–सुरेश एस डुग्गर–
जम्मू, 6 अप्रैल। पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर राज्य के दो टुकड़े करने और उसकी पहचान खत्म किए जाने की कवायद के बाद किए जा रहे शांति लौट आने के दावों के बीच राजधानी शहर श्रीनगर में सबसे बड़े और ऐतिहासिक ईदगाह में इस बार भी ईद की नमाज को लेकर अड़ंगा पैदा हो गया है।
श्रीनगर के ऐतिहासिक ईदगाह मैदान में ईद की नमाज की अनुमति दिए जाने की संभावना क्षीण हो गई है। दरअसल सुरक्षा एजेंसियों को आशंका है कि कश्मीर घाटी में कुछ शरारती तत्वों द्वारा अशांति फैलाने के लिए उस दिन का इस्तेमाल किया जा सकता है। खासकर यह चिंता इसलिए गहरी हो जाती थी क्योंकि पांच अगस्त 2019 के बाद से ही ईदगाह में ईद की नमाज की अनुमति नहीं दी गई है और उससे पहले हर ईद के बाद कश्मीर में हिंसा का माहौल बनता रहा है।
नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि भले ही ईद की नमाज को आयोजित करने और न करने के बारे में कोई निर्णय अभी नहीं लिया गया है, पर यह सच है कि उपद्रवी इस अवसर का उपयोग गड़बड़ी पैदा करने और प्रचलित शांति को भंग करने के लिए कर सकते हैं। अधिकारी ने कहा कि इस तरह के अवसर के लिए सुरक्षा मंजूरी जरूरी है और पुलिस प्रतिष्ठान का मानना है कि इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हालांकि वे कहते थे कि अंतिम निर्णय सरकार के पास है।
याद रहे इस सप्ताह की शुरुआत में, जम्मू और कश्मीर वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने 2019 के बाद ऐतिहासिक ईदगाह में सामूहिक ईद की नमाज अदा करने का संकेत दिया था। एक बैठक के इतर वक्फ कार्यालय श्रीनगर में मीडियाकर्मियों से बात करते हुए, वक्फ अध्यक्ष डा द्रक्षणा अंद्राबी ने कहा था कि अगर मौसम अनुमति देता है, तो ईदगाह में ईद की नमाज अदा की जाएगी। अंद्राबी ने कहा था कि बोर्ड आवश्यक सफाई अभियान शुरू करेगा और ऐतिहासिक स्थल पर सामूहिक प्रार्थनाओं के सुचारू संचालन के लिए व्यवस्था करेगा।
पर अब इस मामले में सुरक्षा का मामला एक अड़ंगें के तौर पर सामने आने के कारण किसी को उम्मीद नहीं है कि चार सालों से जिस अनुमति की चाहत है वह इस बार भी मिल पाएगी। पर इतना जरूर था कि ईदगाह में अनुमति नहीं दिए जाने को राजनीतिक पंडित उन दावों की सच्चाई के विपरीत बताते थे जिसमें दावा किया जा रहा है कि कश्मीर में शांति लौट आई है।