मुख्यपृष्ठस्तंभकॉलम ३: नार्को टेरर की चपेट में जम्मू-कश्मीर! ऑपरेशन हनी कॉम्ब

कॉलम ३: नार्को टेरर की चपेट में जम्मू-कश्मीर! ऑपरेशन हनी कॉम्ब

दीपक शर्मा

देश का अभिन्न अंग कथित नया जम्मू-कश्मीर मौजूदा दौर में एक नए आतंक की मार झेलने के लिए अभिशप्त है। नशाखोरी के मामले में ‘उड़ता पंजाब’ को मात दे रहे केंद्र शासित प्रदेश में करीब १० लाख लोग, जिनमें अधिकांश युवा हैं, हेरोइन के अतिरिक्त नशीली दवाओं, अफीम, चूरा पोस्त तथा भुक्की के आदी बताए जाते हैं। सवाल है कि सीमावर्ती राज्य पंजाब की तर्ज पर सामरिक दृष्टि से देश में सर्वाधिक संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्र में युवाओं को नशे का आदी बनाने के पीछे खेल क्या है?
क्या यह बढ़ती बेरोजगारी के कारण है या फिर उच्च प्रतिस्पर्धा के कारण बढ़ती हताशा है? एक बात तो साफ है कि इसके पीछे आतंकी देश पाकिस्तान की एक बड़ी भूमिका है। वह भारत की आने वाली नस्लों को तबाही के मुहाने पर लाकर भारत की बर्बादी के मुंगेरी सपने देख रहा है। उसकी यह सोच कोई नई नहीं है। वर्ष २००५-०६ के दरम्यान जम्मू संभाग से लगती भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर बीएसएफ द्वारा जितने भी घुसपैठिए पकड़े गए, उनमें अधिकांश पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई के गुर्गे थे। उन्हीं पकड़े गए गुर्गों से पूछताछ में जो खुलासे हुए थे, वह बेहद चौंकाने वाले थे। उनकी प्राथमिकता में दंगा व आतंकवाद पीड़ित, चकाचौंध का जीवन जीने के सपने देखनेवाले बेरोजगार युवा, अति महत्वाकांक्षी राजनेता, नौकरशाह व सुरक्षाबलों से जुड़े लोग शामिल थे। उसने इस साजिश को बाकायदा ‘ऑपरेशन हनी कॉम्ब’ नाम भी दिया, जिसे आजकल का मीडिया ऑपरेशन हनी ट्रैप के नाम से पुकारता है। अब दो दशक से अधिक समय बाद आईएसआई का ऑपरेशन हनी कॉम्ब कितना कामयाब रहा, यह समय-समय पर हनी ट्रैप में फंसे आम नागरिकों, नेताओं, अधिकारियों अथवा सुरक्षा संस्थानों से जुड़े लोगों के पकड़े जाने के रूप में सामने आता रहता है। लेकिन आज असल खेल नार्को टेरर का है, जिसमें आतंकवाद को हवा देने के लिए वित्तपोषण मुख्य है। सीमा पार से जम्मू-कश्मीर आने वाली नशे की खेपें प्रदेश ही नहीं बल्कि समूचे देश के युवाओं की रगों में जहर की मानिंद भरी जा रही हैं। आतंकवाद का नया रूप उससे भी अधिक भयावह है। युवा सुपारी किलर की भांति टारगेट किलिंग की ओर अग्रसर है। ऐसी एक दूसरी पौध जिन्हें ओवर ग्राउंड वर्कर व स्लीपर सेल कहा जाता है, जिनकी संख्या अनगिनत है, सुरक्षाबलों के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बने हुए हैं। यहां भी पैसे का लालच व नशे की गुलामी मुख्य कारक है। आप इस बात का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि जम्मू-कश्मीर में हेरोइन के नशे का आदी व्यक्ति इस नशीली दवा पर प्रति माह ८८,००० रुपए खर्च करता है। इतना पैसा एक बेरोजगार युवा के पास आना असंभव सी बात है।

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