मुख्यपृष्ठस्तंभसम-सामयिक : इनकी भौकाल की कीमत हम क्यों चुकाएं?

सम-सामयिक : इनकी भौकाल की कीमत हम क्यों चुकाएं?

डॉ. अनिता राठौर

बिहार में पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र से सांसद पप्पू यादव अपने अब तक के करीब ३६ वर्षीय राजनीतिक जीवन में ६ बार सांसद और १ बार विधायक रह चुके हैं। उनका शुमार बिहार के बाहुबली नेताओं में होता है। १४ जून १९९८ को पूर्णिया जिले के कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के प्रभावशाली नेता अजीत सरकार की हत्या में उन्हें पटना की एक अदालत द्वारा साल २००८ में दोषी करार दिया गया था, जिसके लिए अदालत ने उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई थी, लेकिन साल २०१३ में पटना हाई कोर्ट ने उन्हें यह कहते हुए बरी कर दिया कि उनके विरुद्ध ठोस सबूतों की कमी है, फिर भी करीब नौ साल पप्पू यादव को जेल में बिताने पड़े। पप्पू यादव भारतीय राजनीति के उस विरोधाभासी चरित्र के प्रतिनिधि हैं, जिसे रोबिनहुड करेक्टर कहते हैं। मतलब यह कि जहां उन्हें राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बाहुबली और आपराधिक पृष्ठभूमि वाला नेता मानते हैं, वहीं आम गरीब लोग उन्हें मसीहा मानते हैं, क्योंकि वे उनकी हर बीमारी पर साथ खड़े रहनेवाले राजनेता हैं। कोरोना महामारी के दौरान तो खास तौर पर गरीबों को लंबे समय तक लंगर खिलवाकर और सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए उन्हें भर्ती कराकर पप्पू यादव ने अपनी इस छवि को और ज्यादा लोकप्रिय बनाया है।
लेकिन गरीबों के मसीहाभर बनने से तो राजनीति में काम चलता नहीं, इसलिए पप्पू यादव बीच-बीच में अपनी ऐसी हनक भी दिखाते और दर्शाते रहते हैं कि लोग उन्हें सिर्फ बाहुबली ही न कहें, बल्कि मानें भी। यह बात अलग है कि ऐसा कुछ कहने पर वह घुटनों तक हाथ जोड़कर बहुअर्थी मुस्कान बिखेरते हुए कहेंगे, ‘मैं तो आम लोगों का सेवक हूं’। खैर, अपनी दूसरी छवि को भी मजबूत बनाए रखने के लिए उन्होंने गुजरे ३० अक्टूबर को महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद सोशल मीडिया में गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई को दो टके का अपराधी बताया और कहा कि अगर उन्हें कानून इजाजत दे दे तो वह २४ घंटे के भीतर बिश्नोई जैसे टुटपुंजिए अपराधी के पूरे नेटवर्क को खत्म कर देंगे, लेकिन जब उनके इस ट्वीट के बाद लॉरेंस बिश्नोई के गुर्गों ने उन्हें फोन करना शुरू किया, तो पहले तो पप्पू यादव के आदमी ने सार्वजनिक रूप से गिड़गिड़ाते हुए कहा कि पप्पू यादव राजनेता हैं, उन्हें ऐसा कहना ही पड़ता है। मतलब यह कि यह एक राजनेता वाला बयान था, इसे गंभीरता से न लिया जाए।
लेकिन बिश्नोई गैंग के गुर्गे, इस तरह की सफाई से नहीं पसीजे, उन्होंने जरा भी अपने तेवर ढीले नहीं किए, नतीजा यह है कि अब पप्पू यादव इस धमकी का पत्र लगाकर गृह मंत्रालय से जेड प्लस सिक्योरिटी की गुहार लगा रहे हैं। गौरतलब है कि उन्हें पहले से ही वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है, जिसमें हर समय ११ सुरक्षाकर्मी उनके साथ होते हैं, लेकिन पप्पू यादव को जब से बिश्नोई गैंग के गुर्गों ने हड़काया है, वे तब से अपनी सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ाकर जेड प्लस श्रेणी की करवाना चाहते हैं, जिसमें एनएसजी और अन्य सुरक्षाबलों के ३६ सुरक्षाकर्मी हमेशा सुरक्षा पाने वाले व्यक्ति के साथ मौजूद रहते हैं। इस सुरक्षा व्यवस्था में हर साल १५ करोड़ से ज्यादा का खर्चा तो सिर्फ सुरक्षाकर्मियों की दी जानेवाली तनख्वाह में आता है, इसके अलावा इस पूरी व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए भी कम से कम ४-५ करोड़ रुपए और खर्च होते हैं। कहने का मतलब यह है कि अब पप्पू यादव चाहते हैं कि करदाताओं के खून-पसीने की कमाई से सरकार जो कर वसूलती है, उस कर का इस्तेमाल बाहुबली राजनेताओं की सुरक्षा पर हो।
सवाल है क्या राजनेताओं को सरकारी खजाने से उन्हें निजी सुरक्षा का खर्च मुहैया कराना चाहिए? जब राजनेता किसी को भी अनाप-शनाप बोलते हुए नहीं डरते, तो फिर ऐसे लोगों की धमकियों से क्यों डर जाते हैं? अगर उन्हें ऐसी धमकियों से डरना ही है तो फिर क्यों अपराधियों को ललकारने की हरकत करते हैं? वैसे यह अकेले पप्पू यादव द्वारा अपनी सुरक्षा को बढ़ाए जाने की मांग के बाद आम प्रतिक्रिया के चलते उपजा सवाल नहीं है, बल्कि लंबे समय से यह लगातार सवाल बना हुआ है कि यदि कोई राजनेता, जो खुद कई तरह के अपराधों में संलिप्त पाया जाता है (भले वे खुद इसे स्वीकार न करें) तो फिर ऐसे व्यक्ति को सार्वजनिक धन से क्यों सुरक्षा मिलनी चाहिए? पप्पू यादव का पिछले पौने चार दशकों का राजनीतिक करियर लगातार बाहुबली राजनेता के रूप में जाना गया है और हम सब भले समझें या न समझने का नाटक करें, लेकिन इस देश में बाहुबली राजनेता का अर्थ यही है कि जिसकी पहुंच आपराधिक दुनिया में भी ताकतवर शख्स के रूप में है। ऐसे व्यक्ति इस तरह की ताकत अपने संस्कारों और किए गए सकारात्मक कार्यों से नहीं हासिल करते, बल्कि ऐसी छवि राजनेताओं की बनती ही तब है, जब वे राजनीति की पारंपरिक दुनिया में इस हद तक ऊपर उठ जाएं कि लोग उन्हें सिर्फ लोकप्रिय ही न मानें, बल्कि उनके पास आते हुए डरें।
भले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव राजधानी दिल्ली में बिहार से आए गरीब लोगों की अस्पतालों में भर्ती कराने में मदद करते हों, भले वे आपदा के समय बड़े-बड़े लंगर लगवाते रहे हों और चाहे भले वे कई तरह के लोगों को मदद देकर यह छवि बनाने की कोशिश करते रहे हों कि वो दयालु और परोपकारी राजनेता हैं, लेकिन इस हकीकत से हर कोई वाकिफ है कि भारत जैसे देश में ईमानदार और संवेदनशील व्यक्ति चाहकर भी किसी की मदद नहीं कर सकता। ऐसा ही व्यक्ति बढ़-चढ़कर लोगों की मदद कर सकता है, जिसके पास एक नियमित कमाई हो और उस कमाई को हासिल करने के लिए उन्हें आम लोगों के बराबर परिश्रम न करना पड़े। पप्पू यादव जिस तरह से अपनी राजनीतिक जिंदगी में गरीबों के मसीहा के नाम पर अपनी ताकत का भौकाल खड़ा किया है, उस भौकाल से देश को कोई फायदा नहीं है और न ही इससे क्षेत्र के मतदाताओं का जिसका वो प्रतिनिधित्व करते हैं। वास्तव में उनके इस तरह के भौकाल से वह खुद ही अपनी ताकतवर छवि गढ़ते हैं, तो फिर उन्हें क्यों सरकार करदाताओं के पैसे पर भारी-भरकम सुरक्षा मुहैया कराए, जिसका वे उपयोग अपने को और ताकतवर दिखाने में करें?
एक जेड प्लस सुरक्षा पानेवाले व्यक्ति के साथ हमेशा कई दर्जन सुरक्षा गार्ड तो रहते ही हैं। इन सुरक्षा गार्डों की नौकरी और उनकी अन्य जरूरतों पर हर महीना जो भारी-भरकम रकम खर्च होती है, वह रकम तो आम लोगों की गाढ़ी कमाई से लिए गए कर की होती है इसलिए भला आम लोगों के दम पर ऐसे बाहुबली नेताओं को क्यों पाला जाना चाहिए? लब्बोलुआब यह कि सरकार को इस मामले में कड़े और स्पष्ट कानून बनाने चाहिए कि सिर्फ देश की सबसे महत्वपूर्ण सेवा कर रहे लोगों को ही उस तरह की सुरक्षा मुहैया कराई जानी चाहिए।
(लेखिका शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं)

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