शरद पवार ने एक चिट्ठी लिखी है। वह भी किसी और को नहीं, बल्कि यह चिट्ठी उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अपने से अलग हुए भतीजे उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को भेजी है। उन्होंने स्वूâली शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए बेहतर प्रबंधन करने की सलाह दी है। पत्र में कहा गया है कि महाराष्ट्र के स्वूâली शिक्षा के स्तर में गिरावट आई है। वेंâद्रीय शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, शैक्षणिक गुणवत्ता के क्रम में महाराष्ट्र राज्य दूसरे स्थान से सीधे सातवें स्थान पर आ गया है। यह महाराष्ट्र की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा परंपरा के लिए शर्म की बात है और अत्यंत ही चिंता का विषय है। अत: गिरते शैक्षणिक स्तर को सुधारने के लिए समय रहते उपाय किए जाने चाहिए। शरद पवार के इस पत्र से जाहिर है कि राज्य के महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनकी सतर्वâ निगाहें हैं। इससे यह संकेत भी मिलता है कि किसी भी परिस्थिति में वे विचलित नहीं होंगे और खामोश नहीं बैठेंगे। जहां जरूरत होगी वे सरकार के कान भी मरोड़ेंगे। फिर चाहे कोई उनकी पार्टी का भगोड़ा हो या भतीजा, उन्हें कोई फर्वâ नहीं पड़ता। वे सरकार में नहीं हैं, पर जनता के मुद्दों पर चिंतित हैं। परंतु महाराष्ट्र की राजनीति में तो इन दिनों मंत्री पद और मालदार विभाग पाने की होड़-सी मची हुई है। विधायकों की गुटबाजी, दल-बदल, पदों की बंदरबांट, दिल्ली की जी-हुजूरी करने से लेकर मंत्रालय के बड़े कार्यालय और अच्छे सरकारी बंगले पाने तक हर चीज की लूट-सी मची हो, ऐसे हालात हैं। राज्य के विकास को छोड़ बाकी सब कुछ हो रहा है। ऊपर से शांत दिख रही राजनीति की गहराई में वस्तुत: खूब घमासान सा है। टीवी चैनलों पर दल-बदलुओं की जुबान खूब चल रही है। ऐसे में महाराष्ट्र के क्षत्रप और देश के सबसे चर्चित वूâटनीतिक राजनेता शरद पवार ने अपनी धारदार कलम चलाकर सरकार को सचेत किया है। शरद पवार ने शिक्षा की बुनियादी कमी को पकड़ा है। ध्यान रहे कि पढ़ाई कर लेना ही काफी नहीं है। पढ़ाई का स्तर बढ़िया हो और अच्छी शिक्षा लेकर विद्यार्थी आगे बढ़े यह आवश्यक है। लेकिन हो क्या रहा है? शिक्षा का तो आज पूरा व्यवसायीकरण हो गया है। स्वूâल, कॉलेज व ढेर सारे शैक्षणिक संस्थान मोटी कमाई का जरिया बना दिए गए हैं। ऐसे में केवल गरीबों के बच्चे ही आज सरकारी स्वूâलों पर निर्भर हैं। क्योंकि थोड़े बहुत रुपए-पैसे कमाने वाला व्यक्ति भी अपने बच्चों को इन सरकारी स्वूâलों में नहीं पढ़ाना चाहता है। ऊंची कमाई वाले और बड़े पदों पर आसीन व्यक्ति कभी भी अपने बच्चों को सरकारी संस्थानों में पढ़ने नहीं भेजते। इसके पीछे कारण है पढ़ाई की गुणवत्ता। इसी पर शरद पवार ने फोकस किया है। अब काका ने तो मुद्दा उठा दिया है। आगे सरकार के आका क्या करते हैं, इस पर निगाहें रहेंगी। चाचा ने तो चिट्ठी बम डाल दिया है। देखना रोचक होगा कि पावर में बैठा भतीजा उसमें दम डालता है या वह खुद ही पुâस्स सिद्ध होता है।
कविता श्रीवास्तव
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक
मामलों की जानकार हैं।)