मुख्यपृष्ठसमाचारमेनका पर असमंजस कायम...सपा के भीम उतरे समर में

मेनका पर असमंजस कायम…सपा के भीम उतरे समर में

– आम चुनाव और सियासत सुलतानपुर की

विक्रम सिंह / सुलतानपुर

अयोध्या से सटी अवध की सुलतानपुर सीट पर मेनका गांधी की उम्मीदवारी पर भाजपा का असमंजस कायम है, वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन ने दांव खेल दिया है। गठबंधन में कांग्रेस ने ये सीट सपा के लिए छोड़ी तो उसने भी बगैर मौका खोए निषाद समुदाय से उम्मीदवार उतारकर भाजपाइयों के माथे पर शिकन ला दी है। यूं तो १९८९ से ही सपा को यहां से कभी भी लोस चुनाव में कामयाबी नहीं मिल सकी है, लेकिन उसने हमेशा भाजपा के समक्ष प्रबल चुनौती अवश्य पेश की है। फिलहाल, एकलव्य सेना गठित कर निषादों व अति पिछड़ों के मध्य सियासत करने वाले भीम निषाद को आगे करके सपा ने अवध क्षेत्र में बड़ा कूटनीतिक दांव चल दिया है, जिससे भाजपाई वोट बैंक में सेंध लगने की पूरी उम्मीद बन पड़ी है।
सन १९५२ से ही अस्तित्व में रहने वाली सुलतानपुर सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। १९५७ में महामना मदन मोहन मालवीय के पुत्र गोविंद मालवीय भी यहां से सांसद चुने जा चुके हैं। सन १९७७ व १९८९ की जनता लहर को छोड़ दिया जाय तो अधिकांश मौकों पर कांग्रेस के उम्मीदवार यहां पर अपना दबदबा कायम रखने में कामयाब रहे। हालात बदले १९९१ की रामलहर से। जब पहली बार अयोध्या के एक महंत ब्रह्मचारी विश्वनाथ दास शास्त्री ने भाजपा की इस सीट से खाता खोला। इसके बाद अयोध्या के पूर्व एसएसपी डीबी राय भी दो बार यहां से सांसद चुने गए। इस क्रम को तोड़ा बसपा के जयभद्र सिंह व ताहिर खान ने क्रमशः १९९९ व २००४ में। भाजपा को दोनों मौकों पर ऐसी कड़ी शिकस्त मिली कि जमानत तक न बच पाई, फिर कांग्रेस की वापसी कराई २०१० में पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. संजय सिंह ने। वे भारी मतों से जीत दर्ज कर यहां से संसद पहुंचे। हालांकि, २०१४ व २०१९ में गांधी परिवार और संजय गांधी के सुलतानपुर से करीबी रिश्ते का फायदा मिला वरुण गांधी व मेनका गांधी को। पहले वरुण और फिर मेनका यहां से भाजपा के सिंबल पर संसद पहुंचीं। फिलहाल, मेनका-वरुण के भाजपा हाईकमान से संबंध सामान्य नहीं रह गए हैं। ऐसी चर्चा है कि पार्टी दोनों को अब टिकट नहीं देना चाह रही। पीलीभीत व सुलतानपुर दोनों ही सीटों पर भाजपा अभी तक फैसला नहीं कर सकी है, जबकि सपा ने दोनों ही सीटों पर क्रमशः भगवत शरण गंगवार व भीम निषाद को उतारकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। सपा का दावा है कि सुलतानपुर में निषाद की आबादी दो लाख है, जो कि उसकी चुनावी वैतरणी पार करने का मुख्य आधार बनेगी। जबकि भाजपाई परेशान हैं अपने ही आलाकमान से। उम्मीदवार उतारने में हो रही देरी को लेकर कार्यकर्ता जनता को जवाब नहीं दे पा रहे। सिर्फ बंद कमरों में भाजपाइयों की बैठकें चल रही हैं। ज्यादातर कार्यकर्ता व पार्टी के स्थानीय मंझोले नेता उलझन के इस दौर से निजात पाने के लिए देशाटन व तीर्थाटन पर निकल चुके हैं। आमतौर पर मुखर रहने वाला मेनका व वरुण का एक्स प्लेटफॉर्म भी खामोश हो गया है। नए उम्मीदवारों की लंबी कतार है पार्टी में, लेकिन सभी खामोश हैं। दो बार सांसदी जीतने वाली बसपा भी अभी तक प्रत्याशी चयन में फिसड्डी साबित हो रही है। अलबत्ता सपा के भीम ने कार्यकर्ताओं को एकजुट करने की खातिर मोर्चेबंदी तेज कर दी है।

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