विजय कपूर
उत्तर प्रदेश (८०) के बाद लोकसभा में सबसे अधिक सांसद महाराष्ट्र (४८) से आते हैं। २०१९ लोकसभा चुनाव में एनडीए की बड़ी जीत में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की बड़ी भूमिका थी कि उसने ४८ में से ४१ सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन २०२४ के पैâसले ने एनडीए को जबरदस्त चोट पहुंचाई है। इंडिया गठबंधन से संबंधित महाविकास आघाड़ी (एमवीए) ने शानदार प्रदर्शन करते हुए ३० सीटों पर जीत दर्ज की है, जिसमें से १३ कांग्रेस, ९ शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) व ८ एनसीपी (शरदचंद्र पवार) की हैं, जबकि सांगली से कांग्रेस के विद्रोही विशाल पाटील ने सफलता हासिल की है और अनुमान यह है कि वह भी एमवीए में शामिल हो जाएंगे। एमवीए का यह प्रदर्शन इस लिहाज से उल्लेखनीय व महत्वपूर्ण है कि बीजेपी ने दोनों क्षेत्रीय पार्टियों- शिवसेना व एनसीपी को नेस्तनाबूद करने की पूरी कोशिश की, उनमें फूट डलवाई और चुनाव आयोग ने भी इन पार्टियों का नाम व चुनाव निशान अलग हुए एकनाथ शिंदे व अजीत पवार के गुटों को दिया। लेकिन आखिरकार उद्धव ठाकरे व शरद पवार ने साबित कर दिया कि ‘मूल पार्टियों’ के असल नेता वे हैं। उद्धव ठाकरे व शरद पवार ही एमवीए की सफलता के सरताज बने। दूसरी ओर बीजेपी के नेतृत्व वाला महायुति गठबंधन, जिसमें शिंदे व अजीत गुट भी शामिल हैं, केवल १७ सीट ही जीत सका, जिसमें भाजपा की ९, शिंदे गुट की ७ और अजीत गुट की १ सीट है। राज्य की शिंदे सरकार में उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस हार से इतने क्षुब्ध हैं कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने का ऑफर दिया है, ताकि वह महाराष्ट्र में बीजेपी को नये सिरे से खड़ा कर सकें। शिंदे ने कहा है कि वह उनसे अपने ऑफर पर पुनर्विचार करने के लिए कहेंगे। करारी शिकस्त के बाद अजीत पवार अपनी बार्गेनिंग पॉवर खो चुके हैं और उनके गुट के विधायक एमवीए में लौटने के लिए शरद पवार के संपर्क में हैं; कुछ ने बीजेपी से भी बात की है।
महाराष्ट्र में मतदाताओं का इससे अधिक स्पष्ट पैâसला नहीं हो सकता था। जैसे प्याज का छिलका उतारने पर फिर एक छिलका निकल आता है, वैसे ही इस पैâसले के संकेतों के भीतर भी संकेत हैं, जिसका मुख्य कारण यह है कि आगामी अक्टूबर में महाराष्ट्र विधानसभा की २८८ सीटों के लिए चुनाव होगा। एमवीए की शानदार जीत का सबसे बड़ा संकेत यह है कि राज्य के मतदाताओं ने उद्धव ठाकरे व शरद पवार के नेतृत्व वाली पार्टियों को ही क्रमश: असल शिवसेना व एनसीपी के रूप में स्वीकार किया है। मतदाताओं ने कहा है कि चुनाव निशानों से कोई फर्क नहीं पड़ता है, जहां उद्धव ठाकरे वही है शिवसेना और जहां शरद पवार वही है एनसीपी। गौरतलब है कि बारामती लोकसभा सीट पर जब पवार ने पवार को पराजित किया तो स्पष्ट हो गया कि पारिवारिक गढ़ में शरद पवार ही मुखिया हैं, जिससे अजीत पवार का मनोबल पूरी तरह से टूट गया है। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार को १.५८ लाख मतों से पराजित किया। अपने चुनाव अभियान के दौरान सुप्रिया मतदाताओं को यह बताना नहीं भूलीं कि यह एक सामान्य पारिवारिक युद्ध नहीं है, बल्कि वह ‘दिल्ली की ताकतों’ से लड़ रही हैं, जो कि इस बात की ओर इशारा था कि उद्धव ठाकरे की सरकार साजिश के तहत गिराई गई और क्षेत्रीय पार्टियों को खत्म करने के लिए शिवसेना व एनसीपी को तोड़ा गया। सुप्रिया ने अपनी पार्टी के नए चुनाव निशान तुतारी का भी बहुत अच्छा प्रयोग किया- ‘राम कृष्ण हरि, वाजवा तुतारी’।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले ही अजीत पवार व उनके गुट के लिए अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने का संकट आ गया है। शरद पवार के नवासे ने पत्रकारों से कहा है कि अजीत गुट के १८-१९ विधायक मूल पार्टी में लौटने के लिए संपर्क कर रहे हैं, जबकि अन्य १२ विधायक बीजेपी में जाने का प्रयास कर रहे हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि महायुती के भीतर अजीत पवार अपनी बार्गेनिंग पॉवर खो चुके हैं और वह इस दावे में भी विफल हो गए हैं कि वह ही पवार खानदान के वारिस हैं। सुप्रिया सुले ने साबित किया है कि शरद पवार की असल वारिस वह ही हैं। यह सही है कि विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव से पूर्णत: अलग होते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में वह इतनी जल्दी होने जा रहे हैं कि निज स्वार्थ के लिए अपनी मूल पार्टी से बगावत करने वाले विधायकों के लिए मतदाताओं के खोए विश्वास को वापस हासिल करना कठिन होगा।
अन्य राज्यों के विपरीत महाराष्ट्र में चुनावी मुकाबले शख्सियतों, पार्टी से वफादारी, प्रभाव व दबदबे से संबंधित थे। मसलन, मुंबई की छह सीटें पार्टी के सम्मान को लेकर थीं। इनमें से उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने चार पर चुनाव लड़ा, तीन में उसने जीत दर्ज की और चौथी वह शिंदे गुट से मात्र ४८ वोटों से हार गई। उसका कहना है कि चौथी सीट उसे बेईमानी से हराई गई है और इस मामले को वह अदालत में लेकर जाएगी। मोदी द्वारा शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) को नकली शिवसेना कहने के बावजूद मतदाताओं ने बता दिया है कि असली शिवसेना कौन सी है Dाौर नकली शिवसेना कौन सी है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान महाराष्ट्र में जो अनावश्यक राजनीतिक तोड़-फोड़ हुई या कराई गई है, उसके कारण इस राज्य ने रईस होने की अपनी चमक को खो दिया है और अब वह प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में देश के टॉप दस राज्यों में भी शामिल नहीं है। अब महाराष्ट्र में अनेक समस्याएं हैं, जिनमें से कुछ एक ये हैं कि रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों से लोगों का बड़ी संख्या में आना, बेरोजगार स्नातकों का विस्फोट, राज्यभर में जल संकट, किसानों की बहुआयामी परेशानियां, आरक्षण हासिल करने के लिए मारा-मारी आदि। बॉलीवुड की चकाचौंध के पीछे मुंबई चरमरा रही है, हद तो यह है कि हाल ही में जो १४ हजार करोड़ रुपए की लागत से बनी अंडर सी टनल भी लीक कर रही है। इसके ऊपर मौसम के बिगड़ते मिजाज की मार भी निरंतर बढ़ती जा रही है।
लेकिन नेताओं की चिंताएं इनसे एकदम अलग हैं। फडणवीस चुनाव में अपनी पार्टी का प्रदर्शन सुधारने के लिए तो अपना पद छोड़ना चाहते हैं, लेकिन उप-मुख्यमंत्री रहते हुए उक्त समस्याओं का समाधान करने की बात नहीं करते। अरे भाई, सरकार बनाने के लिए मतदान किसलिए किया जाता है, यही न कि जनता की समस्याओं का समाधान किया जाएगा। अपनी जिम्मेदारी को पूरा कीजिए, जनता आपकी पार्टी का प्रदर्शन अपने आप ही बेहतर कर देगी। बहरहाल, महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव बीजेपी के लिए इस लिहाज से अधिक महत्वपूर्ण हैं; क्योंकि इस हाई-प्रोफाइल राज्य में हार का अर्थ होगा, इस अनुमान पर मोहर लगना कि बीजेपी ने तोड़-फोड़ करके जो शिंदे सरकार बनाई/बचाई वह सब केवल सत्ता के लालच में और क्षेत्रीय पार्टियों को खत्म करने के लिए था। वैसे फिलहाल, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में एमवीए को प्रारंभिक बढ़त मिली हुई है।
(लेखक सम-सामयिक विषयों के विश्लेषक हैं)