दीपक तिवारी
विदिशा। गड़बड़ियों की जांच के नाम पर सिस्टम किस कदर कागजी खेल खेलकर दोषियों को बचा लेता है, यह विदिशा जिले के अफसरों द्वारा सहकारिता में हुई गड़बड़ियों की जांच से सिद्ध होता है। प्रशासन की कार्यप्रणाली देखिए कि जिम्मेदार अधिकारियों ने 6 साल बाद भी शिकायतकर्ता को जांच रिपोर्ट से अवगत कराना उचित नहीं समझा। विदिशा जिले के पत्रकार दीपक तिवारी ने 6 साल पहले नवंबर 2018 में उपायुक्त सहकारिता कार्यालय में हुई गड़बड़ियों की शिकायत कलेक्टर को कर टीम बनाकर जांच कराने की मांग की थी।
जैसे-तैसे कलेक्टर कार्यालय की सतर्कता शाखा ने 5 महीने बाद मार्च 2019 में जिला परिवहन अधिकारी और जिला कोषालय अधिकारी की टीम बनाकर जांच के निर्देश दिए। लेकिन टीम ने जब समय सीमा में जांच शुरू नहीं की तो कलेक्टर कार्यालय द्वारा अप्रैल में स्मरण पत्र लिखा गया। बावजूद इसके 1 साल तक मामले में कोई जांच नहीं हुई और जांच की फाइल धूल खाती रही। शिकायतकर्ता पत्रकार ने जब आरटीआई लगाई तो प्रशासन को सुध आई और जून 2020 में जिला परिवहन अधिकारी और कोषालय अधिकारी को दूसरा स्मरण पत्र जारी किया गया। वर्ना अन्य फाइलों की तरह यह फाइल भी नस्ती में बंध गई थी। सिस्टम की भर्राशाही इस कदर कि जांच के लिए कलेक्टर कार्यालय को तीसरा स्मरण पत्र जारी करना पड़ा। इस दौरान 2 साल में कागज इधर से उधर होते रहे और जांच के नाम पर कुछ नहीं हुआ।
आखिरकार दो साल बाद जैसे तैसे मजबूरन जांच टीम ने जांच प्रतिवेदन कलेक्टर के समक्ष प्रस्तुत किया और शिकायत को निराधार बताकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। प्रशासन इस कदर लचर है कि जांच परिणाम से शिकायतकर्ता को 6 साल बाद भी अवगत नहीं कराया गया और इसके लिए शिकायतकर्ता पत्रकार को आरटीआई पर आरटीआई कलेक्टर कार्यालय में लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा। तब जाकर जांच के नाम पर सिस्टम के ढर्रे की पोल खुली।