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जामताड़ा के साइबर अपराधियों ने ढूंढा ठगी का नया तरीका…एक क्लिक में पता चल जाएगा सब कुछ आपका

अनिल मिश्र / रांची

झारखंड प्रदेश के जामताड़ा के साइबर अपराधी अब ‘चैट जीपीटी’ और ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ की मदद से ठगी के ऐप बना रहे हैं। इन ठगों ने पहले सॉफ्टवेयर इंजीनियर से ऐप बनाना सीखा है।इसके बाद चैट जीपीटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से खुद ही ऐप बनाने के विशेषज्ञ बन गए हैं। अब ये अपना ऐप दूसरे ठगों को 20-25 हजार रुपए में बेच रहे हैं। 10वीं व 12वीं पास इन साइबर अपराधियों द्वारा बनाये गए ऐप को डाउनलोड करते ही मोबाइल, लैपटॉप का नियंत्रण उनके पास चला जाता है और वे अपनी मर्जी से कुछ भी करने में सक्षम हो जाते हैं।
हाल के दो दिन पहले साइबर अपराधियों की गिरफ्तारी के बाद जारी जांच-पड़ताल के दौरान इन तथ्यों की जानकारी मिली है।साथ ही 100 से ज्यादा इस तरह के ऐप पाये गए हैं। जामताड़ा एसपी एहतेशाम वकारिब ने साइबर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रशिक्षु आइपीएस राघवेंद्र शर्मा के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया। इसमें प्रशिक्षु डीएसपी चंद्रशेखर और इंस्पेक्टर जयंत तिर्की को शामिल किया।
इस टीम ने 25 जनवरी को छह साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया था।इसमें महबूब आलम, सैफुद्दीन अंसारी, आरिफ अंसारी, जसीम अंसारी, शेख बेलाल और अजय मंडल शामिल हैं। इनमें महबूब और अजय मंडल पहली बार गिरफ्तार हुए हैं। ये सभी 415 साइबर ठगी के मामले में शामिल रहे हैं। इन लोगों ने अभी तक 11 करोड़ रुपए से अधिक की ठगी है। इधर पुलिस की जांच में पाया गया कि इन अपराधियों ने एक साल पहले एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से ऐप बनाना सीखा है। इसके बाद खुद ही ऐप बना कर बेचने लगे, ताकि पुलिस की नजर से बचे रहें। इन साइबर अपराधियों द्वारा ऐप बनाने में किसी तरह की परेशानी होने पर चैट जीपीटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद ली जाती रही है। ऐप बना कर बेचने से पहले उसे वायरस पोर्टल पर डालकर यह देखते हैं कि इसमें कोई वायरस है या नहीं। इसके बाद चैट जीपीटी की मदद से वायरस हटाने और कोडिंग करने के बाद इसे दूसरे साइबर अपराधियों को बेचते हैं।
ताजुब की बात है कि गिरफ्तार सभी अपराधी महज 10वीं व 12वीं पास हैं। महबूब, सैफुद्दीन और शेख बेलाल साइबर अपराधियों के बीच डीके बॉस के नाम से जाने जाते हैं। इसी नाम से वह दूसरे साइबर अपराधियों को ठगी के बनाये गए अपने ऐप बेचते हैं। ठगी के लिए बनाये गए ऐप बेचने के लिए इन्होंने वेब पोर्टल भी बना रखा है। विभिन्न तरह का ब्योरा रखने के लिए सर्वर में स्पेस भी खरीद रखा है। पुलिस की गिरफ्त में आये साइबर अपराधी दूसरे साइबर अपराधियों को ऐप बेचने के अलावा 40 प्रतिशत कमीशन पर बैंक अकाउंट की सुविधा देते हैं। अब यह देखना लाजिमी होगा कि इन अपराधियों के गिरफ्तारी के बाद जामताड़ा के साइबर अपराधियों पर अंकुश कैसे झारखंड पुलिस लगाती है और देश को साइबर अपराध में गिरावट कैसे दर्ज किया जाएगा। यह आने वाले समय ही बताएगा।

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