शाहिद ए चौधरी
सीरिया में पांच दशक से अधिक असद परिवार व बाथ पार्टी का शासन राज्य की क्रूरता व दमन, ईरान के जनरलों व हिजबुल्ला के लड़ाकों और रूसी सैन्य मदद के मिश्रण से पिछले दशक के अरब बसंत से बचते हुए कायम रहा, लेकिन मास्को यूक्रेन में फंसा हुआ है और ईरान व हिजबुल्ला इजरायल के साथ अपने टकराव के कारण थक चुके हैं, जिससे डॉ. बशर अल-असद कमजोर पड़ गए। साथ ही असद शासन अपनी मूल बाथ जड़ों से हटकर अल्पसंख्यक अल्वी (नुसेरी) शासन में बदल गया था (सीरिया में सुन्नी अरब बहुसंख्यक हैं), जिसका अर्थ है कि दमिश्क के विरुद्ध व्यापक जनाक्रोश था, जो पिछले १३ वर्षों के गृहयुद्ध के कारण निरंतर बढ़ता जा रहा था। इस पृष्ठभूमि में अबु मुहम्मद अल-गोलानी के नेतृत्व में हयात तहरीर अस-साम (एचटीएस) को असद का तख्ता पलटने का अवसर मिल गया। इस तरह एक तानाशाह के शासन का अंत हो गया।
अनिश्चित भविष्य
सीरिया में नया युग अवश्य आरंभ हो गया है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि लोकतंत्र की किरण दूर तक नजर नहीं आ रही है। सीरिया का भविष्य अनिश्चित है। एक नई अराजकता उसकी प्रतीक्षा में है। दरअसल, सीरिया के विद्रोहियों ने पश्चिम एशिया के पॉवर डायनामिक्स को पूर्णत: बदलकर रख दिया है। शिया का दबदबा जो ईरान से लेबनान तक पैâला हुआ था, उसे बहुत बड़ा धक्का लगा है। इससे न सिर्फ इजरायल मजबूत हुआ है, बल्कि ईरानी आयातउल्लाओं को भी एक संदेश मिला है, जिन्होंने ईरान में अपनी पकड़ को मजबूत बनाने के उद्देश्य से यह छवि बनाई हुई थी कि वह ही इजरायल और अमेरिका को पश्चिम एशिया में पर पैâलने से रोके हुए हैं।
अमेरिका की उपस्थिति
यह छवि अब धूमिल पड़ रही है, जिससे ईरान के उदारवादियों को बल मिलेगा और संभवत: वर्तमान राष्ट्रपति पेजेशकियान की स्थिति भी मजबूत होगी। अरब देश इस स्थिति का स्वागत करेंगे। हालांकि, तुर्की के एचटीएस प्रमुख अल-जोलानी से संबंध हमेशा अच्छे नहीं रहे हैं, लेकिन अनुमान यह है कि उसने ही इस बार विद्रोहियों की मदद की है। अंकारा की इसमें स्पष्ट दिलचस्पी है। वह चाहता है कि जो लाखों सीरियाई शरणार्थी तुर्की में शरण लिए हुए हैं, वह वापस सीरिया चले जाएं। इसके अतिरिक्त तुर्की उत्तर-पूर्व सीरिया में अमेरिका समर्थित कुर्द मिलिशिया को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है। लेकिन दोनों कुर्द व सीरियाई विपक्ष असद से मुक्ति चाहते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से तानाशाह को भगाने में सहयोग किया है। ध्यान रहे कि उत्तर-पूर्व सीरिया में अमेरिका की सैन्य उपस्थिति है और वह आईएसआईएल (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवांट) के विरुद्ध एसडीएफ (सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज) का समर्थन करता है, जो कि मूलत: कुर्द हैं। अमेरिका ने कहा है कि वह उत्तर-पूर्व सीरिया में अपनी मौजूदगी बनाए रखेगा, ताकि आईएसआईएल फिर से मजबूत न हो जाए।
लोकतंत्र को उम्मीद
गौरतलब है कि ८ दिसंबर २०२४ को एचटीएस ने बिना किसी प्रतिरोध के दमिश्क में प्रवेश किया। असद व उनका परिवार पहले ही फरार हो चुका था। खबर यह है कि उसने रूस में शरण ली है। सीरिया के लोगों के लिए यह अचानक ऐसी जीत आई, जिसकी वह उम्मीद भी नहीं कर रहे थे। गृहयुद्ध वर्षों से डीप फ्रीज में था कि सैकड़ों-हजारों मौत के घाट उतर गए थे, लाखों विस्थापित होकर बेघर हो गए थे, शहर के शहर बर्बाद होकर मिट्टी व राख का ढेर बन गए थे, ग्लोबल पाबंदियों से अर्थव्यवस्था चौपट हो गई थी और समाधान कहीं नजर नहीं आ रहा था। दमिश्क की मध्य युगीन उम्मद मस्जिद में अल-जोलानी ने विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि कितने लोग दुनियाभर में विस्थापित हुए? कितने लोगों को टेंट्स में रहना पड़ा? कितने लोग समुद्रों में डूब गए? इस विजय के बाद मेरे भाइयों, इस पूरे क्षेत्र में नया इतिहास लिखा जा रहा है। भविष्य हमारा है। अल-जोलानी इस समय सीरिया के प्रधानमंत्री मुहम्मद गाजी अल-जलाली के साथ वार्ता कर रहे हैं कि एग्जीक्यूटिव पॉवर्स के साथ एक माध्यमिक प्रशासनिक संस्था को पॉवर ट्रांसफर कर दी जाए, जो सीरिया में निष्पक्ष चुनाव कराए। सीरिया में लोकतंत्र आता है या नहीं, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि असद सरकार, जिसने सीरिया को पश्चिम एशिया का सबसे क्रूर पुलिस राज्य बना दिया था कि जेलों में हजारों राजनीतिक कैदी थे, एक ही रात में इतिहास बन गई।
विद्रोहियों ने जेलों के तालों को ब्लास्ट कर दिया और बेसुध, किंतु प्रसन्न राजनीतिक कैदी जेलखानों से बाहर निकले। नई आजादी पाए इन लोगों को दमिश्क की सड़कों पर दौड़ते हुए देखा गया। वह अपनी उंगलियों के इशारे से बता रहे थे कि कितने साल जेल में रहे। एक राजनीतिक कैदी ने तो पिछले ४३ वर्षों से सूरज नहीं देखा था। यह सर्विदित है कि असद- दोनों बशर और उनके पिता हाफिज- का शासन क्रूर व दमनकारी था। आंखों के डॉक्टर बशर ने इंग्लैंड में शिक्षा प्राप्त की थी इसलिए उनसे उम्मीद थी कि वह मानवीय मूल्यों और लोकतंत्र को प्राथमिकता देंगे, लेकिन उन्होंने तो ज़ुल्म करने में अपने पिता को भी बहुत पीछे छोड़ दिया था, लेकिन क्या अब सीरिया में हालात बेहतर हो सकेंगे। मुश्किल लगता है। एक, एचटीएस के नेतृत्व वाले सीरियाई विद्रोही धार्मिक कट्टरपंथी हैं। धार्मिक कट्टरपंथी चाहे जिस भी रंग के हों, आम नागरिकों के लिए मुसीबत ही होते हैं और अनंत: उनके कारण देश बर्बाद ही होता है। एचटीएस की जड़ें अल-कायदा में हैं इसलिए अमेरिका व अन्य देशों ने उसे आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है। इसलिए सीरिया में आज एक अन्य इस्लामिक स्टेट के क्लोन के लिए जमीन फर्टाइल है। दूसरी बात यह है कि सीरिया में अनेक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी-अमेरिका, रूस, तुर्की, ईरान व इजरायल सक्रिय हैं, जिनके अपने-अपने स्वार्थ हैं। इजरायल अपने ग्रेटर इजरायल के सपने को साकार करने के लिए गोलन हाइट्स से आगे के कब्जे पर नजरें लगाए हुए हैं।
दूसरे इराक की जरूरत नहीं है
सीरिया में सत्ता संतुलन में परिवर्तन व अस्थिरता से पड़ोसी देश जैसे लेबनान, जॉर्डन व इराक भी प्रभावित होंगे। इन देशों में शरणार्थियों का आना, आतंकी धमकियों व राजनीतिक अस्थिरता बढ़ सकती है। दरअसल, असद के बाद की सीरिया का भविष्य अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों, क्षेत्रीय खिलाड़ियों और सीरिया की अंदरूनी डायनामिक्स के मिश्रण से तय होगा। अनुमान यह है कि इजरायल की सुरक्षा के नाम पर अमेरिका पश्चिम एशिया में किसी को भी चैन से बैठने नहीं देगा। लेकिन एक सवाल, जिसका किसी के पास जवाब नहीं है। वह यह है कि इस प्रक्रिया के अंत में पश्चिम एशिया कैसा दिखाई देगा?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)