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सम-सामयिक : भारतीयों के विरुद्ध अमेरिका में बढ़ती नफरत…

डॉ. अनिता राठौर

साल १९५८ में अमेरिका में लगभग १२,००० भारतीय रहते थे। अब उनकी संख्या न सिर्फ बहुत बढ़ गई है, बल्कि वे प्रभावी पदों पर भी हैं। हालांकि, वह अब भी अमेरिकी जनसंख्या का बमुश्किल १.५ प्रतिशत ही हैं, लेकिन वे सीईओ हैं, वैज्ञानिक हैं, एस्ट्रोनॉट्स हैं, राय बनाने वाले हैं, सांसद हैं और किसी भी देशज समूह की तुलना में उनकी औसत आय सबसे अधिक है। अब तो एक हिंदू महिला सेकंड लेडी भी है। श्वेत स्वदेशी भारतीयों की सफलता को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं और वह ही डोनाल्ड ट्रंप की ‘मागा’ (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) भीड़ हैं। इसलिए ट्रंप की प्रमुख समर्थक लौरा लूमर ने क्रिसमस के जश्न की शुरुआत इस ट्वीट से की- ‘भारत से तीसरी दुनिया के घुसपैठिया’। इसके बाद से भारतीयों के विरोध में यह शोर निरंतर बढ़ता ही चला जा रहा है। चूंकि ट्रंप ने राष्ट्रपति का चुनाव मुख्यत: ‘अमेरिका फर्स्ट’ व अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे विदेशियों को वापस उनके देश भेजने के वायदों/नारों के आधार पर जीता है और कहा है कि २० जनवरी २०२५ को शपथ लेते ही वह पहला काम ‘घुसपैठियों’ को बाहर का रास्ता दिखाने का करेंगे इसलिए अब मागा कट्टरपंथी एच-१बी वीजा के साथ ही ओपीटी (ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग) को भी निशाना बना रहे हैं। लूमर और उनके दोस्त सभी ‘विदेशी-दिखाई’ देने वाले लोगों को अमेरिका की सीमा से बाहर देखना चाहते हैं। अनुमान यह है कि अप्रैल २०२४ तक अमेरिका में १३.३ मिलियन लोग बिना दस्तावेज के थे और २० जनवरी के बाद इन्हें ही सामूहिक निर्वासन के लिए टारगेट किया जाएगा। पिउ रिसर्च सेंटर के २०२२ के अनुमान के अनुसार, अमेरिका में ७,२५,००० अवैध अप्रवासी भारतीय हैं और इन पर भी २० जनवरी की तलवार लटकी हुई है। अक्टूबर २०२४ में ११,००० भारतीयों को अमेरिका से वापस भारत भेजा गया था।
एलन मस्क भी झुके
बहरहाल, इस समय बात केवल बिना दस्तावेज वालों को वापस भेजने की ही नहीं है। मागा कट्टरपंथी ओपीटी प्रोग्राम को भी अपने निशाने पर लिए हुए हैं। ओपीटी की मदद से विदेशी छात्र व स्नातक, जिनमें अधिकतर भारतीय होते हैं, अमेरिका में कार्य अनुभव प्राप्त करने के लिए रुक जाते थे। कट्टरपंथी ओपीटी को एच-१बी वीजा के अग्रगामी के रूप में देख रहे हैं। वह पहले ही ट्रंप को इस बात के लिए मजबूर कर चुके हैं कि वाइट हाउस में पहुंचते ही उनका प्रशासन एच-१बी वीजा की समीक्षा व सुधार करेंगे, इस आधार पर कि उसका दुरुपयोग अमेरिकी श्रमिकों को रिप्लेस करने के लिए किया जाता है। इस संदर्भ में कट्टरपंथियों का दबाव इतना अधिक है कि एच-१बी वीजा पर एलन मस्क को भी अपना नजरिया बदलना पड़ा है। मस्क ट्रंप के लिए अनेक भूमिकाएं निभाते हैं। वे ट्रंप के सबसे महत्वपूर्ण डोनर हैं, सबसे प्रभावी सोशल मीडिया प्रमोटर हैं और मुख्य सलाहकार भी हैं।
मस्क ने गुणात्मक अप्रवासन के लिए एच-१बी वीजा का समर्थन किया था कि प्रतिभाशाली प्रोग्रामर्स और अन्य वाइट-कालर वर्कर्स को अमेरिका में आने दिया जाए। मस्क ने एच-१बी वीजा को चुंबक बताते हुए कहा था कि इससे ‘टॉप ०.१ प्रतिशत इंजीनियरिंग टैलेंट’ खिंचा चला आता है और इसकी रक्षा करने के लिए उन्होंने ‘युद्ध पर जाने’ तक की धमकी दी थी। लेकिन अब मागा कट्टरपंथियों के दबाव में उनका कहना है कि एच-१बी वीजा ‘प्रोग्राम टूटा हुआ है और इसमें बड़े सुधारों की जरूरत है’। आगे बढ़ने से पहले कुछ बातों को समझना आवश्यक है। विदेशी छात्र जो एफ१ वीजा पर अमेरिका आते हैं, वह पहले अकादमिक वर्ष के बाद ओपीटी में हिस्सा लेने और कार्य अनुभव हासिल करने के लिए अमेरिका में रुकने के योग्य हो जाते हैं। इस सिलसिले में स्टेम स्नातक तीन साल तक अमेरिका में रुक सकते हैं। मागा ‘अमेरिका फर्स्ट’ कट्टरपंथियों का कहना है कि ओपीटी का मूल उद्देश्य स्किल डेवलपमेंट के लिए शॉर्ट-टर्म वर्क परमिट देना था, लेकिन अब यह ‘अमेरिका में जॉब्स हासिल करने और दीर्घकालीन वर्क वीजा जैसे एच-१बी वीजा लेने का औज़ार बन गया है’।
खामोश भारत सरकार
स्वदेशी टेक वर्कर्स गठबंधन का कहना है, ‘एम्प्लॉयर्स ओपीटी वर्कर्स को हताश व्यक्तियों के रूप में देखते हैं, जो अपना परमिट खत्म होने से पहले एच-१बी वीजा स्पॉन्सरशिप हासिल करने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं।’ गठबंधन के अनुसार, सबसे बड़ा मेहमान कर्मचारी कार्यक्रम नए अमेरिकी कॉलेज ग्रेजुएट्स के लिए जॉब्स को खत्म कर रहा है। कंपनियां कम पैसों पर विदेशियों से अनुबंध कर लेती हैं, जिससे अमेरिकियों में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। अनेक विदेशी छात्र, विशेषकर भारत से, अमेरिका में शिक्षा के लिए आते हैं कि उन्हें कार्य अनुभव प्राप्त करने के लिए ओपीटी मिल जाएगा। अधिकतर मामलों में उन्हें ओपीटी के दौरान या उसके पूर्ण होने पर एच-१बी वीजा मिल जाता है, जिससे उन्हें अमेरिका में ९ वर्ष तक रहने का अवसर मिल जाता है। इनमें से कुछ ग्रीन कार्ड हासिल करने में भी कामयाब हो जाते हैं और आखिरकार अमेरिकी नागरिक बन जाते हैं। कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस रिपोर्ट के अनुसार, २०२३ में अमेरिका में १.५ मिलियन एफ१ व एम१ (वोकेशनल ट्रेनिंग) छात्र व नव स्नातक थे। इनमें से लगभग २३ प्रतिशत (३,४४,६८६) को ओपीटी के जरिए कार्य करने की अनुमति थी। ओपीटी पर विराम लगाने का अर्थ होगा कि विदेशी छात्रों को ग्रेजुएशन के बाद अमेरिका छोड़ना पड़ेगा, बिना कार्य अनुभव का लाभ प्राप्त किए हुए।
ज़ाहिर है ऐसा करने से अमेरिका में विदेशी छात्रों की आमद कम हो जाएगी। अमेरिका में ओपीटी कार्यक्रम १९४७ से लागू है। इससे जहां विदेशी छात्रों को लाभ हुआ है, वहीं इन छात्रों के टैलेंट से अमेरिका को भी सुपर पॉवर बनने में मदद मिली है। अगर गौर से देखा जाए तो श्वेत कट्टरपंथी केवल विरोध करने के लिए विरोध कर रहे हैं। विभिन्न श्रेणियों के तहत अमेरिका में साल में केवल ८५,००० वीजा दिए जाते हैं। एच-१बी वीजा से अमेरिका के जनसंख्या अनुपात में कोई बदलाव नहीं आने वाला है। अध्ययनों से मालूम होता है कि एच-१बी वीजा का सह-संबद्ध अमेरिका में उच्च पेटेंट फाइलिंग से है, लेकिन इसकी हदबंदी करने से कंपनियां विदेशों में अपने सहयोगी स्थापित करती हैं- भारत की जीसीसी बूम इसकी मिसाल है। लेकिन यह बात लूमर और उनके दोस्तों को कौन समझाए। वह तो सभी ‘विदेशी-दिखाई’ देने वाले चेहरों को बाहर का रास्ता दिखाना चाहते हैं, जबकि इतिहास गवाह है कि इस प्रकार की भावनाएं भयंकर रूप धारण कर लेती हैं। खासकर जब अधिकतर देशज अमेरिकी आर्थिक रूप से अच्छा न कर रहे हों। १९८० के दशक में नफरती गुट डॉटबस्टर्स ने न्यू जर्सी सिटी में छोटे से भारतीय समुदाय पर हमला किया था। ‘डॉट’ शब्द वह हिंदू महिलाओं की बिंदी के लिए प्रयोग कर रहे थे और इस हिंसा में एक भारतीय की मौत हुई थी व अनेक घायल हो गए थे। उस समय भी हिंसा का कारण भारतीयों की ‘अति मेहनत’ से अर्जित की गई संपन्नता थी। भारतीयों के विरुद्ध मागा की बढ़ती हिंसात्मक नफरत पर भारत सरकार को खामोश नहीं बैठना चाहिए।
(लेखिका शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं)

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