मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम से देश में 2014 और उत्तर प्रदेश में 2017 से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। व्यवस्था परिवर्तन के लिए सत्ता में आने वाले नेता नरेंद्र मोदी हों या योगी आदित्यनाथ ये सत्ता संस्थान को सुधारने की जगह पार्टी के कार्यकर्ताओं को सुधारने में जोर लगाने लगे। सत्ता में बैठ कर सब कुछ एक जगह से ठीक करने की सोच ने विकेंद्रीकरण के लोकतांत्रिक महत्व को रौंद डाला। सत्ता के प्रथम अंग नौकरशाह शक्तिशाली होते गए और लोकतंत्र की दुहाई देकर पार्टी को सत्ता में लाने वाला कार्यकर्ता कथित अनुशासन के चक्रव्यूह में फंस कर दिन-हीन परिवेश में ढलने को मजबूर हो गया। जब सारे निर्णय कुछ चंद हाथों में सिमट गए, तब राख बन चुके कार्यकर्ताओं में चिंगारी फूटी, तो वे लगातार ज्वालामुखी बनने की ओर अग्रसर हो गए। लोकसभा 2024 से लेकर उपचुनावों तक भाजपा हारने लगी, तब भी तानाशाही की ठसक घटने की जगह अहंकारी गुब्बारा और फूल रहा है। परिणामस्वरूप जग जाहिर कार्यकर्ता, जिसके दम पर गुब्बारा फूला वही उसे फोड़ेने की जिम्मेदारी उठा लिया। केंद्र में बैठे नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश में सत्तासीन योगी आदित्यनाथ पर कभी भ्रष्टाचार का आरोप तो नहीं लगा, लेकिन मोदी पर गुजराती मोह और योगी पर जाति मोह के आरोप बेधड़क लगे। यूपी का कार्यकर्ता अब संगठन और सरकार में बदलाव के नीचे किसी और कीमत पर तैयार नहीं है। इसलिए भाजपा नेतृत्व का हाथ-पांव फूल गया है। समय रहते भाजपा नेतृत्व को इसका समाधान नहीं करेगी और बगावत का यही सिलसिला रहा तो 2027 में कार्यकर्ता और जनता मिल कर उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन कर देंगे।
व्यवस्था परिवर्तन का दावा करने वाला नेतृत्व डीएम तक को समय पर कार्यालय में बैठा नहीं पाया, सरकारी कर्मचारियों को हर वर्ष अपनी संपत्ति की घोषणा करना होता वह करवा नहीं पाया। पुलिस के क्रूर चेहरे में कमल का आकर्षण ढूंढने वाले उसकी तानाशाही जरा भी नहीं ढीली कर पाए, जबकि इसी प्रयास में कमल मुरझाने को पहुंच गया। उत्तर प्रदेश की बात करते हैं। मुख्यमंत्री बेदाग मिले, जिन पर भ्रष्टाचार का दूर-दूर तक कोई आरोप नहीं लगा। व्यवस्था में भ्रष्टाचार इस कदर बढ़ा कि हर कोई उसका शिकार हुआ लेकिन सत्ता के केंद्र में बैठे लोग ऐसे मोतियाबिंद के शिकार हुए कि उन्हें कार्यकर्ताओं में दोष का रोग पकड़ लिया। जिस तृणमूल कांग्रेस, कम्युनिस्ट और समाजवादी पार्टी से आपकी लड़ाई है वहां कार्यकर्ताओं का बलिदान लेकर अधिकारियों के हौशले बुलंद करने की बिल्कुल परंपरा नहीं है। भाजपा के सत्तासीन नेता यह समझने को कत्तई नहीं तैयार हैं कि कार्यकर्ता मेरा आधार है। वह इसी रोग से बीमार है कि ये नौकरशाही मेरा यार है, बाकी सब बेकार है।
2019 में गाजियाबाद की लोनी सीट से विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ अभियान छेड़ा उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। ऊपर से उन्हें सरकार का संरक्षण मिलने का आरोप लगा। मामला विधानसभा के सत्र के दौरान विशेषाधिकार तक आ पहुंचा। नंदकिशोर गुर्जर ने विधानसभा की वेल में आकर धरना दे दिया। उनके साथ सत्ता और विपक्ष के सैकड़ों विधायक वेल में बैठ गए। सरकार की फजीहत हुई, लेकिन तरीका नहीं बदला। थाने, कचहरी, अस्पताल में भाजपाइयों का अपमानित होना सरकारी मुलाजिमों की फितरत बन गई। वह दूसरे दलों के कार्यकर्ताओं से तो डरता है, लेकिन भाजपा वाले को शिष्टाचार और अनुशासन की आड़ में बेज्जती करता गया। जब ऐसे अफसरों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर आवाज उठी तो उसे वहीं दबा दिया गया। मुख्यमंत्री सरकारी कर्मचारियों की बात पर आंख बंद कर भरोसा करते हैं, लेकिन जिनके हांड तोड़ मेहनत से मुख्यमंत्री बने उन्हें कभी समझने की कोशिश नहीं किए। सब्र टूटा तो कार्यकर्ता सबक सिखाने की ठान लिया। इस बार लड़ाई आर-पार की है, जो नेता कार्यकर्ताओं की बात सुनने की कोशिश किए, उनके खिलाफ योगी आदित्यनाथ की सरकार के नौकरशाह षड्यंत्र करने लगे। उन्हें तरह-तरह से न सिर्फ बदनाम करने की कोशिश हुई, बल्कि उसी आड़ में कार्यकर्ताओं को सबक सिखाने का काम किया गया।
इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्थित अब हाथ से बाहर है। दो बार का विधायक अपना सब कुछ दांव पर लगा कि वीडियो जारी कर यह संदेश दे रहे हैं कि स्थिति यदि नहीं बदली तो 2027 में भाजपा की सरकार नहीं बनेगी। सीधे-सीधे अब बीजेपी के अंदर से ही यूपी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठने लगी है। विधायक द्वारा केंद्रीय नेतृत्व से कड़े फैसले लेने की अपील की जा रही है। मिश्र ने कहा कि ऐसा नहीं हुआ तो बीजेपी अगला चुनाव हार जाएगी। रमेश ने जो बात जौनपुर में कही, ठीक वही बातें पूर्व मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता मोती सिंह ने प्रतापगढ़ में मंच से दहाड़ कर बोला है। फिर भी भाजपा के अंधे-बहरे नेतृत्व के कान पर अभी तक जूं भी नहीं रेंगा है।
पूर्व मंत्री मोती सिंह ने सरकार के कार्यशैली पर आरोप लगाते हुए कहा कि मेरे 42 साल के राजनीतिक जीवन में मैंने ऐसा भ्रष्टाचार कभी नहीं देखा ना सुना जैसा अब है। यूपी में पुलिस आज लुटेरे की तरह हमें लूट रही है। बिना अपराध के अपराधी बनाया जा रहा है। धमकी देकर घूस ली जा रही है। आज यूपी में थाने और तहसील में जो भ्रष्टाचार है वो अकल्पनीय है। अफसरों को किसी का डर नहीं है। 2027 से पहले पार्टी की लड़ाई सड़क पर आ गई है।