मुख्यपृष्ठस्तंभकाॅलम 3 : भ्रष्टाचार पर विधानसभा में हंगामा

काॅलम 3 : भ्रष्टाचार पर विधानसभा में हंगामा

प्रमोद भार्गव
मध्य प्रदेश विधानसभा मानसून सत्र के पहले दिन सदन में नर्सिंग कॉलेजों के घोटाले की गूंज पुरजोर सुनाई दी। कांग्रेस ने इस मामले पर सदन में चर्चा कराने की मांग को लेकर खूब हंगामा किया। नतीजतन ४५ मिनट के लिए सदन की कार्यवाही विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को स्थगित करनी पड़ी। अंत में तोमर ने भरोसा दिलाया कि ध्यानाकर्षण के माध्यम से चर्चा कराई जाएगी, तब कहीं जाकर हंगामा शांत हुआ।
भाजपा के २००४ से चले आ रहे लंबे कार्यकाल में नर्सिंग घोटाले से पहले व्यापम का घोटाला सामने आया था। यह इतना बड़ा घोटाला था कि करीब आधा सैकड़ा निर्दोष लोगों को प्राण गंवाने पड़े थे और अनेक अभ्यर्थी और उनके परिजन आज भी जांच और अदालती कार्यवाही के फेर में परेशान हैं। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा इस घोटाले की जांच सीबीआई को दे दिए जाने के बाद इसकी सच्चाई तो आज तक सामने नहीं आई, लेकिन जो नेता और अधिकारी इस घोटाले में शामिल थे, उन्हें बचा लिया गया। अब बिचारे लाचार छात्र और उनके अभिभावक इस घोटाले का संकट आज तक झेलते चले आ रहे हैं। अब निजी स्तर पर खोले गए नर्सिंग कॉलेजों की जांच उच्च न्यायालय की निगरानी में चल रही है। इसी पर चर्चा की मांग को लेकर कांगे्रस ने विधानसभा में हंगामा खड़ा किया हुआ है। जो लगता है इस बजट सत्र में पूरे समय चलता रहेगा।
नर्सिंग कॉलेजों में भ्रष्टाचार का घुन एक दशक से भी ज्यादा लंबे समय से लगा हुआ है। शासन और प्रशासन का तंत्र इसे जानते हुए भी आंखें मूंदे रहा, क्योंकि ज्यादातर कॉलेजों में भागीदारी शिक्षा के माफियाओं के साथ राजनेताओं और नौकरशाहों की भी रही है। यही हाल बीएड और डीएड कॉलेजों का है। निजी स्तर पर चल रहे करीब ८० फीसदी कॉलेज ऐसे हैं, जिन्हें केवल एकमात्र कर्मचारी के रूप में प्राचार्य चला रहे हैं। दरअसल, इन कॉलेजों में पढ़ाई करनेवाले छात्र इस शर्त पर प्रवेश लेते हैं कि वे सभी तरह की शुल्क तो भर देंगे, लेकिन नियमित कक्षा में नहीं आएंगे। कॉलेज के मालिक भी यही चाहते हैं। इससे उनकी दोनों मुट्ठियों में लड्डू रहते हैं। वे छात्रों से अनुपस्थित रहने का नाजायज शुल्क भी एकमुश्त वसूल लेते हैं। बहरहाल, इन कॉलेजों में ५००-५०० किमी दूर रहनेवाले छात्र भी नियमित छात्र के रूप में पढ़ाई कर रहे हैं। इन कॉलेजों के संचालकों को इस व्यवस्था से यह लाभ भी है कि वे शिक्षकों की भर्ती भी फर्जी तौर पर किए रहते हैं। जब भौतिक रूप में छात्र ही नहीं पढ़ रहे तो फिर शिक्षकों की भला क्या जरूरत? इस व्यवस्था को चलाए रखने के लिए शिक्षा के उच्च अधिकारियों तक भी शुल्क पहुंचा दिया जाता है, जिससे अनदेखी बनी रहे। बहरहाल, इन कॉलेजों और नर्सिंग कॉलेजों में केवल धन लेकर डिग्री बांटने का काम चल रहा है।
यदि शासन-प्रशासन ईमानदार होते तो शिवराज सिंह चौहान के दूसरे कार्यकाल में ही नर्सिंग कॉलेजों की गड़बड़ियों पर विराम लग गया होता? अब शिवराज केंद्र में मंत्री हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के सिर पर विपक्ष के ओले बरस रहे हैं। हालांकि, विपक्ष भी तब इस घोटाले के विरुद्ध खड़ा हुआ है, जब उच्च न्यायालय ने इस घोटाले को संज्ञान में लेकर सीबीआई जांच बिठा दी। यह जांच न्यायालय की ही निगरानी में चल रही है इसलिए जिम्मेदार मंत्री और अधिकारियों से लेकर शिक्षा माफिया कटघरे में हैं। हालांकि, भ्रष्टाचार की यह जांच भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई थी। इस मामले में गोलमाल करने के लिए सीबीआई अधिकारी भी रंगे हाथ रिश्वत लेते पकड़े गए हैं। राहुल राज नाम के निरीक्षक को १० लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए सीबीआई ने ही गिरफ्तार किया है। सीबीआई ने सूचना मिलने पर राहुल के प्रोफेसर कॉलोनी भोपाल में स्थित उनके घर पर छापा डाला और ७ लाख ८८ हजार रुपए नकद तथा १००-१०० ग्राम के सोने के बिस्कुट बरामद किए। इसी मामले से जुड़े भोपाल के मलय कॉलेज ऑफ नर्सिंग के अध्यक्ष अनिल भास्करन, प्राचार्य सूना अनिल भास्करन और सचिन जैन नाम के बिचौलिए को गिरफ्तार किया है। अभी तक की जांच में सामने आया है कि मध्य प्रदेश के ८०० कॉलेजों में से करीब ६०० संकाय सदस्य फर्जी हैं। प्रदेश सरकार के अधीनस्थ नर्सिंग परिषद ने इनका पंजीयन और प्रवासन का सत्यापन किया हुआ है।
जाहिर है, घोटाले के इस बड़े खेल में अभी भी सरकारी क्षेत्र की बड़ी मछलियां सुरक्षित हैं। गौरतलब है इन्हें कौन बचा रहा है? जबकि मुख्यमंत्री ने इस घोटाले में कठोर कार्यवाही के निर्देश दिए हुए हैं। दरअसल, इस घोटाले की जड़ें बहुत गहरी हैं। जिन कॉलेजों में गड़बड़ियां पाई गई हैं या जिन्होंने शर्तें पूरी नहीं की हैं, ऐसे हालात २०१३ से ही चले आ रहे हैं। उस दौरान संचालित हो रहे ३५० कॉलेजों में से १५० से ज्यादा तय मानकों के अनुरूप नहीं थे। बावजूद प्रतिवर्ष उनकी कमियों पर पर्दा डाले रखकर उन्हें नया सत्र चलाए रखने की अनुमतियां चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा दी जाती हैं इसीलिए मुखर हुई कांग्रेस तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री के जिला मुख्यालयों पर पुतले जला रही है और उनके इस्तीफे की मांग कर रही है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार द्वारा सरकार पर जब चर्चा से भागने का आरोप लगाया गया तो मुख्यमंत्री यादव नाराज हो गए और उन्होंने कड़े लहजे में उत्तर देते हुए कहा कि ‘उत्तेजना में कोई बात करेगा तो स्वीकार नहीं की जाएगी। चर्चा से न तो कोई भाग रहा है और न ही कोई डर है।‘ अंत में हंगामा इतना बढ़ गया कि विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी और विपक्ष को भरोसा दिया कि मंगलवार को प्रश्नकाल के बाद चर्चा कराने की व्यवस्था कर दी जाएगी।
दरअसल, सत्तारूढ़ दल इस मुद्दे पर चर्चा करने का बहाना न्यायालय के समक्ष मामला विचाराधीन होने का कर बचने की कोशिश में था। संसदीय कार्य मंत्री वैâलाश विजयवर्गीय ने चर्चा के दौरान कहा भी ‘कि जो विषय न्यायालय में विचाराधीन होता है या कोई जांच चल रही होती है, तो उस पर जांच नहीं कराई जाती है। परंतु नेता प्रतिपक्ष ने उत्तर दिया कि नर्सिंग परिषद पर कोई रोक नहीं है, अतएव इस परिप्रेक्ष्य में चर्चा हो सकती है। कॉलेज को नर्सिंग कॉलेज चलाने की अनुमति परिषद ने ही दी हुई है। इसी ने कॉलेजों के तय मानकों की अनदेखी कर नर्सिंग शिक्षा का बंटाधार करने का सत्यापन दिया हुआ है, अतएव इस पर चर्चा जरूरी है।

 

अन्य समाचार