डॉ. अनिता राठौर
पिछले तीन माह की तनावपूर्ण शांति के बाद सितंबर के आरंभ होते ही मणिपुर में एक बार फिर देशज हिंसा की लहर शुरू हो गई है। १ सितंबर २०२४ को संदिग्ध कूकी मिलिटेंट्स ने इंफाल वेस्ट के गांव कौत्रुक में गोलियां चलाईं और ड्रोन की मदद से ग्रेनेड गिराए, जिसमें १ व्यक्ति की मौत हो गई और १८ अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। २ सितंबर को फिर ड्रोंस का प्रयोग किया गया इंफाल ईस्ट के सिनाम में इंडिया रिजर्व बटालियन (आईआरबी) को निशाना बनाने के लिए। इस हमले में ३ व्यक्ति घायल हुए व ३ असाल्ट राइफलें चुराई गर्इं। ६ सितंबर को मिलिटेंट्स ने दो जगहों पर रॉकेट दागे, जिनमें से एक रॉकेट राज्य के पहले मुख्यमंत्री के घर पर दागा गया। ७ सितंबर २०२४ को मिलिटेंट्स ने जिरिबाम ज़िले में एक गांव पर हमला किया, जिससे उनके और ग्रामीण वालंटियर्स व राज्य पुलिस के बीच जबरदस्त गोलीबारी हुई और ६ व्यक्तियों की मौत हो गई।
इस पृष्ठभूमि में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों की आपात बैठक बुलाई ताकि राज्य में निरंतर बिगड़ती कानून व्यवस्था पर विचार किया जा सके। मुख्यमंत्री ने बैठक के बाद केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को सुरक्षित रखने के लिए उचित कदम उठाए। सिंह ने केंद्र से यह भी आग्रह किया कि वह कूकी, जो गुटों की अलग प्रशासन की मांग कर रहा है, उसे स्वीकार न करे। मुख्यमंत्री ने इस संदर्भ में एक ज्ञापन राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को दिया है। ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि केंद्र को मणिपुर में शांति सुनिश्चित करनी चाहिए और राज्य की चुनी हुई सरकार को पर्याप्त पॉवर देनी चाहिए। ज्ञापन में एक अन्य महत्वपूर्ण मांग यह की गई है कि केंद्र ‘सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस’ समझौते को निरस्त कर दे। यह समझौता २००८ में कूकी समुदाय के दो गुटों, कूकी नेशनल आर्गेनाइजेशन (केएनओ) व यूनाइटेड पीपल्स प्रâंट (यूपीएफ) और केंद्र व मणिपुर सरकारों के बीच हुआ था, जिसकी अवधि में समय-समय पर विस्तार किया जाता रहा है।
मणिपुर में ३ मई २०२३ को जो हिंसा आरंभ हुई थी, वह अभी तक जारी है। इसे रोकने के लिए अलग- अलग सुझाव दिए जा रहे हैं, जैसे पहले मिलिटेंट्स से हथियार लो, राज्य को सेना के सुपुर्द कर दो, कूकी-जोमी को अलग राज्य दे दो, आदि-आदि। लेकिन मणिपुर की वर्तमान स्थिति पहले शांति की मांग कर रही है। गौरतलब है कि गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने के लिए मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वह मैतेई समुदाय की मांग की सिफारिश केंद्र को भेजे। इससे राज्य के आदिवासियों को लगने लगा कि उन्हें जो आरक्षण लाभ मिल रहे हैं, उनमें बहुत कमी आ जाएगी। इसलिए ३ मई २०२३ को आल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने आदिवासी एकता मार्च का आयोजन किया, जिसके बाद राज्य में हिंसा अचानक भड़क उठी, जो अभी तक नहीं रुकी है। जबकि अब तक सैकड़ों जानें जा चुकी हैं, हजारों घायल हैं, लाखों लोग सुरक्षा बलों के वैंâपों में शरण लिए हुए हैं और हजारों घरों व अन्य प्रतिष्ठानों को जलाकर राख कर दिया गया है।
मैतेई समुदाय मुख्यत: इंफाल घाटी में रहता है, जो कि राज्य के कुल भूमि क्षेत्र का मात्र दसवां हिस्सा है। अधिकतर आदिवासी समुदाय पहाड़ों में रहते हैं। इस तरह यह घाटी बनाम पहाड़ी टकराव हो जाता है। उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर असम, नागालैंड, मिजोरम व म्यांमार के बीच में है। मणिपुर का अधिकांश हिस्सा पहाड़ों से घिरा हुआ है और इसके बीच में तश्तरीनुमा उपजाऊ घाटी है। इसके १० पहाड़ी जिलों में विभिन्न आदिवासी कबीले रहते हैं। राज्य की २८ लाख आबादी (२०११ की जनगणना) में से लगभग ४० प्रतिशत पहाड़ों में रहती है। राज्य का बहुसंख्यक मैतेई समुदाय, जिसमें मैतेई पंगल (मुस्लिम) भी शामिल हैं, छोटी लेकिन घनी आबादी वाली घाटी में रहता है, जिसे मैतेई राजाओं के समय से ही सत्ता का केंद्र समझा जाता रहा है। राज्य में ३४ मान्यता प्राप्त अनुसूचित जनजातियां हैं, जो कि मुख्यत: नागा व कूकी-चिन या कूकी आदिवासी गुटों के अधीन हैं और इनमें मिजो भी शामिल हैं। मणिपुर में २०१६ तक ९ जिले थे, जिनमें ७ अन्य जिले और बना दिए गए। आदिवासी समूहों का आरोप है नए जिले उनके पूर्वजों की भूमि पर कब्जा किए हुए हैं। राज्य सरकार इस आरोप का खंडन करती है।
बहरहाल, मणिपुर में हिंसा की नई लहर से एक नई सुरक्षा की चिंता उत्पन्न हो गई है। ताजे हमलों में देखने में आया है कि मिलिटेंट्स ड्रोंस व रॉकेट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। ड्रोंस का इस्तेमाल सुरक्षाबलों पर बम गिराने के लिए भी किया जा रहा है। यह अति चिंताजनक है। इस पर तुरंत नियंत्रण करने की आवश्यकता है। ड्रोन हमलों को रोकने व उन्हें काउंटर करने के तरीके तलाश करने के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया गया है। मणिपुर इस समय टिंडरबॉक्स बनकर रह गया है। पिछले १५ माह से चल रहा देशज टकराव रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। ड्रोंस व रॉकेट्स ने इस टकराव को खतरनाक नया डायमेंशन दे दिया है, जिसे बहुत होशियारी से काउंटर किया जाना चाहिए। दुनियाभर के टकराव क्षेत्रों में ड्रोंस साझा फीचर बन गए हैं। लाल सागर में जहाजों को परेशान करने के लिए यमन के हूती ने ड्रोंस का प्रयोग किया है। साल २०२० में अजरबैजान व आर्मेनिया के बीच दूसरे नागोरनो-काराबाख युद्ध में अजेरी बलों ने जमकर ड्रोंस का इस्तेमाल किया था। रूसी घुसपैठ के विरुद्ध यूक्रेन ने भी ड्रोंस का प्रभावी प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त, पिछले कुछ वर्षों से पाकिस्तानी ड्रोंस नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार हथियार व ड्रग्स गिराते आ रहे हैं, जो कि भारतीय सुरक्षा एजेंसीज के लिए बड़ा सिरदर्द है। इस सबसे यही मालूम होता है कि ड्रोंस से अब छुटकारा आसान नहीं है।
दरअसल, ड्रोंस को यह बात अधिक खतरनाक बना देती है कि इनका निर्माण सस्ते में किया जा सकता है और इन्हें खास काम के लिए भी बनाया जा सकता है। इसके डीआईवाई (डू इट योरसेल्फ) गुण का अर्थ यह है कि जिसे भी बुनियादी तकनीक की समझ है वह ड्रोंस बना सकता है। ध्यान रहे की ड्रोंस के पार्ट्स भी बहुत सस्ते में उपलब्ध हैं, विशेषकर चीन से। भारत की रक्षा व्यवस्था इसे काउंटर करने की कोशिश कर रही है। लेकिन ड्रोंस को काउंटर करने की मुख्य सुरक्षा चुनौती यह है कि शौकिया ड्रोंस को भी घातक कार्य के लिए मोडीफाई किया जा सकता है। मणिपुर के मामले में शक यह है कि जो ड्रोंस हमले के लिए प्रयोग किए गए, उनमें वह बम फिट किए गए थे जो राज्य के शस्त्रगार से लूटे गए थे। लेकिन इसके आधार पर भारत सरकार को अपनी २०२१ की उदार ड्रोन नीति को बदलना नहीं चाहिए। ड्रोन हमलों को नियंत्रित करने के तरीके अपनाने चाहिए। ड्रोन उद्योग का आधार नई चीजों का आविष्कार करने में है। खेल में आगे रहने के लिए जरूरी है कि सुरक्षा की दृष्टि से उचित एंटी-ड्रोन सिस्टम्स तैयार किए जाएं। साथ ही यह भी जरूरी है कि ड्रोंस के निजी प्रयोग व विकास को प्रोत्साहित किया जाए। ड्रोंस भविष्य हैं- नहाने के पानी के साथ बच्चे को बाहर फेंकना अक्लमंदी नहीं है।
यह अच्छा है कि असम राइफल्स ने मणिपुर में एंटी-ड्रोन सिस्टम्स तैनात किए हैं और सीआरपीएफ ने भी एक एंटी-ड्रोन सिस्टम सुरक्षा बलों को दिया है, ताकि राज्य में देशज हिंसा को रोका जा सके। इसके अतिरिक्त कुछ और एंटी-ड्रोन गन्स मणिपुर में भेजे जाने की संभावना है। सुरक्षा उपायों के साथ यह भी जरूरी है कि मणिपुर में स्थायी शांति स्थापित करने के तरीके भी तलाश किए जाएं।
(लेखिका शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं)