आजा तू ज़रा

दिल की ये सदाएँ सुनके
आजा तू ज़रा
होठों की पुकार से
दिल के इस प्यार से
आजा तू ज़रा..

हर तरफ़ बेचैन हैं
लफ्जों की खामोशियाँ
कैसे कहें कोई सदा,
दिल की ये अर्जियाँ
ले जा मेरा, सब कुछ भला
पर ऐसी चोट न दे,
जो हो गुनाह, वो सजा दे
आजा तू ज़रा..

कोई खींचता है ऐसे
मुझे अकेले यूँ ही पा के
तुम न हो तो, चंद लम्हे फीके..
डर – सा बना रहता है ऐसे
जैसे आसमां धुआँ नज़र हो
जैसे चाँद रोशन न हो
आते – जाते है, ऐसे साये
कभी दाएँ, कभी बाएँ..
आजा तू ज़रा..

तड़प होती हैं धड़कनों की
भ्रम होती हैं, न आने की
सोचता हूँ, वो पल दो पल की हँसी
जहाँ से निखरी,
वहाँ से सिमटी
पत्तों पे ठंडी शबनम भी
गरम हुईं हैं, नरम हुईं हैं

तेरे न आने की खबर पाईं जो
ये भी दर से लुढ़क गई है
इतना भी क्या कसूर मेरा
जो दिल खुद से दूर मेरा
देख कितना उदास है दिल
दे गया जो तू मुश्किल
क्या भूल हुईं, जो माफ़ न हुए…
आजा तू ज़रा…

मनोज कुमार
गोण्डा उत्तर प्रदेश

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