मुख्यपृष्ठस्तंभकॉलम ३ : राजस्थान भाजपा में बगावत के सुर!

कॉलम ३ : राजस्थान भाजपा में बगावत के सुर!

रमेश सर्राफ धमोरा
लोकसभा चुनाव के बाद राजस्थान भाजपा में जमकर उठा-पटक मची हुई है, जो भविष्य में आने वाले तूफान के संकेत दे रही है। राजस्थान के कृषिमंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपनी सरकारी गाड़ी व अन्य सरकारी सुविधाएं भी लौटा दी हैं। यहां तक की डॉ. किरोड़ी लाल मीणा बजट सत्र में भी विधानसभा में नहीं आने की घोषणा कर चुके हैं। डॉ. किरोड़ी लाल मीणा भाजपा के कद्दावर नेता हैं और राजस्थान में संघर्ष के प्रतीक रहे हैं। सरकार में हो या विपक्ष में वे अपनी बात पूरी मुखरता से रखने के लिए जाने जाते हैं।
डॉ. किरोड़ी लाल मीणा मंत्रिमंडल के गठन के वक्त से ही नाराज बताए जा रहे हैं। मंत्रिमंडल के गठन के वक्त उन्हें उनकी वरिष्ठता के अनुरूप महत्व नहीं मिला था, जिसके चलते वह अंदरखाने नाराज चल रहे थे। लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद उन्होंने खुलकर अपनी नाराजगी का इजहार कर दिया। डॉ. किरोड़ी लाल मीणा दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मुलाकात कर चुके हैं। उसके उपरांत भी उन्होंने अपना मंत्री पद से इस्तीफा वापस नहीं लिया है। कहने को तो भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी कहते हैं कि किरोड़ी लाल मीणा पार्टी से नाराज नहीं हैं और वे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में हैं। मगर हकीकत में ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है। बजट सत्र में भी विधानसभा न आकर डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने अपनी नाराजगी खुलकर जता दी है।
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया अपनी उपेक्षा से पहले से ही दुखी हैं। गाहे-बेगाहे अपनी नाराजगी जाहिर करती रहती हैं। विधानसभा में भी वसुंधरा समर्थक विधायक सरकार को जमकर घेर रहे हैं। विधानसभा चुनाव के बाद वसुंधरा राजे को पूरी आशा थी कि उन्हें तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। मगर जिस प्रकार रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने जेब से पर्ची निकालकर वसुंधरा राजे से नए मुख्यमंत्री के लिए भजनलाल शर्मा के नाम की घोषणा करवाई, उससे वसुंधरा राजे की आम जनता में काफी फजीहत हुई थी, जिसे वसुंधरा अभी तक भूल नहीं पाई हैं।
लोकसभा चुनाव में प्रदेश की ११ सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों की हार से जहां केंद्र में भाजपा कमजोर हुई है, वहीं राजस्थान में तो भाजपा सरकार के मुखिया भजनलाल शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी सहित अन्य सभी अग्रिम पंक्ति के नेताओं की जमकर किरकिरी हुई है। केंद्र सरकार में तीसरी बार मंत्री बने अर्जुन राम मेघवाल बीकानेर लोकसभा सीट से महज ५५,७११ वोटों के अंतर से जीते हैं, जबकि २०१९ में वह २,६४,०८१ व २०१४ के चुनाव में ३,०८,०७९ वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। इस तरह देखें तो इस बार अर्जुन राम मेघवाल ने बहुत ही मुश्किल से चुनाव जीता है। जबकि उनके पड़ोस की श्रीगंगानगर, चुरू, झुंझुनू, सीकर सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों की हार हुई है।

इसी तरह तीसरी बार केंद्र सरकार में मंत्री बने गजेंद्र सिंह शेखावत की स्थिति भी कोई बेहतर नहीं रही है। उन्होंने कांग्रेस के अनजान से प्रत्याशी करण सिंह उचियारड़ा को १,१५,६७७ वोटों से हराया है। जबकि २०१९ के लोकसभा चुनाव में उन्होंने तब के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को २,७४,४४० वोटों से व २०१४ के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की कैबिनेट मंत्री चंद्रेश कुमारी कटोच को ३,०३,४६४ वोटों से चुनाव हराया था। इस बार के चुनाव में गजेंद्र सिंह का प्रभाव भी कम हुआ है। गजेंद्र सिंह के पड़ोस की बाड़मेर-जैसलमेर, नागौर सीट पर भाजपा चुनाव हार गई है, जबकि पिछली बार ये सभी सीटें भाजपा के पास थीं। गजेंद्र सिंह शेखावत का शेरगढ़ के विधायक बाबूसिंह राठौड़ से चुनाव पूर्व हुआ विवाद भी खास सुर्खियों में रहा था। बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर तो भाजपा प्रत्याशी वैâलाश चौधरी तीसरे स्थान पर रहें थे। उन्हें मात्र १६.९९ प्रतिशत यानी २,८६,८३३ वोट ही मिल पाए थे। जबकि २०१९ का चुनाव वैâलाश चौधरी ने ३,२३,८०८ वोटों से जीता था और तब उन्हें ८,४६,५२६ वोट मिले थे।
लोकसभा चुनाव में चुरू सीट पर भाजपा सांसद राहुल कस्वां का टिकट काटे जाने से जाटों में भाजपा के प्रति काफी नाराजगी व्याप्त हो गई थी। जिसका खामियाजा उन्हें जाट बहुल अधिकांश सीटों पर हार कर चुकाना पड़ा था। पिछली बार भाजपा के पांच सांसद जाट वर्ग से थे, जबकि अबकी बार अजमेर से भागीरथ चौधरी जीत पाए हैं। लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी अपने पुत्र के झालावाड़ संसदीय क्षेत्र तक ही सीमित रही थीं। उन्हें स्टार प्रचारकों की सूची में तो शामिल किया गया था मगर चुनाव प्रचार के लिए कहीं नहीं भेजा गया। सीकर से दो बार भाजपा सांसद रहकर पिछला चुनाव हार चुके स्वामी सुमेधानंद सरस्वती ने खुलकर कहा है कि यदि वसुंधरा राजे से चुनाव प्रचार करवाया जाता तो नतीजे हटकर मिल सकते थे।
झुंझुनू से भाजपा टिकट पर चुनाव में पराजित हुए शुभकरण चौधरी ने अपनी हार का कारण अग्निवीर योजना को बताया था। भाजपा के बहुत से नेताओं का मानना है कि राजस्थान से सेना में सर्वाधिक नवयुवक भर्ती होते हैं। अग्निवीर योजना आने के बाद राजस्थान के युवाओं में खासी नाराजगी व्याप्त है। कांग्रेस ने वायदा किया था कि उनकी सरकार बनने पर अग्निवीर योजना बंद कर देगी। इससे बड़ी संख्या में नवयुवकों ने भाजपा के खिलाफ मतदान किया। चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा स्वयं भी सभी २५ संसदीय सीटों पर प्रचार के लिए नहीं पहुंच सके थे। मुख्यमंत्री स्वयं चुनाव के दौरान व्यवस्थित ढंग से चुनाव प्रचार नहीं कर सके। इसी के चलते अपने गृह जिले भरतपुर की लोकसभा सीट भी हार गए। कोटा जैसी भाजपा की मजबूत सीट पर भी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला इस बार महज ४१,९७४ वोटों के अंतर से ही जीते हैं, जबकि पहले के चुनाव में उनकी जीत का अंतर लाखों वोटो में होता रहा था।
राजस्थान में भाजपा की सरकार बने सात महीने से अधिक का समय हो चुका है, मगर अभी भी सरकार पर मंत्रियों की पकड़ नहीं बन पाई है। अधिकारी वर्ग मंत्रियों की बातों को अधिक तवज्जो नहीं देते हैं। जिसके चलते मंत्रियों द्वारा आम जनता में की गई घोषणाएं पूरी नहीं होने से उनकी स्थिति हास्यास्पद बन जाती है। अभी राजस्थान में मुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष एक ही जाति के हैं। विभिन्न निगम, बोर्ड, आयोग, मंडलों में भी अभी तक या तो पिटे हुए मोहरों को या अधिकारियों को ही नियुक्ति दी गई है। जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं मिल पाई है। मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द वही चौकड़ी रहती है, जो उनके प्रदेश महामंत्री रहते उनके साथ रहती थी। इससे आम जनता में सरकार की छवि खराब हो रही है।
अगले कुछ महीनों में प्रदेश की ५ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। पांच में से भाजपा के पास एक भी सीट नहीं थी, लेकिन यदि भाजपा इन पांच सीटों को फिर से हार जाती है तो मुख्यमंत्री की नकारात्मक छवि बनेगी इसलिए सरकार के समक्ष सभी पांच विधानसभा सीटों के उपचुनाव में जीतना एक मजबूत चुनौती बन गई है। भाजपा यदि पांचों सीटों पर उपचुनाव में जीत जाती है तो लोकसभा चुनाव की हार का गम कुछ कम होगा। वरना आने वाले समय में पार्टी आलाकमान द्वारा राजस्थान को लेकर कई बड़े निर्णय किए जाने की संभावना व्यक्त की जाने लगी है।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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