मुख्यपृष्ठस्तंभकॉलम ३ : हिंडनबर्ग रिपोर्ट ... खौफनाक कार्पोरेट वार?

कॉलम ३ : हिंडनबर्ग रिपोर्ट … खौफनाक कार्पोरेट वार?

नरेंद्र शर्मा
जैसे कि आशंका थी गुजरे शनिवार (१० अगस्त २०२४) को तड़के जंगल की आग की तरह पैâली हिंडनबर्ग रिपोर्ट की नई किस्त ने, जो कार्पोरेट सनसनी पैदा की थी, उसके चलते शेयर बाजार को जोर का झटका लगना ही था इसलिए जब सोमवार १२ अगस्त २०२४ को शेयर बाजार खुले तो शुरुआती एक घंटे में ही अडानी ग्रुप के शेयरों में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली। सुबह ११ बजे तक ही इस रिपोर्ट के चलते निवेशकों को ५३,००० करोड़ रुपए का झटका लग चुका था। अडानी विल्मर में ६ फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई थी, जबकि अडानी टोटल गैस का शेयर ७ फीसदी से ज्यादा लुढ़क चुका था। अगर कहा जाए कि हिंडनबर्ग की इस दूसरी रिपोर्ट ने अपने शुरुआती असर ने अडानी ग्रुप में भूचाल ला दिया है तो अतिशयोक्ति न होगी।
वास्तव में अडानी ग्रुप के खिलाफ पहले भी रिपोर्ट जारी करनेवाले अमेरिका की शॉर्ट सेलर फंड कंपनी हिंडनबर्ग ने अपनी नई रिपोर्ट में शेयर बाजार की नियामक संस्था सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच पर आरोप लगाया है कि वह और उनके पति धवल बुच ने उन आफशोर कंपनियों में भारी निवेश किया है, जो अडानी समूह की हैं और जो वित्तीय अनियमितताओं के कारण सवालों के घेरे में रही हैं। जाहिर है कि इसका मतलब यह निकलता है कि शेयर बाजार को नियंत्रित करनेवाली अथॉरिटी सेबी की जब अध्यक्ष और उनके पति ने भी संदिग्ध कंपनियों में निवेश कर रखा है तो भला उनकी जांच ईमानदारी से वैâसे संभव होगी? हालांकि, इस रिपोर्ट के आते ही अडानी ग्रुप ने इसे तुरत-फुरत में महाबकवास बताया और इसे जानबूझकर भारत के मजबूत हो रहे कार्पोरेट जगत को अस्थिर करने की साजिश कहा।
ठीक इसी तरह रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वह किसी भी तरह की जांच के लिए व्यक्तिगत रूप से तैयार हैं और हर वह दस्तावेज उपलब्ध करने की जिम्मेदारी लेती हैं, जो जांच के लिए जरूरी हो। मगर बात यह है, जैसा कि देश की विपक्षी राजनीतिक पार्टियां मांग कर रही हैं कि जब तक माधबी पुरी बुच सेबी की अध्यक्ष हैं तब तक भला सेबी ही उनके खिलाफ एक सघन और पारदर्शी जांच वैâसे करेगी? इसलिए उन्हें तुरंत अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए। संसद में मुख्य विपक्ष की भूमिका निभानेवाली कांग्रेस पार्टी ने इस सनसनीखेज रिपोर्ट के आते ही पहले की तरह फिर से ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी (जेपीसी) की मांग दोहराई है।
यह रिपोर्ट कितनी सही है, कितनी गलत है, इसका निर्णय तो एक विस्तृत और निष्पक्ष जांच ही कर सकती है, लेकिन जैसी आशंका थी कि इस रिपोर्ट के आते ही शेयर बाजार धड़ाम बोल गए। हालांकि, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक शेयर बाजार की तूफानी टूटन का अभी ज्यादातर असर सिर्फ अडानी ग्रुप की कंपनियों तक ही सीमित था, लेकिन वित्तीय बाजार का स्वभाव जाननेवाला हर शख्स इस बात को बेहतर तरीके से जानता है कि यह गिरावट किसी भी कीमत पर सिर्फ किसी समूह विशेष तक सीमित नहीं रहेगी। आखिरकार, शेयर बाजार किसी एक समूह की साझेदारी से नहीं बनता, शेयर बाजार बेहद सेंसटिव बाजार है।

इसकी संवेदनशीलता हमेशा समूचे बाजार को प्रभावित करती है, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि अगर एक बार निवेशकों को विशेषकर देश के मध्यवर्गीय निवेशकों के दिल में यह बात बैठ गई कि शेयर बाजार में सबकुछ घोटाला और सिर्फ घोटाला है तो जिस तरह से पिछले कुछ सालों में शेयर बाजार की तरफ ऐसे मध्यवर्गीय पांच करोड़ निवेशक आकर्षित हुए हैं, जो अपनी खून पसीने की कमाई बाजार में लगा रहे हैं और जो सही मायनों में ठोस और प्राकृतिक निवेशक हैं, उनका भरोसा बाजार में भला कितनी देर तक टिकेगा? यह बेहद खतरनाक है।
इसलिए जितना जल्दी हो हिंडनबर्ग की इस सनसनीखेज दूसरी किस्त के खुलासे पर जांच होनी ही चाहिए और यह जांच बेहद ईमानदार और खुलेपन के साथ होनी चाहिए, तभी भारत दुनिया की अर्थव्यवस्था में अपनी मजबूत साख बनाए रख सकेगा। पिछले कई सालों से लगातार भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे ज्यादा या चीन के बाद दूसरे नंबर पर वैश्विक निवेश आकर्षित कर रही है। आखिर दुनियाभर के निवेशक भारत इसी भरोसे पर ही तो आ रहे हैं कि यहां एक पारदर्शी लोकतांत्रिक व्यवस्था है? अगर उन्हें अपने इस भरोसे पर कुछ शक हुआ, तो जिस तरह से हाल के सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक निवेशकों का आगमन देखा है, उससे कहीं तेज हमें वैश्विक निवेशकों का पलायन देखना पड़ सकता है इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था और हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए विश्वसनीयता बहुत जरूरी है। यह विश्वसनीयता तभी कायम होगी, जब हम विपक्ष को ज्यादा हंगामा किए बिना ही हिंडनबर्ग की इस दूसरी रिपोर्ट पर सार्वजनिक जांच के लिए जेपीसी की घोषणा करें और सेबी की अध्यक्ष महोदया को जांच तक इस्तीफा देकर अपने पद से बाहर रहने के लिए कहें वरना वित्तीय बाजार की यह शुरुआती लुढ़कन समूचे भारतीय पूंजी बाजार के तूफानी पतन का कारण बन जाएगी।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट की दूसरी किस्त के आने के बाद यह तय था कि इसका नकारात्मक असर शेयर बाजार को देखना पड़ेगा और वह इस रिपोर्ट के आने के बाद पहली बार खुले शेयर बाजार में पहले एक घंटे में ही देखने को मिल गया। अडानी ग्रुप की १० कंपनियों का संयुक्त मार्वेâट वैâप १६.७ लाख करोड़ रुपए तक गिर गया। पहले २० मिनट में ही बीएसई सेंसेक्स २२९ अंक फिसल गया और निफ्टी की फिसलन ९१ अंकों तक रही। बीएसई की तरह निफ्टी की भी टॉप लूजर कंपनियां अडानी ग्रुप की ही रहीं। अडानी एंटरप्राइजेज २.६५ फीसदी की गिरावट के साथ निफ्टी में सबसे ज्यादा गिरावट वाला शेयर रहा। उसके बाद एनटीपीसी में १.९२ और अडानी पोर्ट्स में १.८१ प्रतिशत की गिरावट रही। गौरतलब है कि हिंडनबर्ग की पहली रिपोर्ट में अडानी ग्रुप को जिस तरह से घेरा गया था, उसके कारण एक सप्ताह के भीतर अडानी खुद अर्श से फर्श पर आ गए थे। इस बार हिंडनबर्ग की दूसरी रिपोर्ट ने शेयर बाजार को कंट्रोल करनेवाली इसकी नियामक संस्था सेबी को अपने खुलासे से घेर लिया है। अगर कहा जाए कि पहली रिपोर्ट से हिंडनबर्ग की यह दूसरी रिपोर्ट कहीं ज्यादा खतरनाक है तो अतिशयोक्ति न होगी, क्योंकि पहली रिपोर्ट जहां एक कारोबारी समूह के भ्रष्टाचार और उसकी कार्पोरेट तिकड़मों का पर्दाफाश कर रही थी तो इस रिपोर्ट ने उस संस्था को ही घेरे में ले लिया है, जिसे इस तरह के भ्रष्टाचारों और कार्पोरेट तिकड़मों की जांच करनी होती है। इससे पूरी दुनिया को यह संदेश जा रहा है कि भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें न सिर्फ बेहद गहरी हैं, बल्कि ये संस्थाबद्ध भी हैं। यह कहीं ज्यादा खतरनाक है।
२४ जनवरी २०२३ को जब हिंडनबर्ग अपनी पहली रिपोर्ट लेकर आया था तो उसमें अडानी समूह के शेयरों में हेर-फेर और ऑडिटिंग का आरोप लगाया गया था, जो कि कार्पोरेट इतिहास का सबसे भयानक आरोप था, लेकिन इस बार तो ऐसे आरोपों की जांच करनेवाली संस्था को ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने की तरफ इशारा किया गया है। पिछली बार हिंडनबर्ग की रिपोर्ट तब आई थी, जब अडानी ग्रुप अडानी एंटरप्राइजेज २० हजार करोड़ रुपए के शेयर खुदरा बिक्री के लिए जारी करनेवाला था, लेकिन इस रिपोर्ट के आने के बाद यह संभव नहीं हो सका, लेकिन इन तमाम आरोपों की जांच करनेवाली सेबी ने जब अडानी समूह को ऐसे सभी भ्रष्टाचार की आशंकाओं से क्लीन चिट दे दी, तो बाजार में न सिर्फ आम निवेशकों का भरोसा बढ़ा, बल्कि यह माना गया कि भारतीय पूंजी बाजार मजबूत और पारदर्शी है, लेकिन अब की बार जब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने उस संस्था को ही अपने चक्रव्यूह के घेरे में ले लिया है, जिसकी बदौलत वित्त और कार्पोरेट बाजार ईमानदार और पारदर्शी रह सकता है तो भला फिर आम निवेशक अब वैâसे इस सब पर भरोसा करे, यह बहुत ही संवेदनशील मसला है इसलिए बिना देरी गहराई से जांच होनी चाहिए, क्योंकि यह महज किसी घोटाले का खुलासा नहीं है बल्कि समूची व्यवस्था को बेनकाब करने जैसा है।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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