मुख्यपृष्ठस्तंभसम-सामयिक : तानाशाही पर हावी होगा २८ का `प्रेशर'?

सम-सामयिक : तानाशाही पर हावी होगा २८ का `प्रेशर’?

कविता श्रीवास्तव

आम चुनावों के ताजा नतीजों में हमने देखा कि तानाशाही और मनमानी की राजनीति को आम जनता ने करारा झटका दिया है। एक दशक के बाद ही सही, अब जाकर तानाशाही किस्म के शासन पर अंकुश लगाने का रास्ता प्रशस्त हुआ है। जनता ने अपने वोट की ताकत से यह आवश्यक काम कर दिया है। अब केंद्र में गठबंधन की सरकार होगी। उस पर `प्रेशर पॉलिटिक्स’ का नजारा देखने को मिलेगा। भारतीय जनता पार्टी को देश ने स्पष्ट बहुमत नहीं दिया है। उसे कुल २४० सीटें मिली हैं, जबकि लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा २७२ है। इसे पाने के लिए अन्य दलों पर निर्भर रहना नरेंद्र मोदी की मजबूरी बन गई है। सरकार बनाने और उसे बचाए रखने के लिए उन दलों का `प्रेशर’ भाजपा पर निश्चित ही बना रहेगा। ये `प्रेशर’ बनाने वालों का संख्याबल भी कोई बहुत ज्यादा नहीं है।
एनडीए में भाजपा के बाद चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) और नीतिश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ही सबसे बड़े घटक दल हैं। इनके पास क्रमश: १६ और १२ सांसद हैं। ये दोनों ही अपने कुल २८ सांसद लेकर भाजपा के साथ बने रहने के लिए जमकर सौदेबाजी करेंगे, यह तय है। यही वजह है कि लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद से ही सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी उतनी चर्चा में नहीं है, जितनी चर्चा बिहार के पलटूराम यानी नीतिश कुमार और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की हो रही है। चंद्रबाबू नायडू और उनकी तेलगू देशम पार्टी लंबे समय से राजनीति के हाशिए पर चली गई थी। वैसे हाल के चुनाव में चंद्रबाबू नायडू को राजनीति का पुनर्जीवन प्राप्त हुआ है। वे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। दूसरी ओर देश ने देखा था कि बिहार में भाजपा के साथ सत्ता में रहकर नीतिश कुमार ने उसे अचानक तिलांजलि दे दी थी, फिर उन्होंने तेजस्वी यादव के साथ सरकार चलाई। कुछ महीने पहले उन्होंने फिर से पलटी मारी और वे फिर भाजपा के साथ हो गए। परिणाम यह हुआ कि उन्हें बिहार में १२ लोकसभा सीटों पर विजय मिली है। कुल २८ सांसद इस समय भारतीय जनता पार्टी के लिए संकट मोचन की भूमिका में खड़े हुए हैं। यही २८ लोग अब भाजपा, नरेंद्र मोदी, अमित शाह के लिए सिरदर्द बने रहेंगे। उन पर अपना लगातार प्रेशर बनाए रखेंगे। चर्चा तो अभी से शुरू है कि सरकार बनने पर दोनों ही नेताओं ने अपने-अपने राज्यों को विशेष दर्जा देने की शर्त रख दी है। दूसरी ओर लोकसभा अध्यक्ष और विभिन्न महत्वपूर्ण केंद्रीय मंत्री पद इन दोनों ने ही मांगे हैं। एनडीए के अन्य घटक दल भी अपने लिए महत्वपूर्ण मंत्रालयों की मांग कर सकते हैं। बहुमत को बनाए रखने के लिए इन दलों को साथ लेकर चलना भारतीय जनता पार्टी की मजबूरी हो गई है। उधर इंडिया गठबंधन की `वेट एंड वॉच’ पॉलिसी भी एनडीए के लिए टेंशन बनी हुई है। इंडिया गठबंधन सरकार बनाने का दावा फिलहाल पेश नहीं करेगा। वह इंतजार करेगा। आगामी दिनों में कहीं पलटूराम फिर पलट न जाएं, इसके लिए भारतीय जनता पार्टी को सतत ध्यान रखना पड़ेगा। चंद्रबाबू नायडू भी राजनीति में धोखा खा चुके हैं इसलिए उन्हें संभाले रखना भी बड़ी चुनौती होगी। विपक्षी दलों की बढ़ी ताकत भी भाजपा के लिए चुनौती सिद्ध होगी।
विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस, कूटनीति के माहिर समझे जाने वाले सबसे अनुभवी शरद पवार, बंगाल की शेरनी कही जाने वाली ममता बनर्जी, उत्तर प्रदेश के प्रभावी युवा अखिलेश यादव, बिहार के तेजतर्रार तेजस्वी यादव आदि के अलावा महाराष्ट्र में भाजपा को उसकी जगह दिखाने वाली शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), हरियाणा व पंजाब में भाजपा को रोकने वाली `आप’, दक्षिण में भाजपा को घुसने नहीं देने वाली डीएमके, केरल के वामदल व अन्य ढेर सारी अन्य पार्टियों की एकजुटता मजबूत विपक्ष के रूप में सरकार पर प्रेशर बनाए रखेंगी, इसमें दो राय नहीं है। महंगाई, बेरोजगारी, किसानों के मुद्दों आदि को सरकार को सुनना होगा। सब कुछ ठीक रहा तो अगला लोकसभा चुनाव २०२९ में होगा। तब तक नीतिश और चंद्रबाबू के २८ सांसदों का दबाव (प्रेशर) केंद्र पर बना रहेगा या नहीं, यह तो समय ही बताएगा।

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