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RPF में नाम के लिए होती है मानसिक जांच … विशेषज्ञों ने जताई गंभीर चिंता

• अधिकारियों और कर्मचारियों की काउंसलिंग की है जरूरत

• अधिकारियों और कर्मचारियों की काउंसलिंग की है जरूरत

सामना संवाददाता / मुंबई
जयपुर-मुंबई सुपरफास्ट एक्सप्रेस में सोमवार की सुबह रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स के जवान ने खौफनाक कदम उठाते हुए अपने वरिष्ठ अधिकारी समेत ३ यात्रियों को गोलियों से भून दिया। इस हृदय विदारक घटना में चारों की मौत हो गई। वहीं आरपीएफ जवान द्वारा उठाए गए इस कदम को लेकर मनोचिकित्सकों ने संभावना जताते हुए कहा है कि यह मानसिक तौर पर बीमार हो सकता है। हत्या की वारदात को अंजाम देते समय शायद यह बहुत तनाव में रहा होगा। हालांकि, मेडिकल जांच के बाद ही यह साफ हो पाएगा कि आरपीएफ जवान मानसिक रूप से बीमार था या कोई और कारण है।
उल्लेखनीय है कि आरपीएफ जवान चेतन सिंह ने एक्सप्रेस में अपनी ऑटोमैटिक राइफल से साथी सहायक उप निरीक्षक को गोली मार दी। इसके बाद वह दूसरे डिब्बे में गया और तीन यात्रियों को भी शूट कर दिया। घटना के वक्त ट्रेन गुजरात से महाराष्ट्र आ रही थी। फायरिंग पालघर रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन के कोच बी-५ में हुई। जवान को उसकी राइफल के साथ गिरफ्तार कर लिया गया है। बताया गया है कि आरोपी काफी समय से तनाव में था।
मानसिक तनाव में था जवान
इस तरह की घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं। ऐसे में मनोचिकित्सकों की अलग-अलग राय है। मनोचिकित्सक डॉ. सुवर्णा माने ने कहा कि आरपीएफ जवान ने जिस तरह से चार लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी, उसे देख यही संभावना जताई जा सकती है कि वह बहुत ज्यादा तनाव में होगा। उन्होंने कहा कि मानसिक तनाव से गुजर रहे अधिकारियों और कर्मचारियों के मन में संदेह पैदा हो जाता है कि कुछ लोग उनके खिलाफ हैं। उसी के अनुरूप ऐसे लोग जोखिम लेनेवाला व्यवहार करने लगते हैं।
साल में एक बार होनी चाहिए मानसिक जांच
डॉ. सुवर्णा माने ने कहा कि ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले पुलिसवालों, आरपीएफ जवानों, अन्य विभागों के सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की सभी मेडिकल जांच की जाती है। इसके बाद हर छह महीनों में रूटीन चेकअप किया जाता है। उन्होंने कहा कि मेरे खयाल से मानसिक बीमारियों की जांच ५ से ८ सालों में एक बार ही किया जाता है। हालांकि, वर्तमान समय में मानव बल कम होने से सरकारी विभागों में कार्यरत अधिकारियों-कर्मचारियों पर काम का बोझ अधिक रहता है। इसके चलते ये सभी तनाव में रहते हैं। इसे देखते हुए साल में कम से कम एक बार मानसिक बीमारियों की जांच की जानी चाहिए, ताकि इस तरह के नरसंहार को रोका जा सके।
काउंसलिंग की जरूरत
डॉ. माने ने कहा कि कितना भी मानसिक तनाव में काम करना पड़ रहा हो, इंसान को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, बल्कि बीच का रास्ता निकालते हुए तनाव को काम करने का प्रयास करना चाहिए। मौजूदा स्थिति में जिस तरह का माहौल बन गया है, उसमें इंसान खुद पर कंट्रोल नहीं कर पा रहा है, जिसका नतीजा इस तरह से सामने आ रहा है। फिलहाल, इन सबसे बचने के लिए काउंसलिंग ही एकमात्र विकल्प बचा हुआ है। राज्य में टेलीमानस प्रणाली को कार्यरत किया गया है। इसके तहत उपलब्ध कराए गए टोल प्रâी नंबर पर चिकित्सा और परामर्शदाता उपलब्ध हैं। इसके माध्यम से मानसिक रोगियों की काउंसलिंग की जाती है।

रक्षक बनें भक्षक …थाने में लुट गई युवती की अस्मत
कानून व्यवस्था को लेकर हमेशा आलोचना का सामना करनेवाली यूपी पुलिस के अधिकारियों ने खाकी की गरिमा को एक बार फिर से कलंकित करनेवाला काम किया है। मामले में थानेदार सहित आधा दर्जन पुलिसकर्मियों पर एक इक्कीस वर्षीय युवती को पूरी रात थाने में नोचने का आरोप लगने के बाद पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया है। बताया जा रहा है कि पीड़िता चीखती रही, लेकिन भक्षकों को तरस नहीं आया। सुबह हुई तो उल्टा पीड़िता पर ही मुकदमा दर्ज कर लिया। अपने पर हुए जुल्म को लेकर लड़की और उसकी विधवा मां उच्चाधिकारियों के चक्कर काटती रही, पर किसी ने उनकी फरियाद नहीं सुनी, चूंकि मामला विभागीय था इसलिए किसी ने अपने साथियों पर हाथ नहीं डाला, बल्कि उन्हें बचाने में लगे रहे। हारकर पीड़िता ने कोर्ट का रुख किया, तो कोर्ट के आदेश पर सोमवार को कोतवाल सहित तीन अन्य पुलिसकर्मियों पर गैंगरेप सहित कई धाराओं में एफआईआर दर्ज हुई।
बता दें कि घटना उत्तर प्रदेश के जिले लखीमपुर खीरी के गोला थाने में घटी पिछले वर्ष जुलाई की है, जहां रात में पुलिसकर्मियों ने शराब के नशे में चूर होकर घटना को अंजाम दिया था। पीड़िता ने अपने घर में फायरिंग होने की सूचना थाने में दी थी, जिस पर कोतवाल विवेक उपाध्याय अपने स्टॉफ के साथ उसके घर पहुंचे थे। तब कोतवाल अपनी गाड़ी में पीड़ित युवती और उसकी मां को बैठाकर थाने ले गए थे। थोड़ी देर बाद लड़की की मां को डांट-डपट कर कोतवाल ने थाने से भगा दिया, लेकिन लड़की को थाने में रोक लिया था। उसके बाद कोतवाल और उसके साथियों ने लड़की के साथ बारी-बारी से दुष्कर्म किया था और पीड़िता के साथ मारपीट भी की थी। घटना के संबंध में किसी को नहीं बताने और अंजाम भुगतने की धमकी भी दी। मुकदमा दर्ज होने के बाद दिल्ली तक शोर मचता दिख रहा है, क्योंकि पीड़िता ने वहां के केंद्रीय मंत्री से भी न्याय की गुहार गलाई थी, लेकिन मंत्री ने भी पीड़िता की याचना को अनसुना कर दिया था।

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