत के बाद ‘इंडिया’ नाम से ही नफरत होने लगी है।

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