शाहिद ए चौधरी
लगभग १८ माह के सोच-विचार के बाद केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए २४ अगस्त २०२४ को एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) की घोषणा की, जिसमें कुछ नए फीचर्स भी हैं। इस योजना के मुताबिक, जिन लोगों ने केंद्र सरकार में नौकरी २००४ के बाद ज्वाइन की है वे राष्ट्रीय पेंशन व्यवस्था (एनपीएस) से कवर होते हैं, उनके पास यूपीएस में शामिल होने का विकल्प रहेगा, जो कि अप्रैल २०२५ से लागू होगी। यह घोषणा ऐसे समय की गई है, जब चार विधानसभाओं में से दो जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनावों की घोषणा हो चुकी है और जल्द ही महाराष्ट्र व झारखंड के लिए यह घोषणा होगी, इसलिए यह अनुमान लगाना गलत न होगा कि नवीनतम पेंशन फॉर्मूला मतदाताओं को लुभाने का प्रयास है, लेकिन यूपीएस व ओपीएस (पुरानी पेंशन योजना) में जो बीच का मार्ग निकालने की कोशिश की गई है, उससे कर्मचारियों में असंतोष ही बढ़ा है और राजनीतिक स्तर पर इसका विरोध भी हो रहा है। इस पृष्ठभूमि में दो प्रश्न प्रासंगिक हैं। एक, क्या यूपीएस से वास्तव में स्थिति में परिवर्तन आयेगा? दो, क्या इससे पेंशन योजना को रिवर्स किया जा रहा है?
सरकार का दावा है कि यूपीएस से २.३ मिलियन सरकारी कर्मचारी लाभान्वित होंगे। यूपीएस में पांच नए फीचर्स हैं। एक, सुनिश्चित पेंशन- अगर रिटायर होनेवाले सरकारी कर्मचार ने अपनी नौकरी के २५ वर्ष पूरे कर लिए हैं तो रिटायरमेंट से पहले के १२ माह के दौरान उसे जो औसत बेसिक वेतन मिला था, उसका ५० प्रतिशत उसे सुनिश्चित पेंशन के रूप में मिलेगा। अगर सेवा अवधि कम है और कर्मचारी ने कम से कम दस वर्ष की सेवा प्रदान की है तो पेंशन की रकम समानुपातिक होगी। दो, पारिवारिक पेंशन, रिटायर हो चुके कर्मचारी की मौत के बाद उसके सबसे करीबी आश्रित को उसे मिल रही पेंशन का ५० प्रतिशत मिलेगा। तीन, न्यूनतम पेंशन- जो कर्मचारी कम से कम दस वर्ष की सेवा प्रदान करने के बाद रिटायर होंगे, उन्हें न्यूनतम १०,००० रुपए प्रति माह पेंशन की गारंटी रहेगी। चार, सेवानिवृत्ति कोष- रिटायरमेंट पर ग्रेच्युटी के साथ एकमुश्त पेमेंट भी मिलेगा। पांच, मुद्रास्फीति सूचकांक- इस योजना में सुनिश्चित पेंशन, पारिवारिक पेंशन, न्यूनतम पेंशन प्राप्त करनेवालों के लिए मुद्रास्फीति सूचकांक का प्रावधान भी शामिल है।
जिन लोगों ने २००४ से केंद्रीय सेवाएं ज्वाइन की हैं, वह ओपीएस का हिस्सा नहीं हैं, जो कि निश्चित लाभ योजना है कि अंतिम वेतन का ५० प्रतिशत जीवनभर पेंशन के रूप में मिलता है, साल में दो बार महंगाई भत्ते के एडजस्टमेंट के साथ। वह एनपीएस के तहत आते हैं, जिसे मूलत: नई पेंशन योजना कहा जाता था। यह निश्चित अंशदान योजना है, जिसमें कर्मचारी अपने वेतन का १० प्रतिशत देते हैं और इतना ही पैसा सरकार देती है। बाद में सरकार का योगदान बढ़ाकर १४ प्रतिशत कर दिया गया। इस कोष को सरकारी सिक्योरिटीज, शेयर व कॉर्पोरेट बांड्स में निवेश किया जाता है। म्यूच्यूअल फंड्स में भी ऐसा ही किया जाता है, जिसकी दैनिक नेट एसेट वैल्यू होती है। रिटायरमेंट के समय कोष (कार्पस) का कम से कम ४० प्रतिशत एन्युटी खरीदने हेतु खर्च करना होता है।
अधिकतर राज्यों ने एनपीएस को अपना लिया था, लेकिन केंद्र पर गारंटीड पेंशन देने का दबाव बढ़ता जा रहा था। राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, झारखंड व पंजाब जैसे राज्य एनपीएस से बाहर निकल गए थे और उन्होंने ओपीएस को अपना लिया था। हिमाचल में कांग्रेस की जीत का यह मुख्य कारण था। केंद्र में बीजेपी की सरकार ने अनफंडेड पेंशन व्यवस्था को अपनाने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि इससे भविष्य की पीढ़ियों पर बोझ पड़ेगा। मार्च २०२३ में, चुनावी पराजयों के चलते, बीजेपी सरकार ने तत्कालीन वित्त सचिव टीवी सोमनाथन के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया, पेंशन पर मंथन करने के लिए। कमेटी ने आंध्रा मॉडल से प्रेरित होते हुए ५० प्रतिशत सुनिश्चित पेंशन की सिफारिश की। सोमनाथन का कहना है कि यूपीएस से ९९ प्रतिशत से अधिक कर्मचारियों की हालात बेहतर हो जाएगी। जो कोष ३०-३५ वर्षों के कामकाजी जीवन में विकसित हुआ है, उसमें अनेक उतार-चढ़ाव के चक्र देखने को मिलेंगे, लेकिन उसका बड़ा हिस्सा बाजार के मिजाज से सुरक्षित रहेगा।
कोष निवेश मिश्रण पर भी निर्भर है, जिसका चयन सरकारी कर्मचारी कर सकता है। डिफॉल्ट विकल्प ६५ प्रतिशत सरकारी सिक्योरिटीज, १५ प्रतिशत इक्विटीज और शेष कॉर्पोरेट बांड्स तक की अनुमति देता है। मॉडरेट लाइफ-साइकिल इंवेस्टमेंट प्लान में कर्मचारी के ३५ वर्ष का होने तक ५० प्रतिशत इक्विटी एक्सपोजर की अनुमति है, इसके बाद यह कम होने लगता है। इस योजना के तहत, ५५ वर्ष की आयु पर इक्विटी व कॉर्पोरेट बांड का एक्सपोजर गिरकर १० प्रतिशत तक रह जाता है और सरकारी सिक्योरिटीज में निवेश ८० प्रतिशत हो जाता है, चूंकि भारत में एन्युटी रेट्स कम हैं, इसलिए अपने निवेश पर ५० प्रतिशत का रिटर्न पाने के लिए बहुत बड़े कार्पस की जरूरत होती है। यह बड़ी संख्या में कर्मचारियों के लिए संभव नहीं हो पाता है इसलिए ५० प्रतिशत सुनिश्चित पेंशन अधिकतर सरकारी कर्मचारियों के लिए सुरक्षित रहेगी, विशेषकर इसलिए कि ज्यादातर रिस्क लेने से डरते हैं। यूपीएस ओपीएस की ओर लौटना नहीं है। सरकार सिर्फ मार्वेâट रिटर्न और ५० प्रतिशत सुनिश्चित पेंशन के बीच अंतर को भरने का काम करेगी। नयापन सिर्फ यह है कि जिन्होंने १० वर्ष तक काम किया है, उन्हें न्यूनतम १०,००० रुपए और एकमुश्त पेमेंट दिया जाएगा।
सरकारी कर्मचारियों को महंगाई से भी सुरक्षित रखने का प्रावधान है। यूपीएस से सरकार पर पहले वर्ष में ६,२५० करोड़ रुपए का भार पड़ेगा। यूपीएस पर परस्पर विरोधी प्रतिक्रियाएं हैं। जो कर्मचारी ओपीएस के इच्छुक थे, वह इस नए प्रस्ताव से संतुष्ट नहीं हैं। उनके नजदीक यूपीएस ओपीएस का अच्छा विकल्प नहीं है और यह कर्मचारियों में उनकी सेवा अवधि के आधार पर भेदभाव करता है। इसके अतिरिक्त उनका कहना है कि ५० प्रतिशत सुनिश्चित पेंशन सेवा के अंतिम वर्ष में मिला औसत बेसिक वेतन का ५० प्रतिशत है, जो कि बहुत ही कम है। जाहिर है ओपीएस के तहत जो अंतिम कुल वेतन का आधा पेंशन के तौर पर मिलता है, वह कहीं अधिक बैठेगा। इसके अतिरिक्त कुछ लोगों को लगता है कि सरकार वोटों के लालच में अपने आर्थिक सुधार कार्यक्रम को ताक पर रख रही है, जो कि भारत के भविष्य के लिए बुरी खबर है। उनके अनुसार, लोकसभा चुनाव के मिश्रित नतीजों ने मतदाताओं के असंतोष को जाहिर कर दिया है, जो केंद्र व राज्य सरकारों के नीतिगत निर्णयों को प्रभावित कर रहा है। अगर यही सब चलता रहा तो भारत २०४७ तक विकसित होने के अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकेगा।
इन लोगों का यह भी कहना है कि विकसित होने के लिए भारत को संरचनात्मक सुधारों की जरूरत है, विशेषकर भूमि व श्रम क्षेत्रों में, लेकिन इस किस्म के सुधारों में राजनीतिक खतरा होता है। मतदाताओं के मूड के अनुसार चला जाएगा तो २०१९-२०२० में पारित चार श्रम कानूनों को लागू करना कठिन हो जाएगा। इन लोगों का यह भी मत है कि यूपीएस से खजाने पर बहुत अधिक भार पड़ेगा, जो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर नहीं है यानी ये लोग दोनों यूपीएस व ओपीएस के विरोध में हैं, जबकि अनेक राजनीतिक दल ओपीएस के लिए बैटिंग कर रहे हैं। अत: यूपीएस घोषणा को पेंशन के मामले में अंतिम शब्द न माना जाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)