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परेल स्टेशन के पास ७८ पेड़ों की कटाई पर विवाद गहराया! …पर्यावरण संकट पर मुंबईकरों की चिंता बढ़ी

बिना सार्वजनिक सुनवाई के आरा चलाने की तैयारी
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई के परेल रेलवे स्टेशन के पास स्थित ७८ पुराने पेड़ों को काटे जाने की योजना पर विवाद खड़ा हो गया है। सेंट्रल रेलवे ने यह कदम छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) से कुर्ला के बीच पांचवी और छठी रेलवे लाइन निर्माण के लिए उठाया है। यह लाइन टाटा मिल कंपाउंड से अधिग्रहित भूमि पर बनाई जानी है।
हालांकि, पर्यावरण कार्यकर्ता और स्थानीय निवासी इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं। वॉचडॉग फाउंडेशन के ट्रस्टी निकोलस अल्मेडा और एडवोकेट गॉडप्रâेड पिमेंटा ने इस मामले में गंभीर सवाल उठाए हैं। उनके अनुसार, इन पेड़ों की आयु ४५ साल से अधिक है और इन्हें काटने से मुंबई की पहले से ही संकटग्रस्त हरित आवरण और वायु गुणवत्ता पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
पारदर्शिता की कमी पर सवाल
स्थानीय निवासियों का कहना है कि बीएमसी ट्रा ऑथॉरिटी द्वारा जारी नोटिस ठीक से प्रदर्शित नहीं किए गए हैं। नोटिस पेड़ों के पीछे लगाए गए, जिससे आम जनता इन्हें देख ही नहीं पाई। नोटिस पर तारीख ४ दिसंबर, २०२४ दर्ज है, लेकिन बीएमसी ने इन्हें २० दिसंबर को जारी किया। इससे नागरिकों को ३० दिनों की आपत्ति अवधि का उचित समय नहीं मिला।
स्थानांतरण की योजना अपर्याप्त
विरोध का बड़ा कारण यह भी है कि ७८ पेड़ों में से सिर्फ २ पेड़ों को स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है। पर्यावरणविदों का कहना है कि आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर अधिक पेड़ों को बचाया जा सकता है।
विकल्पों पर विचार करने की मांग
वॉचडॉग फाउंडेशन ने रेलवे और बीएमसी से अपील की है कि पेड़ों की कटाई रोककर सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया शुरू की जाए। उन्होंने निर्माण कार्य के वैकल्पिक मार्गों और तरीकों पर विचार करने की मांग की है, ताकि इंप्रâास्ट्रक्चर और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाया जा सके। मुंबई में बढ़ते प्रदूषण और हरित आवरण के घटते स्तर के बीच यह मुद्दा गंभीर चिंता का विषय बन गया है। क्या विकास परियोजनाओं में पर्यावरण की अनदेखी उचित है? यह सवाल न केवल स्थानीय प्रशासन, बल्कि हर मुंबईकर से जुड़ा है।

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