डॉ. अनिता राठौर
२१ सितंबर से आतिशी आठवीं मुख्यमंत्री के रूप में दिल्ली की बागडोर संभालेंगी। आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक दल द्वारा १७ सितंबर २०२४ को सर्वसम्मति से ४३ वर्षीया आतिशी दिल्ली की आठवीं मुख्यमंत्री के रूप में चयनित हुर्इं। सुषमा स्वराज व शीला दीक्षित के बाद आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री हैं। शराब घोटाले में जमानत पर रिहा होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा की थी और उन्होंने १७ सितंबर को अपना त्यागपत्र लेफ्टिनेंट गवर्नर वीके सक्सेना को सौंप भी दिया। बकौल केजरीवाल,
‘वे अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उसी समय बैठेंगे, जब दिल्ली के मतदाता विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी को जिताकर उन्हें ईमानदारी का सर्टिफिकेट दे देंगे।’ दिल्ली में अगले साल फरवरी तक विधानसभा चुनाव संभावित है।
इस पृष्ठभूमि में यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि दिल्ली की नई मुख्यमंत्री को हाई-प्रोफाइल जॉब अवश्य मिला है, लेकिन अति सीमित अवधि के लिए। अगर आप दिल्ली चुनाव जीत जाती है तो केजरीवाल ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर होंगे। आतिशी केजरीवाल को अपना राजनीतिक गुरु मानती हैं। इसलिए केजरीवाल को सलाखों के पीछे से बाहर लाने के लिए वही सबसे अधिक संघर्ष और आंदोलन करते हुए दिखाई दे रही थीं। केजरीवाल भी आतिशी पर बहुत अधिक विश्वास करते हैं, इसलिए उन्हें शिक्षा व वित्त सहित काबिना में सबसे अधिक पोर्टफोलियो दे रखे थे। आतिशी की छवि भी एकदम साफ-सुथरी है कि वह जनहित के लिए पूर्णत: समर्पित हैं, जो इस बात से स्पष्ट है कि ऑक्सफोर्ड से शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद उन्होंने किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में मोटे वेतन का जॉब नहीं किया, बल्कि मध्य प्रदेश के एक गांव में जाकर शिक्षा व आर्गेनिक फार्मिंग को प्रोत्साहित किया।
उनके पति प्रवीण सिंह तो अभी तक इसी समाज सेवा में लगे हुए हैं और इतना लो-प्रोफाइल रहते हैं कि सोशल मीडिया तक पर भी उनकी तस्वीर मुश्किल से ही देखने को मिलती है। आतिशी की इसी राजनीतिक ईमानदारी के चलते गुरु को शिष्या पर भरोसा है कि समय आने पर सत्ता हस्तांतरण में कोई रुकावट नहीं आएगी, यानी झारखंड जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। इसलिए गोपाल राय, सौरभ भरद्वाज आदि की दावेदारी को एक किनारे करते हुए आतिशी का चयन बतौर मुख्यमंत्री किया गया।
बहरहाल, पिछली बार जब केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा दिया था, तो उन्होंने भारी जीत दर्ज करके मुख्यमंत्री पद पर वापसी की थी। तब से अब तक यमुना में काफी पानी व गंदगी बह चुकी है, फिर इसके ऊपर लटकी हुई है दस साल से अधिक की सरकार विरोधी लहर भी। इस सबको केवल इस्तीफा कार्ड खेलकर अनदेखा नहीं किया जा सकता। लेकिन इस्तीफे को नाटकीय अंदाज में लहराते हुए केजरीवाल ने प्रदर्शित किया कि जेल की रोटी ने उनके हौसले को पस्त नहीं किया है। पिछले कुछ माह आप कार्यकर्ताओं पर भले ही भारी पड़े हों, लेकिन केजरीवाल उन्हें चुनावी जंग के लिए तैयार कर रहे हैं, उनमें ऊर्जा डाल रहे हैं।
हालांकि, नीतीश कुमार व हेमंत सोरेन का अपने तथाकथित विश्वासपात्रों से मुख्यमंत्री पद वापस पाने का अनुभव तल्ख रहा है, लेकिन केजरीवाल की स्थिति उनसे काफी भिन्न है। आतिशी से किसी भी प्रकार के विद्रोह की उम्मीद ही फिजूल है। वह राजनीति में अपवाद हैं, बिना किसी लालच के जनसेवा के लिए समर्पित हैं। केजरीवाल ने राजनीतिक प्रभाव भ्रष्टाचार-रोधी प्लेटफार्म की बदौलत हासिल किया है और आप की पहचान व आकर्षण का मुख्य कारण आज भी यही है। इसलिए केजरीवाल की यह घोषणा अच्छी राजनीतिक रणनीति है कि मतदाताओं से ‘ईमानदारी का सर्टिफिकेट’ मिलने पर ही वह मुख्यमंत्री ऑफिस में लौटेंगे। उनकी यह रणनीति ठोस साबित होती है या ‘पीआर स्टंट’ (जैसा कि बीजेपी का आरोप है), इस बात पर निर्भर करता है कि ब्रांड केजरीवाल कितना मजबूत व प्रासंगिक रहता है। दिल्ली के चुनाव कब होते हैं- अपने निर्धारित समय फरवरी में या महाराष्ट्र के साथ नवंबर में इस पर भी ब्रांड केजरीवाल की परीक्षा निर्भर है। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि बतौर मुख्यमंत्री आतिशी का प्रदर्शन वैâसा रहता है। अगर वह दिल्ली के स्कूलों जैसा ही सुधार दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था में ले आती हैं, जिसके लिए उनके पास समय कम अवश्य है, लेकिन इच्छाशक्ति जरूर है। इससे दिल्लीवासी शराब केस की अनदेखी करके आप पर एक बार फिर से भरोसा कर सकते हैं।
(लेखिका शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं)