मुख्यपृष्ठस्तंभकॉलम ३ : मजबूत होगा विपक्षी गठबंधन

कॉलम ३ : मजबूत होगा विपक्षी गठबंधन

रमेश सर्राफ धमोरा
(झुंझुनू, राजस्थान)

विपक्षी दलों द्वारा केंद्र सरकार के विरुद्ध लोकसभा में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर आगामी ८, ९ व १० अगस्त को चर्चा करवाई जाएगी। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के बाद अंत में सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जवाब देंगे। नियम १९८ के तहत लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के अंत में जरूरत पड़ने पर मतदान भी करवाया जा सकता है। अविश्वास प्रस्ताव लानेवाले विपक्षी इंडिया गठबंधन के पास संसद में अभी १४१ लोकसभा सदस्य है। जिनमें कांग्रेस के ४९, द्रमुक के २४, तृणमूल कांग्रेस के २३, जनता दल यूनाइटेड के १६, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के ६, एनसीपी के ४, सीपीआईएम के ३, समाजवादी पार्टी के ३, नेशनल कांप्रâेंस के ३, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के ३, सीपीआई के २, विदुथलाई चिरुथिगल काची का १, आम आदमी पार्टी का १, झारखंड मुक्ति मोर्चा का १, केरल कांग्रेस मणी का १ और आरएसपी का १ सांसद है।
इस तरह देखे तो लोकसभा में विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव गिरना तय है। क्योंकि सरकार के समर्थन में एनडीए के ३३० से अधिक सांसद हैं। लेकिन विपक्षी दलों को अविश्वास प्रस्ताव पास हो या फेल उससे कोई मतलब नहीं हैं। उनका मुख्य उद्देश्य है कि अविश्वास प्रस्ताव के बहाने संसद में मणिपुर सहित सभी बातों पर एक सार्थक चर्चा हो। चर्चा के अंत में प्रधानमंत्री को संसद में आकर जवाब देना होगा। विपक्षी दलों के नेता लंबे समय से मणिपुर में चल रहे तनाव को लेकर प्रधानमंत्री के संसद में बयान देने की मांग कर रहे हैं। जिसको लेकर संसद में लगातार गतिरोध चलने के कारण संसद की कार्यवाही भी सुचारु रूप से नहीं चल पा रही हैं। मगर इसके उपरांत भी प्रधानमंत्री ने अभी तक संसद में आकर मणिपुर के बारे में कोई बयान नहीं दिया है। हालांकि, जिस दिन मणिपुर के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया तब जरूर संसद के बाहर प्रधानमंत्री ने मणिपुर की घटनाओं की निंदा की थी। मगर उन्होंने संसद में बयान देने से कन्नी काट ली।
विपक्षी गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं का कहना है कि आज जो स्थिति मणिपुर में है और वहां जो घटनाएं घटित हो रही हैं। उनको लेकर पूरा देश शर्मसार है। ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा मणिपुर में शांति बहाली की दिशा में ऐसा कोई विशेष कदम नहीं उठाया गया है, जिससे वहां फौरी तौर पर शांति कायम हो सके। मणिपुर आज भी जातीय हिंसा की चपेट में बुरी तरह से जल रहा है। विपक्षी दलों का कहना है कि वैसे तो प्रधानमंत्री आए दिन बयान बाजी करते रहते हैं लेकिन मणिपुर की घटनाओं को लेकर जिस तरह से उन्होंने चुप्पी साधी है वह निंदनीय है। मणिपुर में भाजपा की सरकार है और वहां के मुख्यमंत्री एन. बीरेंद्र सिंह वहां व्याप्त हिंसा को रोक पाने में पूरी तरह से फेल रहे है। ऐसे में मणिपुर में अविलंब राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए। मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर की भाजपा सरकार को बचाने के प्रयास में पूरे प्रकरण से आंखें मूंदकर चुप्पी साधे बैठे हैं।
विपक्षी दलों के नेताओं का कहना है कि लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान पूरे देश को वहां की वस्तुस्थिति का पता चलेगा। हाल ही में विपक्षी दलों के करीबन २१ सांसदों ने मणिपुर का दौरा कर वहां के लोगों से मिलकर शांति की अपील की थी। अविश्वास प्रस्ताव आने के चलते अब मजबूर होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में बयान देना होगा। विपक्षी दलों के नेताओं को मानना है कि देश के २६ राजनीतिक दलों ने जो एक गठबंधन बनाया है, उसकी एकजुटता से घबराकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद का सामना करने से डर रहे हैं। विपक्षी दलों की एकजुटता के चलते आगामी लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को कड़ा संघर्ष करना पड़ेगा। इस बात का प्रधानमंत्री मोदी को भी आभास हो गया है। विपक्ष का मानना है कि लोकसभा में आने वाला अविश्वास प्रस्ताव देश की राजनीति को बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)

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