मुख्यपृष्ठस्तंभस्तंभ : महाराष्ट्र का डरावना सच गायब हो रही हैं महिलाएं!

स्तंभ : महाराष्ट्र का डरावना सच गायब हो रही हैं महिलाएं!

यह हैरान करने वाला ही नहीं, बल्कि बहुत खौफनाक भी है कि महाराष्ट्र जैसे देश के अग्रिम पंक्ति के औद्योगिक और साक्षर प्रदेश से हर दिन बड़े पैमाने पर लड़कियां और महिलाएं रहस्यमयी ढंग से गायब हो रही हैं। यूं तो यह देश में अकेले महाराष्ट्र की समस्या नहीं है, केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल २०१९ से २०२१ के बीच देशभर से १८ वर्ष से ज्यादा उम्र की १०,६१,६४८ महिलाएं और १८ वर्ष से कम उम्र की २,५१,४३० लड़कियां गायब हुर्इं। लेकिन इस साल तो पिछले ८ महीनों में महिलाओं के गायब होने के मामले में महाराष्ट्र ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। पिछले ८ महीनों में अकेले महाराष्ट्र से २६,००० से ज्यादा महिलाएं इन पंक्तियों के लिखे जाने तक गायब हो चुकी हैं और हैरानी की बात तो यह है कि महिलाओं के गायब होने का यह क्रम एक तरह से लगातार बढ़ता ही जा रहा है। मसलन जनवरी में जहां २,८३३ महिलाएं गायब हुर्इं, वहीं फरवरी में यह आंकड़ा बढ़कर २,९४० महिलाओं का हो गया। मार्च में ३,२६२, अप्रैल में ३,३८२, मई में ३,९३३, जून में ३,७८४, जुलाई में ३,३४० और अगस्त में २४ अगस्त तक २६१३ महिलाएं गायब हो चुकी थीं।
इन आंकड़ों में डराने वाला एक पहलू यह भी है कि १८ साल से कम उम्र की लड़कियों के गायब होने की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। जहां मध्य प्रदेश, उड़ीसा और झारखंड में महिलाओं के इस कदर गायब होने की बात है तो इन प्रदेशों के ज्यादातर आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों से महिलाओं के गायब होने की प्रवृत्ति देखने में आती है, वहीं महाराष्ट्र में मुंबई जैसे कॉस्मोपोलिटन शहर इस मामले में सबसे आगे है। महज १ से २७ अगस्त यानी एक महीने से भी कम समय में महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों से महिलाओं के गायब होने की जो संख्या है, उसमें मुंबई सबसे आगे है। मसलन इस दौरान मुंबई से २९१, थाणे से १४६, पुणे से ११७, पिंपरी चिंचवड़ से १०९, कोल्हापुर से ९७, नागपुर से ९१, जलगांव से ७७, नवी मुंबई से ६४, छत्रपति संभाजी नगर से ५९ और नासिक से ५५ महिलाएं महज २७ दिनों में गायब हो गर्इं। कहने का मतलब मुंबई जैसे देश के सबसे समृद्ध और चाक-चौंबद सुरक्षावाले शहर से भी हर दिन करीब १२ महिलाएं गायब हो जाती हैं, तो यह अकेले घर की कलह, प्रेम प्रकरण जैसा मामला नहीं है, इसके पीछे निश्चित रूप से कोई बड़ा रैकेट काम कर रहा है।
निश्चित रूप से देश के ज्यादातर हिस्सों से ही महिलाएं गायब हो रही हैं, लेकिन जब ओडिशा, झारखंड और मध्य प्रदेश से महिलाओं के गायब होने की बात आती है, तो इसका पारंपरिक निष्कर्ष यह निकाला जाता है कि चूंकि इन प्रदेशों में गरीबी और बेरोजगारी अत्यधिक है, इसलिए इन प्रदेशों से खास तौरपर गांवों से गरीब और आदिवासी महिलाओं को बरगलाकर देश के महानगरों में नौकरी दिलाने के लिए ले जाया जाता है। लेकिन महाराष्ट्र इस तरह की गरीबी और बेरोजगारी से पीड़ित नहीं है कि गांव में रहने वाले लोग अपनी लड़कियों को जोखिम मोल लेते हुए शहरों में नौकरी के लिए भेज दें। सवाल उठता है कि पूरे देश में सबसे ज्यादा रोजगार देनेवाले शहर मुंबई से हर दिन औसतन एक दर्जन महिलाएं क्यों गायब हो रही हैं? जाहिर है मुंबई से ज्यादा नौकरी पाने की संभावना तो देश के किसी दूसरे शहर में शायद ही होगी, इसलिए यह तो नहीं माना जा सकता कि गरीबी और भुखमरी के कारण महाराष्ट्र में बड़ी तादाद में महिलाएं अपराधियों के चंगुल में फंस रही हैं। निश्चित रूप से महिलाओं के गायब होने के पीछे कोई बड़ा और रहस्मय रैकेट चल रहा है वरना पिछले पांच सालों में महाराष्ट्र से एक लाख से ज्यादा महिलाएं गायब न होतीं और महाराष्ट्र महिलाओं के गायब होने के मामले में देश में दूसरे नंबर का सबसे डरावना प्रदेश बनकर न उभरता। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े भी बताते हैं कि महाराष्ट्र में लगातार महिलाएं असुरक्षित हो रही हैं। साल २०१८ से लेकर साल २०२२ तक महाराष्ट्र से जितनी महिलाएं गायब हुर्इं, उसमें से १० फीसदी से ज्यादा १८ साल तक की लड़कियां हैं। पिछले दिनों इस भयावह स्थिति पर एक पूर्व सैनिक ने बॉम्बे हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है और कोर्ट से गुहार लगाई है कि वह सरकार को महिलाओं की सुरक्षा के लिए बाध्य करे। इस याचिका के मुताबिक, गायब हो रही महिलाएं, मानव तस्करी, अनैतिक कारोबार और अलगाववादी गतिविधियों को अंजाम देने वाले अपराधियों के रैकेट का शिकार हो सकती हैं।
गायब महिलाएं देशभर में चोरी छुपे चल रहे मानव अंगों के आपराधिक कारोबार का भी हिस्सा हो सकती हैं। इसलिए प्रदेश सरकार को कई दूसरी प्राथमिकताओं से पहले महिलाओं की सुरक्षा को प्रदेश की सबसे पहली और जरूरी प्राथमिकता बनाना होगा वरना मानवाधिकार आयोग, पुलिस बल और विभिन्न तरह की खुफिया एजेंसियों के होने का कोई अर्थ नहीं है। दरअसल जिस तरह से पूरे देश से महिलाओं को टारगेट बनाकर गायब किया जा रहा है, उससे साफ है कि अपराधियों को इस बात से बड़ी निश्चिंतता है कि चाहे राज्य सरकारें हों या केंद्र सरकार, महिला सुरक्षा को लेकर कितनी भी बड़ी-बड़ी बातें और दावे करती हों, लेकिन वास्तविकता यह है कि महिलाओं की सुरक्षा किसी भी सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। अगर होती तो हर दिन देशभर से कई हजार महिलाएं लगातार सालों से गायब न हो रही होतीं।
फेमिनिज्म इन इंडिया यूएनएफपीए की एक रिपोर्ट बताती है कि यदि देश से महिलाएं इसी तरह लगातार गायब होती रहीं, जैसे कि पिछले कई सालों से गायब हो रही हैं तो साल २०४७ तक जब तक हिंदुस्थान दुनिया के विकसित देशों की कतार में शामिल होने के उत्सुक है, तब तक आजादी के बाद से करीब १० करोड़ महिलाएं गायब हो चुकी होंगी।

प्रासंगिक
लोकमित्र गौतम

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