मनोहर मनोज
हमारी सामाजिक जीवनशैली व सार्वजनिक जीवन की संरचना जिस संक्रमण के दौर से गुजर रही है, साइबर अपराध उसके बड़े गवाह बन रहे हैं। क्योंकि मौजूदा दौर में जिस तरह हमारे रोजमर्रा की बाकी सारी गतिविधियां डिजिटल तकनीकी पर निर्भर हो गई हैं, उसी तरह अपराध की दुनिया भी अपराधों को अंजाम देने के लिए इस तकनीक का सहारा ले रही है। ‘डिजिटल फ्राॅड’ आज सबसे बड़ा खौफ बन गया है। देश में शिक्षित बेरोजगारों का वह बड़ा तबका जिनकी सुबह शाम उनके अपने स्मार्ट मोबाइल की चैटिंग, मीटिंग की ऑनस्क्रीन गतिविधियों में बीतती है, उसी का नतीजा हैं देश में बढ़ते साइबर अपराधी। देश में कई इलाके तो बाकायदा ऑनलाइन फाइनेंशियल अपराधों के हॉट स्पाट बन चुके हैं। झारखंड का जामतारा और हरियाणा का मेवात ये दो नाम तेजी से उभरे हैं। आए दिन साइबर अपराध की नई-नई तरह की घटनाओं से हमारा मीडिया पटा रहता है।
अभी हाल में इंडियन साइबर क्राइम कोआर्डिनेशन सेंटर द्वारा एक आंकडा जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि मौजूदा साल के जनवरी से अप्रैल महीने के दौरान लोगों के करीब १,४२० करोड़ रुपए ६२,५८७ ऑनलाइन निवेश घोटालों के जरिए अपराधियों ने उड़ा लिए। करीब २२२ करोड़ रुपए २०,०४३ ट्रेडिंग स्वैâम्स के जरिए उड़ाए गए और करीब १२० करोड़ रुपए की ठगी लोगों से उनके परिजनों की गिरफ्तारी की प्रâॉड सूचना के जरिए की गई। इतना ही नहीं, करीब १,७२५ डिजिटल ऑनलाइन रोमांस व डेटिंग प्रâॉड के जरिए ऑनलाइन प्रेमियों से १३ करोड़ रुपए ठगे गए।
गौरतलब है कि उपरोक्त डिजिटल घोटालों के आंकड़ों के साथ यह भी खुलासा हुआ कि इन अपराधों के तार विदेशों से जुड़े हैं जिनके सरगना म्यांमार, कंबोडिया, लाओस जैसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में बैठे होते है। इन अपराधों को अंजाम देने वाले एप चीन में निर्मित होते हैं, ऐसा बताया जाता है। इन्होंने भारत के कई हिस्सों को साइबर अपराधों का हब बना दिया है। पिछले साल यानी जनवरी से अप्रैल २०२३ के बीच जहां नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (आई ४ सी) पर करीब एक लाख मामले दर्ज हुए जिनको लेकर करीब दस हजार एफआईआर दर्ज की गर्इं, वहीं वर्ष २०२४ में इन अपराधों की दर इसी अवधि के दौरान सीधे छह गुना बढ़कर करीब छह लाख हो गई। इन अपराधों के जरिए ७,०६१ करोड़ रुपए की ठगी की गई, साथ ही समय पर पोर्टल पर दर्ज शिकायत के जरिए करीब ८१२ करोड़ रुपए की ठगी को रोका भी जा सका। आई ४ सी पोर्टल और पुलिस एजेंसियों के बीच सहयोग की वजह से इन दर्ज साइबर अपराधों के प्रत्युत्तर में पिछले चार महीनों में अपराध में प्रयुक्त करीब ३.२ लाख बैंक खातों को प्रâीज किया गया और करीब तीन हजार यूआरएल और ५९५ मोबाइल एप को ब्लॉक किया गया। गौरतलब है कि साइबर पुलिस की विभिन्न एजेंसियों ने इन अपराधों में संलग्न ५.३ लाख मोबाइल सिम और करीब ८० हजार मोबाइल आइएमइआई नंबरों को संस्पेंड भी किया है।
भारत में साइबर अपराध एक नई परिघटना है, जिसे लेकर चाहे जागरूकता प्रदान करने का कार्य हो, अपराध की रोकथाम या जांच करने का कार्य हो या इसके बचाव का कार्य हो, वह अभी तक फुलप्रूफ नहीं बन पाया है। चाहे वित्तीय संस्थाएं हों, उपभोक्ता हो, साइबर पुलिस हो या फिर इनकी कानूनी अधिसंरचना, साइबर अपराधों को लेकर अभी भी ट्रायल एंड एरर थ्योरी चल रही है और कोई स्थाई समाधान या निराकरण तंत्र नहीं बन सका है। विडंबना यह है कि इन घटनाओं के मार्फत ये देखा जा रहा है कि बैंक एकाउंट ‘हैक’ करके पैसे ऐंठने वाले अपराधी तुरत-फुरत अपने पैसे को किसी वैध खाते में ट्रांसफर करके उसके बदले नकद ले लेता है या शॉपिंग कर लेता है। अपने फर्जी डिजिटल खातों और मोबाइल सिम को रातोंरात बदल लेता है, इसका खामियाजा भुगतता है वैध खातेदार व्यक्ति। यह शख्स जानकारी के अभाव में अपराधी को नकद या शॉपिंग की सुविधा देकर मनी लॉन्ड्रिंग का अपराधी बन जाता है। वस्तुस्थिति ये है कि साइबर पुलिस या जांच एजेंसियां असली अपराधी को न पकड़कर अपराध में इस्तेमाल किए गए निर्दोष लोगों की धरपकड़ करके उन्हें मानसिक अवसाद देती हैं।
चूंकि इन अपराधों को अंजाम देने वाले सरगना दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में बैठे बताए जाते हैं, जो भारत के अलग-अलग हिस्सों में बेरोजगार युवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। बताया जाता है कि दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साइबर सरगनाओं द्वारा फेक जॉब्स के विज्ञापन एजेंट देश के आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिसा और दिल्ली जैसे राज्यों में पकड़े गए हैं। साथ ही सोशल मीडिया साइटों पर त्वरित लाभ वाले फाइनेंशियल निवेश, गेमिंग तथा लोगों को उनके परिजनों की पुलिस कस्टडी का भय दिखाकर पैसे ऐंठने तथा रोमांस व हनीट्रैप की घटनाएं तो बिल्कुल आम हो गई हैं। बताया जाता है कि ये सारे अपराधी कभी वैâसिनों जैसे कारोबार के हिस्से हुआ करते थे। साइबर अपराधों के अनेकानेक नये तरीके ईजाद किए जा रहे हैं, जिनके बारे में पहले से न तो पब्लिक और न ही पुलिस अनुमान लगा पाती है इन अपराधों में फाइनेंशियल प्रâॉड, मनी लांड्रिग, गेमिंग, लॉटरी, रोमांस, प्रâेंडशिप, जॉब प्रâॉड के साथ ह्युमन ट्रैफिकिंग की भी घटनाएं सरेआम घट रही हैं। अभी कुछ ही दिन पहले विदेश मंत्रालय कई भारतीय कामगारों को दुनिया के कई मुल्कों से रेस्क्यू करके वापस भारत लाया है। हकीकत यह कि जिस तरह से हमारी लाइफस्टाइल बदल रही है, उसी तरीके से बीमारियां, महामारियां और अपराधों के रंग ढंग भी बदल रहे हैं। साइबर थाने देश के कई हिस्सों में स्थापित कर दिये गए हैं, पर इनमें कार्यरत कर्मी बिल्कुल भी प्रशिक्षित नहीं है बल्कि उल्टे ये फरियादी को ही ब्लैकमेल करने लगते हैं। कुल मिलाकर साइबर अपराध एक नए तरह का भ्रष्टाचार है, ऐसा भ्रष्टाचार जो चटपट ऑनलाइन ट्रिक के जरिए किया जा रहा है। हत्या, लूट, डाका, चोरी और बलात्कार पुराने समय के अपराध हुआ करते थे और वित्तीय लेनदेन का प्रâॉड भ्रष्टाचार का हिस्सा होता था। पर अब ऑनलाइन और साइबर फाइनेंशियल प्रâॉड उन्हीं भ्रष्टाचारों की आधुनिक कड़ियां हैं। आधुनिक अपराध और भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुका साइबर क्राइम केवल हमारे देश के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है, जिसके लिए अविलंब एक अंतर्राष्ट्रीय संधि व देशों के बीच आपसी समझौतों की दरकार है।
(लेखक वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार तथा ‘इकोनॉमी इंडिया’ पत्रिका संपादक हैं)