मुख्यपृष्ठनए समाचारदुधारू पशुओं के भोजन पर संकट : गर्मी में सूखेगा गला! ......

दुधारू पशुओं के भोजन पर संकट : गर्मी में सूखेगा गला! … आइस्क्रीम-लस्सी के हो सकते हैं वांदे

• आइस्क्रीम-लस्सी के हो सकते हैं वांदे 
• और भी महंगा होगा दूध और दुग्ध उत्पाद
• पिछले एक वर्ष में कई बार बढ़ी हैं कीमतें
धीरेंद्र उपाध्याय
लस्सी और छाछ से गला तर करनेवालों के लिए यह गर्मी सतानेवाली है। ऐसा इसलिए क्योंकि बाजार में इस गर्मी के मौसम में दूध की कमी होनेवाली है। चारे की कमी के कारण उसके भाव काफी बढ़ गए हैं। इसका असर दूध की कीमतों पर पड़ रहा है। पिछले एक वर्ष के दौरान दूध के दाम कई बार बढ़ाए गए हैं। इससे पहले दूध के दाम यदा-कदा ही इतने बढ़े थे। मदर डेयरी, अमूल एवं अन्य सहकारी और निजी क्षेत्र की दुग्ध उत्पादक इकाइयां २०२२ की शुरुआत से विभिन्न चरणों में दूध के खुदरा दामों में १० रुपए प्रति लीटर से अधिक का इजाफा कर चुकी हैं।
दुग्ध उद्योग क्षेत्र के विशेषज्ञ इस वर्ष गर्मी में दूध की कीमतों में और वृद्धि से इनकार नहीं कर रहे हैं। इसका कारण यह है कि गर्मी के दिनों में मवेशियों की दूध देने की क्षमता कम हो जाती है और हरी घास एवं चारे की उपलब्धता भी कम हो जाती है। दूसरी तरफ, दही, लस्सी और आइसक्रीम जैसे दुग्ध उत्पादों की मांग बढ़ जाती है। हिंदुस्थान दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, मगर गर्मी के दिनों में मांग पूरी करने के लिए इसे दुग्ध उत्पादों का आयात करना पड़े तो इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
चारा और घास की कमी
दूध के दाम में वृद्धि की सबसे बड़ी वजह मवेशियों के लिए चारा और घास की कमी है। चारे की कमी के कारण इनकी कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। दुग्ध उत्पादन पर जितनी लागत आती है, उसका ६५ प्रतिशत हिस्सा चारे पर खर्च होता है। आधिकारिक थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के अनुसार चारे की कीमतें बढ़ने की दर जनवरी २०२२ में ७.१४ फीसदी थी, जो जनवरी २०२३ में बढ़कर २९.३० फीसदी हो गई। उद्योग सूत्रों के अनुसार चारे और पशु आहार की औसत कीमत पिछले एक साल में दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है। पशु आहार में अनाज, तिलहन, खली, गुड़ एवं अन्य सामग्री (संकेंद्रित चारा) शामिल है।
कोविड महामारी के बाद आपूर्ति तंत्र में व्यवधान और मवेशियों में चमड़ी पर गांठ (लंपी स्किन) की बीमारी फैलने से भी दूध उत्पादन में कमी आई है। इसका नतीजा दूध के दामों में बेतहाशा वृद्धि के रूप में देखने को मिला है। एक अनुमान के अनुसार लंपी बीमारी से ७५,००० मवेशियों की मौत हो चुकी है। देश के करीब १० राज्यों में इस बीमारी से संक्रमित मवेशियों में दूध देने की क्षमता काफी घट गई है। यह दाम बढ़ने की एक और वजह है।
प्रजनन चक्र बिगड़ गया
कोविड महामारी के दौरान कृत्रिम गर्भाधान जैसी पशु चिकित्सा सेवाओं में व्यवधान पहुंचने से पशुओं का प्रजनन चक्र बिगड़ गया है। इस वजह से किसान उनको पूरा चारा नहीं दे पा रहे हैं। इसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य और दूध उत्पादन क्षमता पर हो रहा है। महामारी के दौरान जन्म लेनेवाले बछड़े (गाय एवं भैंस के) जो अब गाय और भैंस बन चुके हैं, अधिक दूध नहीं दे पा रहे हैं। दुग्ध उत्पादन में स्थिरता के लिए इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान जरूरी है। दुनिया के किसी भी देश की तुलना में हिंदुस्थान में पशुओं की आबादी विश्व में सर्वाधिक है। यहां दूध की मात्रा एवं मूल्य दोनों दृष्टिकोण से सबसे बड़ा कृषि जिंस हो गया है। देश में दुग्ध उत्पादन अब दो प्रमुख खाद्यान्न चावल एवं गेहूं के संयुक्त उत्पादन के बराबर हो गया है। पशुपालन आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों की आय में एक बड़ा योगदान देता है। खासकर छोटे एवं सीमांत किसानों और भूमिहीन ग्रामीण लोगों के लिए यह आय का प्रमुख माध्यम है। यही कारण है कि चारे की कमी और इसके दाम में वृद्धि से गांव में दुग्ध उत्पादकों और शहर में इसके उपभोक्ताओं दोनों पर असर हो रहा है।
चारे की कमी देश में कोई नई या अनजान समस्या नहीं है। इसके बावजूद भी इस पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। लेकिन यह समस्या अब विकराल रूप ले चुकी है। हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि पशुओं के लिए हरित एवं सूखे चारे की कमी और प्रोटीन युक्त भोजन का अनुमान भी उपलब्ध नहीं है। इस संबंध में विभिन्न संगठनों के आंकड़ों में काफी भिन्नता पाई जाती है और वे अलग-अलग मानदंडों पर तैयार किए जाते हैं।
हरे चारे की कमी
देश में हरे चारे की कमी ३५ फीसदी और सूखे चारे की कमी ११ प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। संकेंद्रित आहार की कमी ४४ फीसदी तक हो गई है। भारतीय कृषि शोध एवं अनुसंधान परिषद के अनुसार देश में हरे चारे की कमी ११ प्रतिशत और सूखे चारे एवं आहार की कमी २३ प्रतिशत है। परिषद दुधारू पशुओं और उम्र और लिंग के आधार पर भविष्य में आवश्यक आहार की जरूरत को ध्यान में रखकर आंकड़े तैयार करती है। वर्ष २०१२ और २०१९ में मवेशी जनगणना के अनुसार वर्णसंकर गाय एवं भैंसों की संख्या क्रमश: ४३.६ प्रतिशत और १२.७१ प्रतिशत बढ़ी है। ये मवेशी देसी गाय की तुलना में अधिक चारा एवं आहार लेते हैं। देश में जितना दुग्ध उत्पादन होता है, उसका ८० प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षेत्र से आता है। इन क्षेत्रों में दुग्ध किसान चारे के लिए सार्वजनिक चारागाह और गांव में उपलब्ध घास के मैदान एवं पौधों पर निर्भर रहते हैं। इनमें ज्यादातर घास के मैदान खराब स्थिति में हैं क्योंकि उनकी देखभाल करने का जिम्मा कोई नहीं लेता है और न ही इस ओर किसी का ध्यान जाता है। लिहाजा, गांवों में चारे के स्रोत के उपयुक्त रखरखाव एवं प्रबंधन के लिए योजनाएं शुरू करने की जरूरत है।

 

अन्य समाचार