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झांकी : तौलिए पर घमासान

अजय भट्टाचार्य

उत्तर प्रदेश में कुर्सी पर लगे तौलिए को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। सांसदों-विधायकों और अधिकारियों की हैसियत का पैमाना तौलिया बन गया है। जिस आदमी की कुर्सी पर तौलिए लगे हैं वो उतना ही बड़ा आदमी है। मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने इस महीने एक मीटिंग की, जिसमें अधिकारियों को प्रशासनिक शिष्टाचार के बारे में कहा गया है कि जनता द्वारा चुने गए सांसद और विधायक अफसरों से ऊपर हैं। शिष्टाचार के तहत उनका सम्मान करना जरूरी है। मुख्य सचिव सिर्फ यही समझाने की कोशिश कर रहे थे कि मीटिंग में प्रतिनिधियों को तौलिए वाली कुर्सी दी जाए। वो भी उनके प्रोफाइल के अनुसार हो। कुछ विधायकों ने विधानसभाध्यक्ष सतीश महाना के समक्ष अधिकारियों द्वारा यह मुद्दा उठाते हुए कहा था कि अफसर खुद तो तौलिए लगी कुर्सी या सोफे में बैठते हैं और उन्हें बैठने के लिए साधारण कुर्सी देते हैं। अगर अधिकारी ही उनका सम्मान नहीं करेंगे तो वो जनता के सामने वैâसे पेश आएंगे। उ.प्र. में अब लाल-नीली बत्ती ओहदे का सूचक नहीं है, बल्कि सफेद तौलिए से जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की हैसियत का पता चलता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कुर्सी में भी तौलिए लगे होते हैं, लेकिन रंग भगवा होता है।
किस्सा मौलाना का
पुरानी बात है चुनाव का माहौल था और दिल्ली के सपा ऑफिस में नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव आने वाले थे। इस दौरान एक मौलाना तीन बसों में मौलानाओं को भरकर लाए। सभी लोग ऑफिस के बाहर खड़े थे, इतनी भीड़ को देखकर नेताजी समझ गए कि मौलाना को टिकट चाहिए। तुरंत नेताजी ने बोला कि इतने लोगों के साथ आया है, बहुत बड़ा नेता बन रहा है। इसके बाद नेताजी ने उसको वापस भेज दिया। नेताजी ने इस दौरान एक बात कही कि जब तक दिल्ली की सड़कों पर ऐसे चलने वाले नेताओं को पार्टियां टिकट देती रहेंगी, तब तक रूट लेवल के कार्यकर्ता अपने आप को इससे जोड़ नहीं पाएंगे। अगर ऐसे लोग घर बैठे रहें तो पार्टी खुद दी ऐसे लोगों की योग्यता को देखकर टिकट उनके घर भिजवा दे। आलमबदी ऐसे ही नेताओं में से एक हैं, जो कभी भी चुनाव के एलान के बाद कभी नेताजी के घर की तरफ नहीं गए। उनकी ईमानदारी और सादगी को देखते हुए नेताजी ने भी कभी उनको टिकट लेने के लिए घर से बाहर आने का मौका नहीं दिया। वह खुद ही आलमबदी के घर पार्टी टिकट और सिंबल भिजवा देते थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

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