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नौनिहालों पर संकट छाया … एडोना वायरस का नया स्ट्रेन आया

•  चिकित्सा विशेषज्ञों की सलाह
•  बुखार, आंख, पेट, टॉन्सिल और गले की शिकायतों को न करें नजरअंदाज
सामना संवाददाता / मुंबई
एडोना वायरस के नए स्ट्रेन ने नौनिहालों पर संकट ला दिया है। इस संकट को गंभीरता से लेते हुए चिकित्सा विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि एडोना वायरस की चपेट में आने वाले बच्चों में बुखार, आंख, पेट, टॉन्सिल अथवा गले से संबंधित शिकायत दिखाई देती है। ऐसे में इन लक्षणों के साथ स्वास्थ्य में गिरावट दिखाई देने पर बिना नजरअंदाज किए तुरंत डॉक्टरों से सलाह लें। चिकित्सकों का कहना है कि एडेना वायरस के नए स्ट्रेन ने सांस की बीमारियों वाले बच्चों की संख्या में काफी वृद्धि की है।
पिछले कुछ दिनों से बच्चों में बुखार, टॉन्सिल, गले में खराश और आंखों में लाली जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं। ये एडोना वायरस के लक्षण हैं, जो मुख्य रूप से पांच से १५ साल की उम्र के बच्चों में देखे जाते हैं। बताया जा रहा है कि बीते एक महीने से बच्चों में इस तरह के लक्षणों में अचानक बढ़ोतरी हुई है। बता दें कि एडोना वायरस एक सामान्य वायरस है, जो नाक, गले, श्वास नली और फेफड़ों में संक्रमण का कारण बनता है। लक्षणों में बुखार, खांसी और सर्दी शामिल हैं। इसमें बुखार एक सप्ताह से अधिक समय तक बना रह सकता है। ये लक्षण कई बार इन्फ्लुएंजा या फिर कोविड जैसे भी होते हैं। एडोना वायरस के विशिष्ट लक्षणों में लाल आंखें और बढ़े हुए लिम्फ नोड्स शामिल हैं।
क्या है एडोना वायरस?
एडोना वायरस एक अत्यधिक संक्रामक वायरस है, जिसमें सामान्य सर्दी, ब्रोंकाइटिस और निमोनिया जैसी बीमारियां शरीर को घेर लेती है। इससे बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है। एडोना वायरस का संक्रमण बच्चों के श्वसन मार्ग, आंत, आंख, पेशाब नली को प्रभावित करता है। इससे सर्दी, निमोनिया, पाचन संबंधीr शिकायतें हो सकती हैं। इसके शिकार अधिकतर बच्चे पैरासिटामॉल दवा से ठीक हो जाते हैं।
नहीं उपलब्ध है कोई टीका
एडोना वायरस से निपटने के लिए कोई विशिष्ट टीका उपलब्ध नहीं है। संक्रमण से बचने के लिए बच्चों को गंदे हाथों से अपनी आंख, नाक या मुंह को छूने से बचना चाहिए। हाथ धोने के लिए नियमित रूप से साबुन या सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही जहां तक हो सके भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचना चाहिए। माता-पिता को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे बीमार लोगों के संपर्क में न आएं। बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अच्छे और पौष्टिक आहार पर ध्यान दें। अब जबकि स्कूल शुरू हो गया है, तो बच्चे को सर्दी, बुखार, खांसी होने पर कम से कम तीन-चार दिन के इलाज के बाद स्कूल भेजना चाहिए।
  ६० फीसदी बच्चों को होती है बार-बार सर्दी
जेजे अस्पताल में ईएनटी विभाग के प्रमुख डॉ. श्रीनिवास चव्हाण के मुताबिक एडोना वायरस आमतौर पर ३ से १० साल की उम्र के बच्चों में महामारी के बाद दिखाई देता है। कई बच्चे सोते समय मुंह से सांस लेते हैं। इन बच्चों में एडोनाइड्स बढ़े हुए हो सकते हैं। एडोनाइड्स वृद्धि को एडिनोइडाइजेस्ट के रूप में जाना जाता है। यह एडोना वायरस संक्रमण के कारण हो सकता है। ये बच्चे अक्सर खांसी, जुकाम, सांस की बीमारी से बीमार पड़ते हैं। लगभग ६० प्रतिशत बच्चों को बार-बार सर्दी और खांसी होती है जो दवा से ठीक नहीं होती है। जन्मजात हृदय रोग, गंभीर कुपोषण और कमजोर प्रतिरक्षा, कई बीमारियों से ग्रसित बच्चों में एडोना इडाइटिस और अन्य समस्याओं जैसे श्वसन संक्रमण विकसित होने की संभावना अधिक होती है। बालरोग विशेषज्ञ डॉ. संतोष कदम के अनुसार एडोना वायरस का पता लगाने के लिए एक विशेष जांच की जाती है, जिसे पीसीआर कहते हैं। फिलहाल इस बीमारी का इलाज करने के लिए कोई विशेष कोर्स नहीं है।

 

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