मुख्यपृष्ठस्तंभसम-सामयिक : बेनकाब होगा पाकिस्तान...!!

सम-सामयिक : बेनकाब होगा पाकिस्तान…!!

वीना गौतम

छटपटाहट क्यों?
बीते गुरुवार यानी १० अप्रैल २०२५ की शाम करीब ६.३० बजे जब मुंबई २६/११ हमले के साजिशकर्ता तहव्वुर राणा को लेकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए के अफसर दिल्ली पहुंचे, ठीक उसी समय पाकिस्तान की सरकार ने राणा से छुटकारा पाने की विधिवत शुरुआत की। पाक विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने बुलाई गयी एक प्रेस कॉन्प्रâेंस में कहा कि तहव्वुर राणा पाकिस्तान का नहीं कनाडा का नागरिक है और उसने पिछले दो दशकों से अपने पाकिस्तानी दस्तावेजों को रिन्यू नहीं कराया है। उसके पास कनाडा की नागरिकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह बात तकनीकी रूप से सच है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि ६४ वर्षीय तहव्वुर राणा पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है। वह पैदा कनाडा में हुआ था और यहीं पढ़ाई-लिखाई करके पाकिस्तानी सेना में डॉक्टर के तौर पर कई सालों तक काम किया है। यहीं रहते हुए उसके अंदर भारत के विरुद्ध जहर भरा था और इसी पाकिस्तान की परवरिश ने उसके अंदर आतंक की आत्मा ने प्रवेश कराया था। इस पृष्ठभूमि की अहमियत पाकिस्तान भी जानता है इसलिए उसे पता है कि जांच एजेंसियों के कब्जे में रहने के दौरान राणा पूछताछ में जैसे-जैसे २६/११ की परतें खोलेगा, वैसे-वैसे पाकिस्तान बेनकाब होगा।
अमेरिकी गल्फस्ट्रीम जी ५५० विमान से दिल्ली के पालम टेक्निकल एयरपोर्ट पर लैंड होनेवाला तहव्वुर राणा, अमेरिकी कोर्ट के दस्तावेजों के मुताबिक कनाडा में रहते हुए न केवल पाकिस्तान के संपर्क में रहा है, बल्कि जल्दी-जल्दी पाकिस्तान जाता रहा है और इस दौरान उसके पाकिस्तानी सेना से भी संबंध बने रहे हैं इसलिए भारत पहुंचने के बाद राणा की जो पहली तस्वीर जारी हुई है, जिसमें पीछे से दिखाया गया है कि एनआईए के अफसर उसे दबोचे हुए हैं, पाकिस्तान को यह डराती है। राणा को दिल्ली के तिहाड़ जेल के हाई सिक्योरिटी वार्ड में रखा गया है। आतंकी राणा से एनआईए के अधिकारियों द्वारा पूछताछ शुरू हो चुकी है। यह पूछताछ राष्ट्रीय जांच एजेंसी के उच्च अधिकारी कर रहे हैं। यह पूरी पूछताछ इंटेरोगेशन रूम में सीसीटीवी के सामने होगी, जिसकी पूरी रिकॉर्डिंग की जाएगी। यही नहीं राणा की कस्टडी के दौरान रोजाना पूछताछ की एक डायरी भी तैयार होगी, जो न सिर्फ इस एक मामले में बल्कि पाकिस्तान की और भी अनगिनत करतूतों का काला चिट्ठा खोलेगी इसलिए भी पाकिस्तान बहुत छटपटा रहा है। दरअसल, गुजरे ७ मार्च २०२५ को ही जब अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने, तहव्वुर राणा की भारत भेजे जाने से संबंधित उस अर्जी को भी ठुकरा दिया, जिसमें राणा ने अमेरिकी कोर्ट से कहा था, ‘मैं पाकिस्तानी मुस्लिम हूं इसलिए अगर मुझे भारत भेजा गया तो मैं मार दिया जाऊंगा।’ तभी यह स्पष्ट हो गया था कि न सिर्फ राणा, बल्कि पाकिस्तान भी तहव्वुर राणा को भारत भेजे जाने से क्यों थर-थर कांप रहा है?
मास्टरमाइंड का साथी
वास्तव में २००८ में भारत के मुंबई शहर में २६ नवंबर को जो भयानक आतंकी हमला हुआ था, जिसमें १६६ मासूम लोग मारे गए थे और ३०० से ज्यादा लोग घायल हुए थे। उस हमले के मास्टरमाइंड में से एक तहव्वुर हुसैन राणा था। तहव्वुर राणा को साल २०१३ में डेविड कोलमैन हेडली के साथ मुंबई हमले को अंजाम देने और डेनमार्क में हमले की योजना बनाने के आरोपों का दोषी पाया गया था इसलिए अमेरिकी अदालत से इसे १४ साल जेल की सजा सुनाई थी। राणा पाकिस्तान में सक्रिय चरमपंथी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा रहा है। मुंबई में २६/११ हमले को अंजाम देने के लिए डेविड कोलमैन हेडली और तहव्वुर राणा ने कई बार हमले के पहले और उसके बाद भी मुंबई की यात्रा की थी, ताकि किसी को इन पर शक न हो। चूंकि मुंबई हमले में ६ अमेरिकी नागरिक भी मारे गए थे इसलिए अमेरिका की जांच एजेंसी एफबीआई बहुत बारीकी से हमलावरों का सूत्र खोज रही थी, उन्हीं दिनों राणा और हेडली अक्टूबर २००९ में शिकागो एयरपोर्ट पर धरे गए। तब ये दोनों एक चरमपंथी हमला करने के लिए डेनमार्क जा रहे थे। इनकी खतरनाक योजना जिलैंड्स-पोस्टेन अखबार के दफ्तर पर हमला करने की थी, क्योंकि इस अखबार ने पैंगबर मोहम्मद के विवादास्पद कार्टून प्रकाशित किए थे।
तब तक किसी को नहीं पता था कि ये २६/११ के भी गुनहगार हैं, लेकिन गिरफ्तारी के बाद हुई पूछताछ से यह खुलासा हुआ और अलग-अलग की गई पूछताछ के दौरान तहव्वुर राणा ने माना कि पाकिस्तान में लगनेवाले लश्कर के प्रशिक्षण शिविरों में वह और हेडली भाग लिया करते थे। पहली बार तभी यह खुलासा भी हुआ था कि २००६ की शुरुआती गर्मियों में हेडली और लश्कर के दो सदस्यों ने उनकी गतिविधियों के कवर के रूप में मुंबई में एक इमीग्रेशन ऑफिस खोलने पर चर्चा की थी। वास्तव में मुंबई पर हमले का मिशन लश्कर-ए-तैयबा ने डेविड कोलमैन हेडली को सौंपा था। इसमें राणा ने अपनी इमीग्रेशन सर्विसेज की मदद से हेडली को पांच साल का बिजनेस वीजा दिलवाने में मदद की थी, जबकि राणा जानता था कि हेडली के वीजा पाने का मकसद क्या है?
हेडली की बारी कब?
हेडली और राणा बचपन के दोस्त थे, दोनों बचपन में एक साथ ही स्कूल में पांच सालों तक पढ़ाई की थी, इसके बाद दोनों अलग हो गए और सालों बाद २००६ में शिकागो में मिले। लेकिन जब भारत ने अमेरिका से राणा को उसे सौंपने का अनुरोध किया तो राणा ने अमेरिका कोर्ट में उसे प्रत्यर्पित न किए जाने की गुजारिश की, लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। राणा १३ नवंबर २०२४ को निचली अदालत के प्रत्यर्पण संबंधी पैâसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया, मगर वहां भी २१ जनवरी २०२५ को याचिका खारिज कर दी गई, जिसके बाद यह तय हो गया कि अब राणा को भारत हर हाल में भेजा जाएगा। १३ फरवरी २०२५ को अमेरिका राष्ट्रपति ट्रंप ने भी एलान कर दिया कि राणा को भारत भेजा जाएगा, क्योंकि ६ फरवरी २०२५ को सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा भारत प्रत्यर्पण पर रोक लगानेवाली याचिका को भी खारिज कर दिया था, लेकिन एक बार फिर से पुनर्विचार याचिका लगाये जाने से लग रहा था कि मामला फिर अटक सकता है, लेकिन आखिरकार ७ मार्च २०२५ को अमेरिका सुप्रीम कोर्ट ने इस पुनर्विचार याचिका को रद्द कर दिया। इस तरह २८ अगस्त २०१८ को एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने राणा के खिलाफ जो गिरफ्तारी वॉरंट जारी किया था और ४ दिसंबर २०१९ को भारत ने पहली बार राणा के प्रत्यर्पण के लिए अमेरिका को जो डिप्लोमेटिक नोट दिया था, उसका वास्तविक नतीजा १० अप्रैल २०२५ को मिला जब तहव्वुर राणा को भारत ले आया गया। सवाल है आखिर तहव्वुर राणा को भारत प्रत्यर्पित किया जाना, हिंदुस्थान की कितनी बड़ी कूटनीतिक सफलता है? राणा के प्रत्यर्पण से हमें २६/११ हमलों की साजिश और उसके व्यापक नेटवर्क के बारे में गहराई से पता चलेगा। साथ ही भारत के विरुद्ध पाकिस्तान के जहरीले दिमाग में किस तरह की साजिशें चलती रहती हैं, इसका भी पता चलेगा। निश्चित रूप से यह जानकारी भविष्य में हमें कई तरह की आतंकी वारदातों को रोकने में सहायक होगी और भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को अंतर्राष्ट्रीय आतंकियों के कार्य व्यवहार की शैली का भी पता चलेगा।
वास्तव में भारत और अमरीका के बीच १९९७ में प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर हुए थे, बावजूद इसके प्रत्यर्पण मामलों की गति बहुत धीमी रही है। २००२ से २०१८ के बीच अमेरिका ने भारत के केवल ११ प्रत्यर्पण अनुरोधों को स्वीकार किया था। हालांकि, पिछले पांच वर्षों यानी २०१९ से दिसंबर २०२४ के बीच भारत ने विभिन्न देशों को १७८ अनुरोध भेजे हैं, लेकिन अभी तक १३ व्यक्तियों को ही विदेशों द्वारा भारत वापस भेजा गया है। गौरतलब है कि यहां एक अकेला तहव्वुर राणा ही नहीं था, बल्कि ६५ अन्य भगोड़े भारतीय अपराधी भी मौजूदा समय में अमेरिका में शरण लिए हुए हैं, इनमें डेविड कोलमैन हेडली भी एक है।

(लेखिका मीडिया एवं शोध संस्थान इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में कार्यकारी संपादक हैं)

अन्य समाचार