रमेश सर्राफ धमोरा
देश के पूर्वोत्तर में स्थित एक महत्वपूर्ण राज्य मणिपुर पिछले ३ महीनों से अंदरूनी हिंसा से जूझ रहा है। यहां की आबादी के दो प्रमुख समुदाय मैतेई व कुकी जनजाति के मध्य जातीय संघर्ष छिड़ा हुआ है, जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है। तीन महीने बीत जाने के बाद भी आपसी संघर्ष रुकने का नाम नहीं ले रहा है। मणिपुर में भाजपा के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की सरकार वहां की हिंसा पर नियंत्रण पाने में पूरी तरह से विफल साबित हो रही है। हर दिन हो रही आपसी मारकाट के चलते मणिपुर का जनजीवन पूरी तरह से ठप हो गया है।
हाल ही में एक वीडियो सामने आया था, जिसमें कुछ महिलाओं के साथ मैतेई समुदाय के लोगों ने बलात्कार कर उनको नंगा घुमाया था। इस घटना के सामने आने के बाद पूरा देश खुद को शर्मसार महसूस कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस घटना पर स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र व राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि मणिपुर में शांति बहाली की दिशा में त्वरित कार्यवाही की जाए। विपक्षी दलों के नेता लंबे समय से मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मणिपुर की घटनाओं की निंदा करते हुए गहरा दुख प्रकट किया है। उन्होंने कहा कि किसी भी अपराधी को बख्सा नहीं जाएगा। मणिपुर की पुलिस भी आपसी जातीय गुटों में बंट चुकी है। पुलिस के जवान पुलिस थानों से आधुनिक हथियार लूटकर एक-दूसरे के खिलाफ उपयोग कर रहें हैं। राज्य सरकार शांति बहाली की प्रक्रिया में पूरी तरह असफल रही है। ऐसे में केंद्र सरकार को त्वरित कार्यवाही करते हुए मणिपुर में शांति बहाली हो, इस दिशा में तेजी से काम करना चाहिए।
मणिपुर से म्यांमार की ३५० किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा लगती है, जिसके ज्यादातर हिस्से में किसी तरह की फेंसिंग नहीं होने के कारण लोगों का बिना किसी डर के आना-जाना लगा रहता है। म्यांमार में सेना द्वारा तख्ता पलटने के बाद बड़ी संख्या में वहां से शरणार्थियों ने पलायन कर मणिपुर में घुसपैठ कर ली है, जिससे भी मणिपुर की स्थिति और अधिक खराब हो गई है। म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों का मणिपुर के कुकी लोगों के साथ जुड़ाव होने के चलते मैतेई लोगों में भय है कि शरणार्थियों के कारण कुकी लोगों की आबादी बढ़ने से वह बहुसंख्यक बन जाएंगे। मणिपुर की आबादी करीब ३८ लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय मैतेई, कुकी और नगा है। मैतेई ज्यादातर हिंदू हैं। कुकी-नगा ईसाई हैं व एसटी वर्ग में आते हैं। मैतेई आबादी करीब ५५ प्रतिशत है, जो इम्फाल घाटी में रहती है। वहीं कुकी-नगा आबादी करीब ४५ प्रतिशत है, जो पहाड़ों में रहती है। मैतेई समुदाय ने मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाकर उन्हें भी जनजाति का दर्जा देने की मांग की थी। उनकी दलील थी कि १९४९ में मणिपुर का भारत में विलय होने से पहले उन्हें जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की थी कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाए।
नगा-कुकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। आदिवासी समूहों को डर है कि यदि मैतेई को विशेष दर्जा मिलता है तो उनका पहाड़ी क्षेत्रों पर भी कब्जा हो जाएगा। इनका कहना है कि राज्य की ६० में से ४० विधानसभा सीट पहले से ही मैतेई बाहुल्य इम्फाल घाटी में हैं। ऐसे में मैतेई को एसटी का आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का हनन होगा। मणिपुर में विवाद के मूल कारण पहाड़ी बनाम घाटी की पहचान का संघर्ष और समान विकास नहीं होना है। मैतेई राजनीतिक प्रभुत्व वाला समुदाय है, जिसके कारण राज्य का विकास घाटी तक ही सीमित है। सरकारी नौकरियों में भी मैतेई समुदाय का प्रभुत्व अधिक है। राज्य के कानून के कारण मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ों में जमीन नहीं खरीद सकते हैं, जबकि कुकी सहित अन्य जनजाति समूह के लोग राज्य के किसी भी हिस्से में जमीन खरीद सकते हैं। इसी कारण से मैतेई लोगों को लगता है कि राज्य के कानून में जनजातियों को उनकी आबादी की तुलना में अधिक लाभ प्रदान किए गए हैं। मणिपुर में चल रहे आपसी जातीय युद्ध को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार को मणिपुर के सभी समुदायों में विश्वास पैदा करना होगा। केंद्र सरकार को वहां के लोगों को यह बताना होगा कि किसी भी जाति, धर्म, समुदाय के लोगों के साथ भेदभाव नहीं होगा। उनके अधिकारों का किसी भी सूरत में हनन नहीं होने दिया जाएगा। केंद्र सरकार के बड़े नेताओं को मणिपुर जाकर शांति बहाली के प्रयास करने चाहिए।
आज मणिपुर में हिंसा की आग इतनी तेज हो गई है कि कोई भी राजनीतिक दल या नेता दिल्ली में बैठकर मणिपुर में शांति बहाल नहीं कर सकता है। अब तो मणिपुर के पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्री भी मणिपुर में चल रही हिंसा को लेकर चिंता जाहिर करने लगे हैं। उन्हें भी डर है कि यदि मणिपुर में भड़की हिंसा पर शीघ्र ही काबू नहीं पाया गया तो धीरे-धीरे उसका असर पड़ोसी राज्यों के लोगों पर भी पड़ने लगेगा, जिससे वहां भी कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है।
विपक्षी दलों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो हमेशा शांति व भाईचारे की बातें करते हैं। वह पिछले तीन महीने से मणिपुर को लेकर चुप क्यों हैं। प्रधानमंत्री मोदी को मणिपुर की हिंसा को रोकने के लिए मणिपुर का दौरा कर वहां के लोगों से बात करनी चाहिए। उन्हें विश्वास देना चाहिए कि केंद्र सरकार वहां के लोगों के अधिकारों में किसी भी तरह की कटौती नहीं होने देगी। गृहमंत्री अमित शाह मई महीने में मणिपुर का दौरा कर विभिन्न समुदायों के लोगों से मिल चुके हैं। लेकिन उनके दौरे का मणिपुर में शांति बहाली की दिशा में कोई प्रभाव नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्वयं आगे आकर सभी विपक्षी दलों के नेताओं से मणिपुर की स्थिति को लेकर चर्चा कर उनके सुझाव लेकर शांति बहाली की प्रक्रिया प्रारंभ करनी होगी, तभी मणिपुर में हिंसा रुक पाएगी।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)